Raigarh: 1975 के आपातकाल की अच्छाइयों से क्यों मुंह फेर रही बीजेपी -अनिल शुक्ला

नियमित आफ़तकाल से बेहतर था सीमित आपातकाल
रायगढ 25 जून 2025। आपातकाल पर बीते 50 वर्षों से चिल्लपों करने वाली बीजेपी सिर्फ अपने नजरिये से देश के हालातों को देखती रही जबकि जिला कांग्रेस अध्यक्ष अनिल शुक्ला ने 1975 के आपातकाल पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा उस दौर में आपातकाल को लगाया जाना सामयिक आवश्यकता थी
कांग्रेस नेता अनिल शुक्ला ने कहा कि यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि आपातकाल के दौरान के कई ऐसे महत्वपूर्ण सकारात्मक पहलू भी रहे थे जिसकी अनदेखी नहीं की जानी चाहिए । वहीं आपातकाल को आज की सतारूढ़ पार्टी अवाम के बीच गलत नजरिये से प्रस्तुत करती आ रही है । अनिल शुक्ला ने कहा कि आज के दौर में सत्ताधारी पार्टी के पास देश के आंतरिक हालातों से निपटने की कोई योजना नहीं है व बीजेपी वालों को आपातकाल के दौरान की अच्छाइयों को देखने का नजरिया नहीं है।उन्हें सिर्फ झूठ फैलाने में ही महारत हासिल हैं।
अनिल शुक्ला के अनुसार 1975 के आपातकाल के समय तात्कालीन कांग्रेस सरकार के द्वारा जो अच्छे कार्य रहे वे हैं
आर्थिक सुधार
1. आर्थिक अनुशासन: आपातकाल के दौरान आर्थिक अनुशासन को बढ़ावा दिया गया, जिससे अर्थव्यवस्था में स्थिरता आई।
2. उत्पादकता में वृद्धि: आपातकाल के दौरान श्रमिकों की उत्पादकता में वृद्धि हुई, जिससे आर्थिक विकास को बढ़ावा मिला।
सामाजिक सुधार
1. शहरीकरण और स्वच्छता: आपातकाल के दौरान शहरीकरण और स्वच्छता पर विशेष ध्यान दिया गया, जिससे शहरों की स्थिति में सुधार हुआ।
2. शिक्षा और स्वास्थ्य: आपातकाल के दौरान शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार हुआ, जिससे लोगों के जीवन स्तर में सुधार आया।
प्रशासनिक सुधार:प्रशासनिक सुधार: आपातकाल के दौरान प्रशासनिक सुधार किए गए, जिससे सरकारी कामकाज में पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ी।.
भ्रष्टाचार में कमी: आपातकाल के दौरान भ्रष्टाचार के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की गई, जिससे सरकारी कामकाज में भ्रष्टाचार में कमी आई।
अन्य अच्छाइयां
राष्ट्रीय एकता: आपातकाल के दौरान राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा दिया गया, जिससे देश में एकता और अखंडता की भावना मजबूत हुई।
. आधुनिकीकरण: आपातकाल के दौरान आधुनिकीकरण की प्रक्रिया को बढ़ावा दिया गया, जिससे देश में तकनीकी और आर्थिक विकास हुआ।
अनिल शुक्ला ने स्थानीय विधायक व केबिनेट मंत्री ओमप्रकाश चौधरी जी के आपयकाल के वक्तव्य पर टिप्पणी करते हुए कहा कि आप पूर्व प्रशासनिक अधिकारी होने के साथ ही मोटीवेशनल गुरु भी हैं और आप अच्छे से जानते हैं कि गिलास आधा भरा हो तो लोग उसे 2 तरह से परिभाषित करते है जो उनके नजरिये को दर्शाता है। मेरा मानना भी आपके लिए यही है कि आप चीजों को अपने जिस चश्मे से देख रहे हैं अगर आपने आपातकाल के दूसरे सकारात्मक पहलुओ को भी ध्यान दिया होता तो इसे बहस का मुद्दा न बनाते।अनिल शुक्ला ने कहा कि इस दौर में चल रहे नियमित आफ़तकाल से बेहतर था सीमित आपातकाल।
