छत्तीसगढ़

भारतीय जनता युवा मोर्चा द्वारा आयोजित मॉक पार्लियामेंट कार्यक्रम में शामिल हुए मुख्यमंत्री, कहा-  आपातकाल की दुर्दशा शब्दों में व्यक्त कर पाना नामुमकिन

 

रायपुर। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने कहा है कि 25 जून 1975 हमारे देश के लिए काला दिन था, उस समय तत्कालीन कांग्रेस की सरकार में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने राजनीतिक स्वार्थ के कारण आपातकाल थोप दिया था। वह समय देश के लिए लड़ने वाले सभी लोगों को अकारण ही जेल में डाल दिया गया था, और वहां किस तरह की दुर्दशा थी उन्हें शब्दों में जाहिर नहीं किया जा सकता। श्री साय बुधवार को राजधानी रायपुर के अग्रसेन धाम में भारतीय जनता युवा मोर्चा द्वारा देश में 25 जून 1975 को लगे आपातकाल के काले अध्याय के 50 वर्ष पूरे होने पर आयोजित मॉक पार्लियामेंट (युवा संसद) कार्यक्रम को सम्बोधित कर रहे थे।

 

प्रदेश के मुख्यमंत्री साय ने मॉक पार्लियामेंट को सम्बोधित करते हुए कहा कि पार्लियामेंट में युवाओं ने सांसद की भूमिका भलीभांति निभाई है। सभी ने बहुत अच्छे से मुद्दों को कवर किया और उनमें विस्तृत और सार्थक चर्चा हुई। हम सभी आपातकाल को संविधान हत्या दिवस के रूप में मानते हैं। श्री साय ने कहा कि मीसाबंदियों का दर्द किसी ने नहीं समझा। जिन्होंने अपनों को खोया, उनके दर्द को समझना ही लोकतंत्र सेनानियों के बलिदान का सम्मान है। हमारी सरकार ने उन्हें मिलने वाली पेंशन बहाल कर इस सम्मान को बढ़ाया।

 

मुख्यमंत्री  साय ने आपातकाल के दौरान अपने राजनीतिक गुरु के साथ हुए अन्याय का जिक्र करते हुए बताया, “स्वर्गीय बालकृष्ण शर्मा, जिन्हें लोग पूरे जशपुर कुनकुरी क्षेत्र में देवकी महराज के नाम से जानते थे, उन्हें मैं अपना राजनीतिक गुरु मानता था। मैं उनके पास हमेशा बैठा करता था, उन्हें भी आपातकाल में 19 महीने जेल में रखा गया। बावजूद इसके उन्होंने कभी अपनी जीवटता नहीं छोड़ी। वह अपने परिवार के इकलौते कमाऊ सदस्य थे, उनके जेल जाने के बाद उनका परिवार दाने-दाने का मोहताज़ हो गया। इसी तरह कई स्वतंत्रता सेनानियों के परिवार को कई बहुत दिक्कतों का सामना करना पड़ा।” श्री साय ने कहा कि उस समय मीडिया पर भी सेंसरशिप लगाई गयी। लोकतंत्र की इस कदर हत्या की गई। जबरन नसबंदी जैसी क्रूरता भी की गई। छत्तीसगढ़ में 350 से अधिक मीसाबंदियों का परिवार है। डॉ. रमन सिंह के मुख्यमंत्रित्व काल में इनके सम्मान में कुछ राशि देने का निर्णय लिया गया, जिसे बीते 5 वर्ष सरकार में कांग्रेस की भूपेश सरकार ने बंद कर दिया। ऐसा दुबारा न हो, इसलिए हमारी सरकार आने के बाद हमने विधानसभा में लोकतंत्र सेनानी सम्मान विधेयक लाकर कानून भी बना दिए हैं। अब सरकार कोई भी हो यह राशि मिलनी बंद नहीं होगी।

 

