रायगढ़

चक्रधर समारोह 2025: विदेशी मंचों पर प्रतिभा का परचम लहराने वाले पं.भूपेन्द्र बरेठ ने रायगढ़ घराने की परंपरा को दी नई ऊँचाई

रायगढ़ की चार वर्षीय ऋत्वी अग्रवाल ने कथक नृत्य में सुर, ताल और लय का दिखाया अद्भुत संगम
पद्मश्री डॉ.अश्विनी भिडे देशपाण्डे की स्वर साधना से गूँजा रायगढ़
डॉ.विपुल कुमार राय के संतूर वादन से गूंजा रायगढ़: रागों की शुद्धता और लय की साधना ने श्रोताओं को किया मंत्रमुग्ध
बाल कलाकार मास्टर पार्थ यादव ने तबला वादन से दिखाया अद्भुत कौशल
हीना दास ने ओडिसी नृत्य से दिखाया नवदुर्गा का अद्भुत रूप
कथक नृत्यांगना मुक्ता मेहर ने बिखेरी सुर, ताल और भावों की अनूठी छटा
रायगढ़ की सौम्या शर्मा ने कथक से बिखेरी शास्त्रीय नृत्य की छटा
डॉ.योगिता मांडलिक की कथक प्रस्तुति में झलका रायगढ़ घराने का रंग
आरोही मुंशी ने भरतनाट्यम से किया कला और परंपरा का अद्भुत संगम
सुर, ताल और लय का छठा दिवस बना अविस्मरणीय
स्थानीय और राष्ट्रीय कलाकारों की प्रस्तुतियों ने बिखेरी कला की अनूठी छटा

रायगढ़, 1 सितम्बर 2025/ अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त चक्रधर समारोह के 40वें वर्ष का छठा दिन शास्त्रीय संगीत और नृत्य की मनमोहक प्रस्तुतियों से सराबोर रहा। रायगढ़ की सांस्कृतिक धरोहर को जीवंत करतीं प्रस्तुतियों ने जहां परंपरा और आधुनिकता का संगम दिखाया, वहीं कलाकारों की नृत्य-भावभंगिमाएं और सुर-लहरियां देर रात तक श्रोताओं को मंत्रमुग्ध करती रहीं। कार्यक्रम का शुभारंभ स्थानीय कलाकारों ने किया। मंच पर जब कोरबा के प्रतिभाशाली बाल कलाकार मास्टर पार्थ यादव ने तबला वादन प्रस्तुत किया, तो उनकी साधना और लगन स्पष्ट झलक उठी। कम उम्र में ही उन्होंने इस कला में अपनी अलग पहचान स्थापित कर ली है। वहीं रायगढ़ की बेटी ऋत्वी अग्रवाल और सौम्या शर्मा ने कथक नृत्य की लयकारी और अभिव्यक्ति से दर्शकों को भावविभोर किया। साथ ही रायगढ़ की हीना दास ने ओडि़शी नृत्य की शास्त्रीय गरिमा को मंच पर उतारते हुए सभी का दिल जीत लिया। बरगढ़ की मुक्ता मेहर और बिलासपुर के भूपेंद्र बरेठ एवं उनकी टीम ने कथक की सूक्ष्मता और ऊर्जा से भरी प्रस्तुति दी, जिसे दर्शकों ने तालियों की गडग़ड़ाहट से सराहा।

राष्ट्रीय स्तर के कलाकारों की प्रस्तुतियों ने समारोह को और भी ऊंचाई दी। दिल्ली से आई नृत्यांगना आरोही मुंशी ने भरतनाट्यम की अनुपम प्रस्तुति देकर दर्शकों को दक्षिण भारत की शास्त्रीय नृत्य परंपरा से परिचित कराया। समारोह में मुंबई के पद्मश्री डॉ. अश्विनी भिडे देशपाण्डे ने अपने मधुर हिंदुस्तानी शास्त्रीय गायन से संगीतमय वातावरण रच दिया। उनकी आवाज की गूंज और रागों की गहराई ने श्रोताओं को आत्मविभोर कर दिया। वहीं दिल्ली के विख्यात संतूर वादक डॉ. विपुल राय ने संतूर की मधुर और मनमोहक झंकार से पूरा पंडाल गूंजा दिया। उनके वादन की बारीकियां और सुरों की नाजुकता ने श्रोताओं को गदगद कर दिया। छठे दिन की कथक, ओडि़शी, भरतनाट्यम, हिंदुस्तानी शास्त्रीय गायन और संतूर वादन की सुरमयी और भावपूर्ण छवियां देर रात तक दर्शकों के मन-मस्तिष्क में गूंजती रहीं।

अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त चक्रधर समारोह 2025 के छठवें दिन का शुभारंभ राज्यसभा सांसद  देवेंद्र प्रताप सिंह द्वारा दीप प्रज्वलन के साथ हुआ। परंपरागत रीति से दीप प्रज्वलित कर उन्होंने राजा चक्रधर सिंह के चित्र पर पुष्प अर्पित किए और समारोह की गरिमामयी शुरुआत की। इस अवसर पर बड़ी संख्या में कला-रसिकों एवं गणमान्य अतिथियों की उपस्थिति रही। बता दे कि चक्रधर समारोह रायगढ़ की सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक है, जहाँ प्रतिवर्ष देश-प्रदेश से सुप्रसिद्ध कलाकार अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करते हैं। समारोह में मंच पर राज्यसभा सांसद श्री देवेंद्र प्रताप सिंह एवं कलेक्टर श्री मयंक चतुर्वेदी ने प्रस्तुति देने वाले सभी कलाकारों को प्रशस्ति पत्र स्मृति चिन्ह भेंटकर सम्मानित किया।

बाल कलाकार मास्टर पार्थ यादव ने तबला वादन से दिखाया अद्भुत कौशल
चक्रधर समारोह 2025 के मंच पर आज मास्टर पार्थ यादव ने तबला वादन प्रस्तुत किया, तो उनकी साधना और लगन स्पष्ट झलक उठी। कम उम्र में ही उन्होंने इस कला में अपनी अलग पहचान स्थापित कर ली है। अपने गुरुओं श्री मोरध्वज वैष्णव एवं श्री नवीन महंत के मार्गदर्शन में पार्थ यादव ने निरंतर अभ्यास और समर्पण से ताल और लय की अनोखी समझ विकसित की है। पाली महोत्सव, कोरबा महोत्सव सहित कई राष्ट्रीय मंचों पर अपनी प्रस्तुतियों से वे पहले ही प्रशंसा प्राप्त कर चुके हैं। समारोह के मंच पर पार्थ यादव की प्रस्तुति ने उनकी परिपक्वता और सधे हुए वादन की झलक दी। उनके सुरम्य तबला वादन को दर्शकों ने सराहा और भरपूर प्रशंसा की।

चार वर्षीय ऋत्वी अग्रवाल ने कथक नृत्य में सुर, ताल और लय का दिखाया अद्भुत संगम
चक्रधर समारोह के छठवें दिन मंच पर ऐसी प्रस्तुति हुई जिसने दर्शकों के हृदय को गहराई तक छू लिया। महज चार वर्ष रायगढ़ की नन्हीं बालिका ऋत्वी अग्रवाल ने अपने कथक नृत्य से सुर, ताल और लय का ऐसा अद्भुत संगम प्रस्तुत किया कि पूरा सभागार तालियों से गूंज उठा। ऋत्वी इस वर्ष के समारोह की सबसे कम उम्र की प्रतिभागी हैं। महज तीन वर्ष की उम्र से ही वे रायगढ़ की प्रख्यात नृत्य प्रशिक्षिका तब्बू परवीन से कथक की विधिवत शिक्षा ले रही हैं। छोटी-सी उम्र में ही उनकी ऊर्जावान अभिव्यक्ति, सधी हुई भाव-भंगिमाएं और आत्मविश्वास से भरा मंचन उन्हें विशेष बनाता है। ऋत्वी को अब तक राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई पुरस्कारों और सम्मानों से नवाजा जा चुका है।

हीना दास ने ओडिसी नृत्य से दिखाया नवदुर्गा का अद्भुत रूप
रायगढ़ की युवा कलाकार हीना दास ने ओडिसी नृत्य प्रस्तुत किया। बचपन से ही इस विधा का अभ्यास कर रहीं हीना वर्तमान में इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय, खैरागढ़ से उच्च शिक्षा प्राप्त कर रही हैं। उन्होंने इंटरनेशनल ओडिसी डांस फेस्टिवल, खैरागढ़ महोत्सव, मैनपाट महोत्सव और देवदासी नृत्यांजली महोत्सव जैसे कई राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर अपनी प्रस्तुतियां देकर ख्याति अर्जित की है। साथ ही उन्हें मथुराराज नृत्यश्री सम्मान, कट्टक नवीन कला सम्मान और नृत्यांजली भुवनेश्वर सम्मान से अलंकृत किया जा चुका है। समारोह में हीना दास ने ‘नवदुर्गा’ पर आधारित नृत्य प्रस्तुत किया, जिसमें देवी के नव रूपों का सजीव चित्रण हुआ। हीना दास की यह प्रस्तुति कि ओडिसी नृत्य की गहराई और भावाभिव्यक्ति का उत्कृष्ट उदाहरण भी रही। दर्शकों ने उनकी कला की सराहना की।

