रायगढ़ में जुटे प्रदेशभर के नवजात एवं शिशु रोग विशेषज्ञ, शिशु पुनर्जीवन प्रक्रिया के लिए आईएपी रायगढ़ ने आयोजित की कार्यशाला

रायगढ़ । बीते दिनों होटल अंश में आईएपी-रायगढ़ के तत्वाधान में नवजात शिशु पुनर्जीवन प्रक्रिया हेतु कौशल प्रशिक्षण सत्र आयोजित किया गया। कार्यशाला का मुख्य उद्देश्य नवजात शिशुओं की देखभाल और पुनर्जीवन तकनीकों पर जागरूकता फैलाना था। कार्यक्रम में नवजात एवं शिशु रोग विशेषज्ञ डॉक्टर्स ने नवजात पुनर्जीवन के महत्व को समझाते हुए कहा कि लर्न, सपोर्ट तथा सेव् के सिद्धांत को अपनाकर कई नवजात जीवन बचाए जा सकते हैं। कार्यशाला में नवजात पुनर्जीवन की आधुनिक एवं व्यावहारिक विधियां, जन्म के तुरंत बाद शिशु की देखभाल की तकनीक, स्वास्थ्यकर्मियों एवं डॉक्टर्स को व्यावहारिक प्रशिक्षण के बारे में जानकारी दी गई।
विदित हो कि लगभग 90 प्रतिशत शिशु अंतर्गभाशयी से अतिरिक्त गर्भाशय जीवन में संक्रमण करते है। सहज एवं नियमित श्वसन शुरू करने के लिये बहुत कम या नहीं के बराबर सहायत की आवश्यकता होती है। लगभग 10 प्रतिशत नवजात शिशुओं को जन्म के समय सांस लेने के लिये कुछ सहायता की आवश्यकता होती है एवं केवल 1 प्रतिशत को ही जीवित रहने के लिये व्यापक पुनर्जीवन उपायों की आवश्यकता हो सकती है। फिर भी जन्म के समय नवजात शिशु को श्वास लेने में अवरोध नवजात शिशुओं में मृत्यु दर एवं विकृति (रूग्णता) का एक प्रमुख कारण है एवं भारत में यह सभी नवजात मृत्यु के पांचवे हिस्से में योगदान देता है।
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 5 (एनएफएचएस-5) गणनानुसार भारत में प्रति हजार जीवित जन्म में नवजात शिशु मृत्यु दर (एनएमआर) 24.9 प्रतिशत शिशु मृत्यु दर (आईएमआर) 35.2 प्रतिशत एवं 5 वर्ष तक बच्चों में मृत्यु दर (यूएसएमआर) 41.9 प्रतिशत है। इन मृत्यु दरों को सही तकनीक और नवजात पुनर्जीवन के लिये उठाए कदमों से रोका जा सकता है। इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए इंडियन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक के डॉ. संतोष जेमनानी, बाल्य एवं नवजात विज्ञान विभाग, स्टार चिल्ड्रन हास्पिटल बिलासपुर डॉ. अभिषेक कलवानी, सहायक प्राध्यायक सीआईएमएस बिलासपुर, डॉ. अनिश अकनानी, डायरेक्टर लोटश चिल्ड्रन, हास्पिटल बिलासपुर प्रशिक्षक के रूप में नवजात शिशुओं के आंकलन करने और उन्हें पुनर्जीवित करने के विभिन्न पहलुओं पर प्रशिक्षण दिया गया। वरिष्ठ डॉक्टर्स के अनुभव और तकनीक की मदद से नवजातों को बचाने के तरीकों पर भी चर्चा हुई। प्रशिक्षण के दौरान कई केस पर डिटेल से बात हुई जिससे बीमारी को समझा और उसे समय रहते बेहतर तरीके से ठीक किया जा सके। गोल्डन आवर्स में स्वास्थ्यकर्मी कैसे और क्या करें इसका भी प्रशिक्षण दिया गया।
प्रशिक्षण में ये रहे शामिल
कौशल प्रशिक्षण सत्र में शहर के कान्हा हॉस्पिटल, अंकुर हॉस्पिटल, पद्मावति हॉस्टिल खरसिया के स्टाफ नर्सों ने भाग लिया। उक्त कार्यक्रम में इंंडियन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक रायगढ़ के प्रसिद्ध बाल्य एवं शिशु रोग विशेषज्ञों के मुख्य चिकित्सा के रूप में उपस्थित रहे। मुख्य अतिथि के रूप में डॉ. केएन पटेल डॉ एमएम श्रीवास्तव, डॉ. रघुवर पटवा, डॉ. लोकेश षड़ंगी (सभी सीनियर पीडियाट्रिशियन) उपस्थित रहे। उक्त कार्यक्रम डॉ.एलके सोनी (आयोजन अध्यक्ष) डॉ. गौरव क्लाडियस (आयोजन सचिव), डॉ. अंशुल विक्रम श्रीवास्तव (आयोजन कोषाध्यक्ष) के समुचित सहयोग से संपन्न हुआ।