युवाओं के बीच आपातकाल के काले अध्याय का सच पहुँचाना बहुत आवश्यक : विस अध्यक्ष डॉ रमन सिंह

इस मौके पर विधानसभा अध्यक्ष डॉ. रमन सिंह ने कहा कि संसद जैसे मंच पर बोलना हर युवा के लिए गर्व और सम्मान की बात होती है। यह मंच न केवल ज्ञान का विस्तार करता है, बल्कि हमें हमारे देश के प्रति जिम्मेदारी का अहसास भी कराता है। डॉ. सिंह ने कहा कि जब भी हमारे देश पर संकट आया है, तब हमारे युवाओं ने आगे बढ़कर रास्ता दिखाया है।

 

विधानसभा अध्यक्ष डॉ. सिंह ने कहा कि आज हम उस समय को याद करने के लिए जुटे हैं, जब देश का लोकतंत्र खतरे में था। उस दौर को हम “आपातकाल” कहते हैं। इस युवा संसद का मकसद सिर्फ इतिहास जानना नहीं है, बल्कि उससे सीख लेना है, ताकि आगे चलकर हम कोई ऐसी गलती न दोहराएँ जो देश को नुकसान पहुँचाए। डॉ. सिंह ने आगे कहा कि यह अवसर हमें उस कालखंड की त्रासदी की याद दिलाता है, जब देश की आवाज को दबाने का प्रयास किया गया था। ऐसे में यह मंच हमें प्रेरित करता है कि हम अपने लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा हेतु सदैव सजग और सक्रिय रहें। 25 जून 1975 इतिहास का वह “काला दिवस” था, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने सत्ता के नशे में चूर होकर संविधान के अनुच्छेद 352 का दुरुपयोग कर भारत पर आपातकाल थोपा। यह राष्ट्र की आत्मा इसके संविधान, इसकी जनता और इसकी स्वतंत्र चेतना पर सीधा हमला था। डॉ. सिंह ने इस युवा संसद को विचारशील मंच बताते हुए कहा कि जहाँ न केवल बहस और विमर्श होगा, बल्कि लोकतंत्र की नींव को पुनः मजबूत करने का संकल्प भी लिया जाएगा। आपातकाल की पृष्ठभूमि तो सन 1974 से तब शुरू हुई जब गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री चिमन भाई पटेल पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे। उस समय देश की स्थिति बेहद जटिल थी। महंगाई चरम पर थी, बेरोजगारी बढ़ रही थी और शासन की कुनीतियों के कारण आम जनता में असंतोष फैलने लगा था। विशेष रूप से युवा वर्ग, जो देश की सबसे बड़ी शक्ति था, वह शासन की नीतियों से त्रस्त होकर आक्रोशित होने लगा। तब युवा छात्रों ने भ्रष्टाचार में लिप्त चिमनभाई पटेल की सरकार के खिलाफ नवनिर्माण आंदोलन छेड़ा। छात्रों के इस आन्दोलन में आगे चलकर शिक्षक, व्यापारी, मजदूर, महिला और मध्यमवर्ग लाखों लोग एक साथ उठ खड़े हुए। जो पूरे गुजरात में “नवनिर्माण आंदोलन” के नाम से प्रसिद्ध हो गया। यह स्वतंत्र भारत में पहला ऐसा जनांदोलन था, जिसमें सामाजिक, आर्थिक और नैतिक शुद्धता की मांग लेकर पूरा समाज एकजुट हुआ। इस जनदबाव का असर इतना व्यापक हुआ कि प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी को फरवरी 1974 में चिमनभाई पटेल की सरकार को बर्खास्त करना पड़ा। यह घटना कांग्रेस के शासन के खिलाफ उभरते जनाक्रोश की पहली बड़ी जीत थी, जिसने आगे चलकर सम्पूर्ण क्रांति और आपातकाल की पृष्ठभूमि को मजबूत किया।

 