आज पूरे देश में ईडी सीबीआई जैसे संस्थाओं के दुरुपयोग से सताए लोगों की पीड़ा किसी नियमित आफ़तकाल से कम नहीं है। देश में बिगड़ रही कानून व्यवस्था महिला उत्पीड़न की घटनाओं पर काबू न पाया जाना गरीबों पर हो रहे अत्याचार बेरोजगारों की अनदेखी करना ये काल आफत काल है जो अघोषित आपातकाल से भयानक है जिसमे सत्ता संरक्षित गुंडे भी खुले आम विधि विरुद्ध कार्य कर रहे हैं ।इस आफ़तकाल में सरकारी दमन इतना बढ़ चुका है जिसमें विपक्षी दलों, कार्यकर्ताओं, और नागरिकों व समाज के सदस्यों को निशाना बनाया जा रहा है।
सन 1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा जी द्वारा लगाया गया आपातकाल उस वक़्त का एक जटिल और संवेदनशील मुद्दा था, जिसमें उस वक़्त नागरिक स्वतंत्रता, मानवाधिकार, और लोकतांत्रिक मूल्यों के बीच संतुलन बनाना आवश्यक था।
अनिल शुक्ला ने कहा कि सिर्फ भाजपा के कार्यकाल वाली सरकारों में ही ज्यादातर कानून बिना केबिनेट की मंजूरी के लिए जाते है आज बीजेपी सरकार स्वीकार करें कि नोटबंदी एक बहुत बड़ी भूल थी। स्वीकार करें कि नागरिकता संशोधन कानून एक स्पष्ट रूप से भेदभावपूर्ण कानून है। स्वीकार करें कि राफेल सौदा बेईमानी भरा था । स्वीकार करें कि पेगासस स्पाइवेयर का अधिग्रहण और उपयोग अवैध था।
अनिल शुक्ला ने बताया कि बीते 11 वर्ष में देशवासियों ने बीजेपी के कार्यकाल में जो अत्याचार का दंश झेला है आपातकाल उसके सामने कुछ भी नहीं था कृषकों पर लागू 3 कृषि काले कानून को लेकर विरोधी आंदोलन में उनके ऊपर हुए अमानवीय अत्याचारों की कहानी किसी से छिपी नहीं है उनके ऊपर ठंडे पानी की बौछार करना, रबर की गोलियों से उन्हें आहत करना रास्तों में किलों को गाड़ देना ये कौन से लोकतंत्र में होता है पूरे देश ने सरकार द्वारा किसानों के साथ हो रहे जुल्मों को और उन्हें आंदोलन पर दी गई यातनाओं को देखा है और देश का शायद ही कोई आंदोलन हो जिसमें 700 बेकसूर लोगों ने अपने हक़ की लड़ाई के लिए लोकतांत्रिक आंदोलन कर अपने जान की कुर्बानी दी हो वहीं असंवेदी सरकार ने उनकी कुर्बानी पर शोक तक व्यक्त नहीं किया। वास्तव मे ये ही प्रताड़ित करने वाला आपातकाल है ।मेरा मानना है कि आज मीसाबंदियों को पेंशन देना बंद कर इन मृतक कृषकों के परिजनों को पेंशन दिया जाना चाहिए।अनिल शुक्ला ने कहा कि बीजेपी मीसा की कहानी पाठ्यक्रम में शामिल करने की पैरवी कर रही है तो ये 3 काले कानून वाले अपने कार्यकाल के अत्याचारों के घटनाक्रम को भी पाठ्यक्रम में शामिल करें और साथ ही ये भी शामिल करें कि बीजेपी ने अपनी मातृसंस्था जनसंघ के मुख्यालय नागपुर में आजादी के बाद 52 वर्षों तक राष्ट्रध्वज क्यों नही फहराया/लहराया ।
प्रधानमंत्री मोदी जी द्वारा बिना केबिनेट की मंजूरी के ही नोटबन्दी कर पूरे देश को बैंकों की लाइन में खड़े कर देना भी आफ़तकाल का जीता जागता प्रमाण था।
अनिल शुक्ला ने बताया कि हमें भाजपा के चाल चरित्र और चेहरे को उजागर करने के लिए किसी प्रदर्शनी लगाकर बेनकाब करने की जरूरत नहीं पड़ेगी सिर्फ वाशिंग मशीन के डेमो से ही लोग इनके असल चेहरे से रूबरू हो जाएंगे।