ओडिशा की मुक्ता मेहर ने कथक नृत्य से बिखेरी सुर, ताल और भावों की अनूठी छटा
ओडिशा के बरगढ़ जिले से आई 21 वर्षीय कथक नृत्यांगना मुक्ता मेहर ने अपनी मनमोहक प्रस्तुति से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। मुक्ता ने अपनी प्रस्तुति की शुरुआत भगवान शिव की स्तुति से की, जिसमें ताल और लय का सुंदर संगम देखने को मिला। इसके बाद उन्होंने रायगढ़ घराने के चुनिंदा बोल जैसे पक्षी परन और दरबदल परन प्रस्तुत किए। इसमें ताल की विविधता और लयकारी की अद्भुत छटा दिखाई दी। प्रस्तुति के अंतिम चरण में उन्होंने एक कजरी प्रस्तुत कर ऋतु और लोकभावना का सुंदर चित्रण किया, जिसे दर्शकों ने तालियों की गडग़ड़ाहट से सराहा। मुक्ता की कथक नृत्य सीखने की शुरुआत इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय खैरागढ़ से हुई। पिछले तीन वर्षों से मुक्ता अपने गुरु डॉ. जीतेश गडपाले से कथक की शिक्षा प्राप्त कर रही है और उनके मार्गदर्शन में कथक की बारीकियों को सिख रही है। मुक्ता ने कहा कि उन्हें चक्रधर समारोह जैसे प्रतिष्ठित मंच पर प्रस्तुति देने का अवसर पाकर गर्व और हर्ष की अनुभूति हो रही है।

रायगढ़ की सौम्या शर्मा ने कथक से बिखेरी शास्त्रीय नृत्य की छटा
रायगढ़ की कु.सौम्या शर्मा ने अपनी अद्भुत कथक प्रस्तुति से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। उन्होंने तीन ताल में गणेश वंदना, जयपुर घराने के तोड़े-तुकड़े, 16 चक्कर, जुगलबंदी फुटवर्क और राग केदार पर एक तराना प्रस्तुत किया। उनकी भाव-भंगिमाओं, ताल-लय और पदचाप ने दर्शकों का दिल जीत लिया। सौम्या शर्मा ने अपनी गुरु श्रीमती पूजा जैन प्रयाग संगीत समिति से पंचम वर्ष तक कथक की शिक्षा प्राप्त की है और लगातार साधना जारी रखी है। सौम्या को अब तक अनेक प्रतिष्ठित मंचों पर सम्मानित किया गया है। उन्होंने राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में प्रथम व द्वितीय स्थान प्राप्त कर जिले व प्रदेश का नाम रोशन किया है।

डॉ.योगिता मांडलिक की कथक प्रस्तुति में झलका रायगढ़ घराने का रंग
रायगढ़ घराने की शिष्या एवं युवा नृत्यांगना डॉ. योगिता मांडलिक ने अपनी प्रस्तुति से दर्शकों का मन मोह लिया। डॉ.मांडलिक ने ताल-त्रिताल में रायगढ़ घराने की प्रमुख बंदिशों के साथ भावपूर्ण प्रस्तुति दी। विशेष रूप से जब उन्होंने कृष्णभक्त कवि सूरदास के पद ‘मैया मोरी मैं नहीं माखन खायो’ पर अपने भावों की अभिव्यक्ति दी, तो पूरा कार्यक्रम स्थल कृष्णमय हो उठा। उनकी प्रस्तुति में लय की स्पष्टता, ताल पर गहरी पकड़ और भावों की सुंदरता दर्शकों को मंत्रमुग्ध करती रही। रायगढ़ घराने की परंपरा में पली-बढ़ी डॉ.योगिता मांडलिक ने अपनी गुरु डॉ.सुचित्रा हरमलकर के सानिध्य में कथक की गहन साधना की है। वे कई प्रतिष्ठित मंचों पर अपनी प्रस्तुतियां दे चुकी हैं और अपनी विलक्षण नृत्य प्रतिभा के लिए सम्मानित भी हुई हैं।