विधानसभा अध्यक्ष डॉ. सिंह ने कहा कि इस आंदोलन की ऊर्जा और जनता की एकजुटता ने देशभर के युवाओं को प्रेरित किया, विशेषकर बिहार के छात्र संगठनों को। यही वह क्षण था, जब देश के महान स्वतंत्रता सेनानी और समाजवादी चिंतक लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने इस उभरती चेतना को दिशा देने का निर्णय लिया। उन्होंने गुजरात आंदोलन से प्रेरित होकर 1974 में “संपूर्ण क्रांति” का नारा दिया। जयप्रकाश नारायण ने कहा कि यह केवल सरकार बदलने का नहीं, व्यवस्था बदलने का आंदोलन है। बिहार में भी छात्रों ने भ्रष्टाचार और बेरोजगारी के खिलाफ आंदोलन छेड़ा, जिसे जेपी ने नेतृत्व दिया। वहीं 1971 के आम चुनाव में रायबरेली सीट से श्रीमती इंदिरा गांधी ने समाजवादी नेता राजनारायण को हराया। लेकिन राजनारायण ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनावी धांधली की याचिका दायर की। 12 जून 1975 को न्यायमूर्ति जगमोहन लाल सिन्हा ने इंदिरा गांधी को चुनावी भ्रष्टाचार का दोषी ठहराते हुए उनकी संसद सदस्यता को रद्द कर दिया। उन्हें 6 वर्षों के लिए चुनाव लड़ने से अयोग्य घोषित कर दिया गया। डॉ. सिंह ने कहा कि इस फैसले ने कांग्रेस की सत्ता की जड़े हिला दीं, और उसी डर में 25 जून 1975 को आपातकाल की घोषणा कर दी गई। संविधान का अनुच्छेद 352 सत्ता को बचाने के लिए हथियार बना लिया गया। यह केवल संवैधानिक संकट नहीं था, यह भारत के लोकतंत्र पर तानाशाही की चोट थी। प्रेस की आज़ादी छीन ली गई। इंडियन एक्सप्रेस और जनसत्ता जैसे अखबारों के संपादकीय पृष्ठ रिक्त छपते थे। रेडियो और दूरदर्शन कांग्रेस का प्रचार माध्यम बन गए। मीसा (मेन्टेनेन्स ऑफ इंटरनल सिक्यूरिटी एक्ट) के तहत बिना सुनवाई लाखों गिरफ्तारियाँ हुई। 60 लाख से अधिक लोगों की जबरदस्ती नसबंदी कर दी गई। इनमें 16 साल के किशोर से लेकर 70 साल के बुजुर्ग तक शामिल थे। संघ और जनसंघ के हजारों कार्यकर्ताओं को जेलों में रखा गया। अदालतें दबाव में रहीं, न्यायाधीशों को पदों से हटाया गया या ट्रांसफर कर दिया गया। लोकतंत्र का हर स्तंभ विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका और मीडिया झुकाया गया। इस पूरे अंधकारमय कालखंड में यदि किसी ने सच्चे लोकतंत्र की मशाल थामे रखी, तो वे थे मीसा बंदी, जिनमें अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, जयप्रकाश नारायण, नानाजी देशमुख, मुरली मनोहर जोशी जैसे महापुरुष शामिल थे। उन्होंने कांग्रेस की सत्ता के आगे कभी सिर नहीं झुकाया। वे लोकतंत्र के असली प्रहरी थे।

 

