Raigarh News: चक्रधरपुर के किसान ने 10 एकड़ में किया आयल पाम रोपण: आय का बनेगा स्थायी जरिया, उद्यान विभाग की तकनीकी मदद से खेती को मिली नई दिशा

केन्द्र और राज्य सरकार से दो लाख तक का अनुदान, अंतरवर्तीय फसलों से होगी अतिरिक्त आमदनी
रायगढ़, 4 अगस्त 2025/ किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए शासन के निर्देशानुसार एवं कलेक्टर मयंक चतुर्वेदी के मार्गदर्शन में जिले में उद्यानिकी फसलों को बढ़ावा दिया जा रहा है। इसी कड़ी में रायगढ़ विकासखंड के ग्राम चक्रधरपुर के किसान एवं सेवानिवृत्त प्राचार्य राजेंद्र मेहर ने उद्यान विभाग के सहयोग से अपने 10 एकड़ खेत में 570 आयल पाम के पौधों का रोपण किया है। श्री मेहर ने बताया कि यह भूमि लंबे समय से खाली पड़ी थी और वे काफी समय से उद्यानिकी फसल लेने का विचार कर रहे थे। तकनीकी जानकारी के अभाव में शुरुआत नहीं कर पाए थे, लेकिन उद्यान विभाग से संपर्क के बाद उन्हें न सिर्फ आवश्यक मार्गदर्शन मिला, बल्कि आयल पाम की खेती से होने वाले लाभों की जानकारी भी दी गई। इससे प्रेरित होकर उन्होंने यह निर्णय लिया।
तीसरे वर्ष से शुरू होगा उत्पादन, मिलेगा स्थायी लाभ
उद्यानिकी विभाग के अधिकारी ने बताया कि ऑयल पाम योजना के अंतर्गत प्रति हेक्टेयर 29 हजार रुपये मूल्य के 143 पौधे नि:शुल्क दिए जा रहे हैं। पौध रोपण, फेंसिंग, सिंचाई, रखरखाव और अंतरवर्तीय फसलों की कुल लागत लगभग 3.90 रुपए लाख से 4 रुपए लाख प्रति हेक्टेयर आती है। इस पर भारत सरकार द्वारा 1 लाख रुपए तथा राज्य शासन द्वारा अतिरिक्त 1 लाख रुपए का अनुदान प्रदान किया जा रहा है। शेष राशि के लिए बैंक ऋण सुविधा भी उपलब्ध है। ऑयल पाम फसल का उत्पादन तीसरे वर्ष से शुरू होकर लगभग 25 से 30 वर्षों तक लगातार होता है। पौधों की उम्र बढऩे के साथ उपज भी बढ़ती है। एक हेक्टेयर से हर वर्ष 15 से 20 टन उपज मिलने की संभावना होती है, जिससे कृषक को 2.5 लाख रुपए से 3 लाख रुपए तक की सालाना आय हो सकती है।
बिक्री की भी चिंता नहीं, समर्थन मूल्य पर खरीदी का पक्का इंतजाम
ऑयल पाम पौधों के बीच पर्याप्त दूरी होने के कारण किसान वहां सब्जी या अन्य अंतरवर्तीय फसलें भी ले सकते हैं। इसके लिए सरकार द्वारा सब्सिडी भी दी जा रही है। इतना ही नहीं 2 हेक्टेयर से अधिक रोपण पर बोरवेल खनन हेतु 50 हजार रुपए तक का अतिरिक्त अनुदान भी दिया जा रहा है। उत्पादित फसल की बिक्री के लिए भारत सरकार ने अनुबंधित कंपनियों की व्यवस्था की है, जो किसानों के खेत से ही न्यूनतम समर्थन मूल्य पर फसल की खरीदी करती हैं। फसल का भुगतान सीधे किसानों के बैंक खाते में डीबीटी (डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर) के माध्यम से किया जाता है।