रायगढ़। सुर संगीत और ताल कलाकारों की वह पहचान है जिसके बल बुते पर उसकी प्रतिभा निखर कर सामने आती हैं और उसे निखारने का बेहतरीन काम कर रही है। देश भर में संगीत का जौहर दिखा चुके वैष्णव संगीत महाविद्यालय रायगढ़ के मधु गुंजन का मंच जिसमें परफॉर्मेंस कर कलाकार को अपनी वह सच्ची पहचान मिल जाती है। जिसके बाद वह पहचान का मोहताज नहीं होना होता । ऐसे ही नए प्रतिभाओं को निखारने और उभरने का काम कर रही है। राष्ट्रीय स्तर के मधु गुंजन का मंच जो प्रतिभाशाली कलाकारों का खुला मंच है। खास बात यह है कि ऐसे ही प्रतिभाशाली कलाकारों को उभरने के लिए आगामी 15 16 एवं 17 को रायगढ़ नगर निगम के एडिटोरियम में कार्यक्रम आयोजित करने जा रही है। जिसमें नए-पुराने कलाकार अपनी प्रतिभाओ का जौहर दिखाएंगे। इसे लेकर आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार की राष्ट्रीय छात्रवृत्ति प्राप्त महाविद्यालय के जूनियर एवं सीनियर फैलोशिप कत्थक शरद वैष्णव ने बताया कि मधु गुंजन एक ऐसा मंच है। जिसमें प्रतिभावान कलाकारों को परफॉर्मेंस दिखाने का मंच प्रदान करता है। जिसमें कलाकार अपनी प्रतिभा का जौहर दिखता है। उन्होंने यह भी बताया कि ऐसा भी कई कलाकार होते हैं जो चुप रहते हैं परंतु उनके अंदर प्रतिभाओं का भंडार होता है। उनकी प्रतिभाओं को बाहर निकालने के लिए प्रेरित किया जाता है। उन्होंने बताया कि मधु गुंजन का आयोजन 15-16 और 17 को रायगढ़ नगर निगम के ऑडिटोरियम में आयोजित होंगे। उसे देखने के लिए बिल्कुल निशुल्क होगा। शहर का कोई भी नागरिक कलाकार या आम इंसान बिल्कुल निसंकोच होकर देखने आ सकता है। उन्होंने बताया कि इस आयोजन में भाग लेने के लिए देश के बड़े-बड़े शहरों से लगभग 300 से अधिक कलाकारों ने पंजीयन कराया है।
राजा चक्रधर सिंह के दरबार का प्रमुख रतन ने रखा था नीव
खास बात यह है कि संगीत सम्राट राजा चक्रधर सिंह के रायगढ़ घराने से ताल्लुक रखने वाले उसके दरबार के प्रमुख रतन स्वर्गीय पंडित फिरतू महाराज जी ने रायगढ़ की कला परंपरा को जन-जन तक पहुंचाने के उद्देश्य से सन 1972 में श्री वैष्णव संगीत महाविद्यालय की स्थापना की और साथ ही इस कला को आत्मसात करने वाले विद्यार्थियों की योगदान को प्रमाणित करने हेतु प्रयाग संगीत समिति इलाहाबाद से संबंध का प्राप्त की। जिसमें प्रतिवर्ष सैकड़ो छात्र-छात्राओं को इस कला को आत्मसात करने का अवसर प्राप्त होता है। रायगढ़ कथक घराने को प्रसिद्धि दिलाने के साथ ही मजबूत नीव रखकर महाराज ने 19 नवंबर 1993 को संगीत जगत को अलविदा कह गए। स्वर्गीय पंडित फिर तो महाराज की स्मृति में उनके पुत्र स्वर्गीय पंडित राम मूर्ति वैष्णव एवं पुत्री बसंती वैष्णव तथा नाती पंडित सुनील वैष्णव ने सन 1995 में मौजूद गुंजन संगीत समिति का निर्माण किया। जिसके मुख्य उद्देश्यों में रायगढ़ की कला परंपरा संस्कृति एवं छत्तीसगढ़ की लोक कला महाविद्यालय का निर्माण कर कल का व्यापक प्रचार प्रसार संगीत साधकों को मंच प्रदान करने का उद्देश्य से संगीत समारोह का आयोजन प्रमुख रूप से किया जाने का शामिल किया गया।
बगैर किसी सहयोग के मजबूती से डटी है 40 की टीम
संगीत साधकों के लिए हमेशा अपने अमूल्य समय का योगदान देने वाले शरद वैष्णव ने बताया कि मधु गुंजन मंच के इस योगदान में उनके अकेले का हाथ नहीं है। इसके लिए उनके 40 लोगों के साथ टीम मजबूती से काम करती आई है और इस मंच में संगीत साधनों को जौहर को उभरने का योगदान दे रही है। जबकि इस संगीत साधना वह कार्यक्रमों का आयोजन में शासन की ओर से कोई सहयोग प्राप्त नहीं होता।