दिल्ली की आरोही मुंशी ने भरतनाट्यम से किया कला और परंपरा का अद्भुत संगम
भारतीय शास्त्रीय नृत्य की प्रतिभाशाली कलाकार आरोही मुंशी ने भरतनाट्यम की प्रस्तुति देकर दर्शकों को गहन अनुभव प्रदान किया। दिल्ली की आरोही मुंशी ने अपनी माँ और गुरु डॉ. लता मुंशी के मार्गदर्शन में बचपन से भरतनाट्यम की शिक्षा ली और इस विधा में स्नातकोत्तर तक की पढ़ाई पूरी की। उन्होंने पारंपरिक भरतनाट्यम की गहराई को आधुनिक भारतीय संवेदनाओं से जोड़ते हुए कई नृत्य-कोरियोग्राफियां रचीं। उनका विशेष कार्य सैय्यद हैदर रज़ा की पेंटिंग्स को खयाल और ध्रुपद के साथ भरतनाट्यम में प्रस्तुत करना भी रहा है। आरोही मुंशी देश और विदेश के अनेक प्रतिष्ठित मंचों पर अपनी प्रस्तुतियां दे चुकी हैं। खजुराहो नृत्य महोत्सव, भारत भवन महोत्सव, ताज महोत्सव जैसे राष्ट्रीय मंचों के साथ-साथ उन्होंने सिंगापुर, ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस, कनाडा और मलेशिया जैसे देशों में भी अपनी कला का प्रदर्शन कर भारतीय संस्कृति को गौरवान्वित किया है।

समारोह के मंच पर उन्होंने भरतनाट्यम में महिषासुर मर्दिनी की भावपूर्ण प्रस्तुति दी, जिसमें माँ दुर्गा के रौद्र और शांत दोनों रूपों का अद्भुत चित्रण हुआ। इस प्रस्तुति में परंपरा और आधुनिकता का ऐसा संगम दिखाई दिया जिसने दर्शकों को लंबे समय तक स्मरणीय अनुभव प्रदान किया।

विदेशी मंचों पर प्रतिभा का परचम लहराने वाले पं.भूपेन्द्र बरेठ ने रायगढ़ घराने की परंपरा को दी नई ऊँचाई
अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त चक्रधर समारोह 2025 के मंच पर रायगढ़ घराने के सुप्रसिद्ध कथक नर्तक एवं गुरु पं. भूपेन्द्र बरेठ ने अपनी अद्वितीय प्रस्तुति से इस गौरवशाली परंपरा को नई ऊँचाई प्रदान की। उन्होंने श्रीराम स्तुति और महाराजा चक्रधर सिंह से जुड़ी पारंपरिक बंदिशों की मनमोहक प्रस्तुतियों से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। उनकी भावपूर्ण नृत्य साधना ने न केवल दर्शकों को भावविभोर किया बल्कि पूरा वातावरण कला और संस्कृति से सराबोर हो उठा। दर्शक दीर्घा तालियों की गडग़ड़ाहट से देर तक गूंजती रही।

रायगढ़ की धरती पर जन्मे पं. भूपेन्द्र बरेठ, रायगढ़ घराने के वरिष्ठ नृत्याचार्य एवं पद्मश्री पं. रामलाल बरेठ के पुत्र हैं। उन्हें कथक की शिक्षा राजा चक्रधर सिंह के शिष्य स्व. पं. कार्तिकराम प्रसाद तथा अपने पिता से प्राप्त हुई। वहीं, तबला वादन की शिक्षा भी उन्हें अपने पिता से ही मिली। शास्त्रीय शिक्षा की मजबूत नींव रखते हुए उन्होंने इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय, खैरागढ़ से स्नातक व स्नातकोत्तर उपाधि अर्जित की और प्रयाग संगीत समिति, इलाहाबाद से नृत्य व तबला वादन की उच्च डिग्रियाँ हासिल कीं।
पं. भूपेन्द्र बरेठ ने अपनी कला से न केवल देश बल्कि विदेशों में भी विशेष पहचान बनाई है। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा आयोजित उत्तर अफ्रीका की कलायात्रा, मलेशिया का अंतरराष्ट्रीय संगीत-नृत्य समारोह, तथा पुणे, दिल्ली, भोपाल, ग्वालियर, जांजगीर और खंडवा जैसे शहरों के प्रतिष्ठित मंचों पर उन्होंने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है। दिल्ली-जयपुर में आयोजित जयपुर घराना नृत्य समारोह एवं मध्यप्रदेश के विभिन्न सांस्कृतिक आयोजनों में भी उनकी प्रस्तुतियों को विशेष सराहना मिली है। उन्हें कला में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए शासन व प्रतिष्ठित संस्थाओं द्वारा कई पुरस्कारों से सम्मानित भी किया गया है। चक्रधर समारोह 2025 के मंच पर पं. भूपेन्द्र बरेठ की साधना ने दर्शकों को उस गहराई से जोड़ा, जिसकी नींव उनके पिता पद्मश्री पं. रामलाल बरेठ और महान गुरुओं ने रखी थी।