विधानसभा अध्यक्ष डॉ. सिंह ने कहा कि आपातकाल के विरोध में जो जनआंदोलन शुरू हुआ, वही आगे चलकर एक राजनीतिक विकल्प के रूप में विकसित हुआ। भारतीय जनसंघ, जो उस समय एक बड़ा विपक्षी संगठन था, ने राष्ट्रव्यापी आंदोलन में भाग लिया। हजारों कार्यकर्ताओं को जेल में डाला गया, लेकिन जनसंघ का हौसला नहीं टूटा। 1977 में जब आपातकाल को शिथिल कर लोकसभा चुनाव की घोषणा की गई,, तब जनता पार्टी का गठन हुआ जिसमें जनसंघ भी शामिल था। यह गठबंधन देश का पहला वास्तविक विपक्ष बना जिसने सत्ता परिवर्तन का मार्ग प्रशस्त किया। जनसंघ की ओर से अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी और नानाजी देशमुख जैसे नेताओं ने इस गठबंधन को सशक्त नेतृत्व प्रदान किया। अटल जी को विदेश मंत्री बनाया गया और उन्होंने संयुक्त राष्ट्र में हिंदी में भाषण देकर देश की प्रतिष्ठा को नई ऊँचाई दी।

 

इंदिरा गांधी ने सत्ता की लालच में देश को आपातकाल की आग में झोंका : उप मुख्यमंत्री अरुण साव

 

छत्तीसगढ़ के उप मुख्यमंत्री अरुण साव ने बुधवार को श्री अग्रसेन धाम में भारतीय जनता युवा मोर्चा द्वारा आपातकाल की 50वीं बरसी पर आयोजित मॉक पार्लियामेंट में कहा कि, देश ने आपातकाल की जिस विभीषिका को झेला है, उसे भावी पीढ़ी को जानने और समझने की आवश्यकता है।

 

उप मुख्यमंत्री  साव ने कहा कि, इंदिरा गांधी ने सत्ता की लालच में पूरे देश को आपातकाल में झोंका। नागरिक अधिकारों का हनन किया। एक लाख से अधिक लोगों को जेल में डाल दिया। प्रेस पर सेंसरशिप लागू की गई। दो सौ से अधिक पत्रकारों को जेल भेज दिया। लोकतंत्र के चारों स्तंभ को कमजोर करने का काम किया। श्री साव ने कहा कि, भारत में आपातकाल की घोषणा तीन बार की गई है। 26 अक्टूबर 1962 को भारत-चीन युद्ध के कारण पहली बार राष्ट्रीय आपातकाल घोषित किया गया, जो 10 जनवरी 1968 तक रहा। दिसंबर 1971 भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान दूसरा राष्ट्रीय आपातकाल घोषित हुआ, जो 21 मार्च 1977 तक प्रभावी रहा। वहीं 25 जून 1975 को आंतरिक अशांति के आधार पर तीसरा आपातकाल घोषित किया गया, जो 21 मार्च 1977 तक चला।

 

उप मुख्यमंत्री  साव ने कहा कि इंदिरा गांधी ने 1971 में भारी बहुमत से केंद्र में सरकार बनाई, लेकिन देश इस समय भ्रष्टाचार और आर्थिक मंदी से जूझ रहा था। गुजरात में छात्रों ने आंदोलन किया जो बिहार तक पहुँच गया। गुजरात केऋ मुख्यमंत्री को बर्खास्त कर दिया गया। बिहार में जयप्रकाश नारायण ने संपूर्ण क्रांति का नारा देकर सत्ता को सीधी चुनौती दी। इससे इंदिरा गांधी की पूरी सत्ता हिल गई। इधर, 12 जून 1975 को इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति जगमोहन लाल सिन्हा ने इंदिरा गांधी के रायबरेली के चुनाव में सरकारी मशीनरी के इस्तेमाल के आरोप को सही पाते हुए इंदिरा गांधी के निर्वाचन को रद्द कर दिया और उन्हें 6 साल तक चुनाव लड़ने से रोका। 25 जून 1975 को इंदिरा गांधी ने आंतरिक अशांति का हवाला देते हुए संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा कर दी। जबकि देश में ऐसी कोई स्थिति नहीं थी। केवल सत्ता के लिए देश को आपातकाल की आग में झोंक दिया, जिसे भावी पीढ़ी को समझने की जरूरत है।

