Vaibhav Suryavanshi: फिलहाल विश्व क्रिकेट में जो सबसे चर्चित विषय है, उस पर ना कुछ लिखूं, वो शायद मुनासिब नहीं होगा। चर्चा का विषय है कि भारत के बिहार राज्य के समस्तीपुर जिले के ताजपुर ब्लॉक के छोटे से गांव मोतीपुर के एक 14 वर्षीय बच्चे ने विश्व की सबसे बड़ी क्रिकेट लीग में विस्फोटक आगाज़ किया है। वैसे तो यह बच्चा IPL के ऑक्शन के बाद से ही सोशल मीडिया पर छाया हुआ था, लेकिन अपने पदार्पण मैच के पहली ही गेंद पर विशाल छक्का लगाकर लगातार सोशल मीडिया पर सुर्खियां बटोर रहा है। यूं कहे तो वैभव ने पहले ही गेंद में छक्का मार कर अपने भविष्य का आगाज कर दिया है। केवल 14 वर्ष और 23 दिन के कम उम्र में ही IPL खेलकर, क्रिकेट की दुनिया में नामुमकिन को बिहार के इस लाल ने मुमकिन कर दिया है। वैभव के पदार्पण पर गूगल के CEO सुंदर पिचई ने भी सोशल मीडिया पर टिप्पणी की थी कि वे एक आठवां क्लास के बच्चे को विश्व की सबसे बड़ी क्रिकेट लीग में खेलते हुए देखने के लिए रात में जग रहे होते हैं।





लेकिन उस बच्चे के इस मुकाम को हासिल करने के पीछे उसके खुद के परिश्रम और साथ में उसके परिवार के संघर्ष की कहानी पर अगर चर्चा न हो तो शायद इस सफलता की चर्चा अधूरी रह जाएगी। जब बिहार के उस मोतीपुर गांव में सुबह 3 बजे से एक मां अपने 8-9 साल के बेटे के लिए नाश्ता बनाती है कि वक्त कम है क्योंकि बेटे को बस पकड़नी है। दरवाजे पर पिता इंतज़ार कर रहे होते हैं कि उन्हें बेटे को लेकर 120 किलोमीटर की दूरी तय करके पटना पहुंचना है। और इस सिलसिला के आगे कोई भी मौसम चाहे ठंड हो या भीषण गर्मी कोई फर्क नहीं पड़ता है। फिर पटना पहुंचकर जेनेक्स क्रिकेट अकादमी में वह बच्चा लगातार घंटों तक बल्ला भांज रहा होता है, बिना रुके, बिना थके और भूख क्या है, नहीं पता। सुबह के 7 बजे से लगातार मेहनत और थकान क्या है, अंदाजा ही नहीं है। थोड़ी देर सुस्ताने के बाद प्रक्रिया दोबारा शुरू होती है। अब शाम के 5 बज रहे होते हैं और सूरज ढल रहा होता है और अब घर लौटने का वक्त है। फिर से 120 किलोमीटर का सफर तय करके वापिस मोतीपुर भी आना है जहां मां इंतजार कर रही होती है। इस तरह हफ्ते में 4 दिन 200 किलोमीटर से ज्यादा की यात्रा और 8-10 घंटों का शारीरिक श्रम करते बेटे को देखकर किसान पिता को उम्मीद है कि बेटे की मेहनत एक दिन रंग लाएगी।
मेहनत और संघर्ष का यह सिलसिला कई वर्षों तक जारी रहा, तब जाकर वैभव सूर्यवंशी विश्वपटल पर उभर कर आया है। हालांकि वह बच्चा शुरू से ही प्रतिभावान था। वैभव के कोच मनीष ओझा सर कहते हैं कि जब भी उसे किसी नए शॉट का शैडो या ड्रिल्स कराया जाता था, वह एक बार में ही समझ लेता था और शायद ही उसे कभी दुबारा समझाने की जरूरत पड़ती थी। इस प्रकार कहें कि प्रतिभा के साथ–साथ खुद के परिश्रम और परिवार के संघर्ष और समर्थन से ही कोई बच्चा सफलता के इस शिखर पर पहुंचता है। एक क्रिकेटर के सफलता के पीछे तीन स्तंभ होते हैं, पहला खुद वो खिलाड़ी, दूसरा उसका कोच जो उसे सिखाता है और सही दिशा दिखाता है और तीसरा स्तंभ उसके माता–पिता। इन तीनों स्तंभ में से कोई अगर ढीला हो तो वैभव जैसी सफलता पाना मुश्किल हो सकता है।
इन सब के साथ–साथ इससे जुड़े अन्य महत्वपूर्ण पहलुओं पर भी चर्चा करना जरूरी है। वैभव जिस बिहार राज्य से क्रिकेट खेलते हैं, उस राज्य के क्रिकेट संघ को BCCI से कुछ साल पहले ही मान्यता मिली है। अतः उपरोक्त संघर्ष एक ऐसे राज्य में जारी था, जहां खिलाड़ियों के लिए अवसरों के साथ-साथ बेसिक इन्फ्रास्ट्रक्चर की भी भारी कमी है। एक ऐसे राज्य में जहां लड़के-लड़कियों को खेलने के लिए पलायन करना पड़ता है, वहां एक परिवार का यह संघर्ष क्या वाकई फलीभूत हो सकता था?नियति सब देख रही थी और रच रही थी। अब वही लड़का सिर्फ 14 साल की उम्र में दुनिया की सबसे बड़ी क्रिकेट लीग में खेलता हुआ नजर आ रहा है। यह कहानी ब्रायन लारा और युवराज सिंह के बैटिंग स्टाइल के मिश्रण वाले और सिर्फ 14 साल की उम्र में राजस्थान रॉयल्स के लिए पहला मैच खेल रहे वैभव सूर्यवंशी की है। इस लड़के का IPL की किसी टीम में जगह बनाना एक परिवार के संघर्ष की सफलता की कहानी है। वैभव के इतनी कम उम्र में इस मुकाम तक पहुंचने पर बिहार क्रिकेट एसोसिएशन के लिए भी एक बहुत बड़ी सफलता कही जा सकती है। हम उम्मीद करते हैं कि वैभव इसी तरह अपनी आक्रामक शैली को बरकरार रखते हुए शानदार प्रदर्शन जारी रखेंगे और जल्द ही टीम इंडिया की ओर से भी खेलेंगे।
बिनोद कुमार चौधरी
(लेखक क्रिकेट के विश्लेषक हैं)