पद्मश्री डॉ. अश्विनी भिडे देशपाण्डे की स्वर साधना से गूँजा रायगढ़
मुंबई की सुप्रसिद्ध शास्त्रीय गायिका एवं पद्मश्री से सम्मानित डॉ.अश्विनी भिडे देशपाण्डे ने अपनी सुमधुर प्रस्तुति से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। जयपुर अतरौली घराने की प्रतिनिधि डॉ.देशपाण्डे ने शास्त्रीय गायन की विविध विधाओं खयाल, भजन और ठुमरी प्रस्तुत कर सुर, ताल और भाव का ऐसा संगम रचा कि दर्शक भावविभोर हो उठे। डॉ.अश्विनी भिडे देशपाण्डे का जन्म संगीत परंपरा से जुड़े परिवार में हुआ। उन्होंने नारायण राव दातार से प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की और अपनी माता माणिक भिड़े से जयपुर अतरौली घराने की गहन तालीम ली। वे गान सरस्वती किशोरी आमोनकर की शिष्या रही हैं और देश-विदेश के अनेक प्रतिष्ठित मंचों पर अपनी गायकी का जादू बिखेर चुकी हैं। भारत सरकार ने उन्हें वर्ष 2025 में पद्मश्री सम्मान से अलंकृत किया। साथ ही उन्हें संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार और माणिक रत्न पुरस्कार सहित अनेक विशिष्ट सम्मानों से भी नवाजा गया है। वह न केवल श्रेष्ठ गायिका हैं बल्कि कुशल बंदिशकार भी हैं। उनकी रचनाओं पर आधारित पुस्तक प्रकाशित हो चुकी है। विशेष रूप से कबीर भजनों की प्रस्तुति के लिए उन्हें विशेष पहचान प्राप्त है। डॉ.देशपाण्डे के सुरमयी गायन ने चक्रधर समारोह की गरिमा को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया।

डॉ.विपुल कुमार राय के संतूर वादन से गूंजा रायगढ़
दिल्ली के सुप्रसिद्ध संतूर वादक डॉ.विपुल कुमार राय ने अपनी अनुपम प्रस्तुति से संगीत प्रेमियों को मंत्रमुग्ध कर दिया। सुर, ताल और लय की दिव्य साधना ने वातावरण को अलौकिक संगीत प्रवाह से सराबोर कर दिया। आकाशवाणी के ग्रेड ए कलाकार एवं भारतीय संस्कृति मंत्रालय के उत्कृष्ट श्रेणी के कलाकार डॉ.राय ने संतूर वादन की ऐसी विलक्षण शैली प्रस्तुत की, जिसमें परंपरा और आधुनिकता का अद्भुत संगम झलका। उनकी प्रस्तुति में रागों की शुद्धता, छंदों का मधुर प्रयोग और लयकारी की अनूठी बारीकियाँ निरंतर उजागर होती रहीं।
सूफियाना घराने के मशहूर संतूर वादक पद्मश्री पं.भजन सोपोरी के शिष्य डॉ.राय ने दिल्ली विश्वविद्यालय से मास्टर, एमफिल और पीएचडी की उपाधि प्राप्त की है। उन्होंने देश-विदेश के प्रमुख मंचों पर भारतीय शास्त्रीय संगीत की गौरवशाली परंपरा को नई ऊँचाई दी है। अपने योगदान के लिए उन्हें बिहार कला पुरस्कार, संगीत कला गौरव, पद्मश्री फड़के कला सम्मान, संगीत कला रत्न और स्वराधीराज सम्मान सहित अनेक राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय अलंकरणों से सम्मानित किया जा चुका है।

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