चौधरी, कौशिक, शर्मा व डंगस ने भी रखे विचार

 

वित्त मंत्री  ओपी चौधरी ने बताया कि इतिहास में केवल दो ही घटनाएं हैं, जो कांग्रेस की व्यक्तिवादी राजनीति का सबसे बड़ा उदहारण है कि देश में केवल दो प्रधानमंत्री ने स्वयं को भारत रत्न घोषित किया, इसमें पहला नाम पंडित जवाहर लाल नेहरु और दूसरा स्वयं इंदिरा गांधी नाम का है। मॉक पार्लियामेंट (युवा संसद) में स्पीकर की भूमिका में भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ सदस्य एवं बिल्हा विधायक श्री धरमलाल कौशिक ने युवा मोर्चा के पदाधिकारियों एवं सदस्यों को मॉक पार्लियामेंट के आयोजन की बधाई दी। श्री कौशिक ने कहा कि आपातकाल हिन्दुस्तान की जनता के मौलिक अधिकारों का हनन कर उन्हें धोखा देना था| आपातकाल देश के विरुद्ध रहा। भाजपा प्रदेश उपाध्यक्ष शिवरतन शर्मा ने पार्लियामेंट को सम्बोधित करते हुए कहा कि पार्लियामेंट में सभी सदस्यों ने अपनी जिम्मेदारी का अच्छी तरह निर्वहन किया। उन्होंने आपातकाल के दिनों को याद करते हुए बताया कि उस समय जनता ने कांग्रेस को उखाड़कर भारतीय जनता पार्टी को सबसे बड़ा जनसमर्थन दिया था, उस समय की सरकार बनाने में सबसे बड़ा त्याग भारतीय जनसंघ के कार्यकर्ताओं ने किया था, जिन्होंने स्वयं को भारतीय जनता पार्टी में विलीन कर दिया। श्री शर्मा आपातकाल के दिन को देश के लिए दुर्भाग्यजनक बताया। भाजयुमो प्रदेश प्रभारी आलोक डंगस ने भाजयुमो कार्यकर्ताओं को बधाई देते हुए कहा कि आप सभी ने बहुत गंभीरता और संवेदनशीलता के साथ आपनी बात रखी है। आप सभी की मेहनत ने मॉक पार्लियामेंट को सफल बनाया।

 

ये रहे उपस्थित

 

मॉक पार्लियामेंट में मंत्री टंकराम वर्मा, पूर्व विधानसभा अध्यक्ष गौरीशंकर अग्रवाल, विधायक गुरु खुशवंत साहेब, रायपुर (शहर) जिला भाजपा अध्यक्ष रमेश ठाकुर, छत्तीसगढ़ राज्य भंडार गृह निगम के अध्यक्ष चंदूलाल साहू, महापौर रामू रोहरा, छत्तीसगढ़ राज्य युवा आयोग के अध्यक्ष विश्वविजय सिंह तोमर, भाजपा प्रदेश उपाध्यक्ष शिवरतन शर्मा, रायपुर विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष नंदकुमार साहू, प्रदेश महामंत्री संजय श्रीवास्तव, अनुज शर्मा, नंदे साहू, प्रदेश प्रवक्ता अमित साहू, भाजयुमो सह-प्रभारी अभय गुप्ता, जिला ग्रामीण अध्यक्ष श्याम नारंग, नवीन मार्कण्डेय, सच्चिदानंद उपासने, मृत्युंजय दुबे, वैभव बैस, उपकार चंद्राकर, अंकित जायसवाल, पीयूष सिंह, आकाश विग, गोविंदा गुप्ता, फ़नेंद्र भूषण वर्मा, भूपेंद्र नाग, उत्कर्ष त्रिवेदी, अभिषेक धनगर, प्रखर मिश्रा, राजा पांडेय, उमाशंकर बघेल, ज्ञान चंद्राकर, प्रणव पांडेय आदि उपस्थित रहे।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button