पिछले 10-15 वर्षों में हमने कई भारतीय दिग्गज क्रिकेटर को अचानक से संन्यास की घोषणा करते देखा है। जबकि सचिन तेंदुलकर और उनसे पहले भी अधिकतर खिलाड़ी जब संन्यास लेते थे तो वाकायदा बोर्ड के तरफ से आधिकारिक घोषणा होती थी और खुद खिलाड़ी भी मीडिया के सामने आकर कहते थे कि मैं आगे इस मैच को खेलने के बाद संन्यास ले लूंगा, लेकिन आजकल फैशन बदल गया है। जो खिलाड़ी वर्षों अपने प्रदर्शन के दम पर देश और दुनिया भर में करोड़ों फैंस बनाते हैं, लेकिन उन्हें उसी खेल को छोड़ते समय उचित मान–सम्मान नहीं दिया जाना कितना दुखद है, यह वो खिलाड़ी ही महसूस कर सकता है।
एक अंतरराष्ट्रीय स्तर का खिलाड़ी होने के लिए कितने तप और मेहनत की जरूरत होती है, वह हम जानते हैं। चलिए यह भी मान लेते हैं कि हर किसी को अपना कैरियर बनाने के लिए मेहनत तो करनी ही पड़ती है तभी हम अपने चाहे हुए मुकाम को पा सकते हैं। लेकिन एक खिलाड़ी मैदान में किए अपने प्रदर्शन से अपने साथ–साथ अपने देश का भी नाम रोशन करते हैं। और जिसने वर्षों तक अपने देश का नाम रोशन किया, उसकी विदाई तो सम्मानजनक होनी ही चाहिए। मेरा कहना है कि वकायदा उनके लिए एक विदाई मैच की घोषणा होनी चाहिए और उन्हें उचित आदर और सम्मान के साथ उनकी विदाई होनी चाहिए, जैसा महान सचिन तेंदुलकर के संन्यास के वक्त 2012 में उनके गृह मैदान वानखेड़े स्टेडियम में हुआ था।
बीते समय में हमने कई महान और विश्वप्रसिद्ध भारतीय क्रिकेटरों की विदाई मैदान में नहीं होते हुए देखा है, जिसमें सौरव गांगुली, वी वी एस लक्ष्मण, वीरेंद्र सहवाग, युवराज सिंह, आदि। ये वो खिलाड़ी हैं जिन्होंने क्रिकेट की दुनिया में वर्षों तक राज किया और अपने प्रदर्शन से विश्व में भारत का झंडा ऊंचा किया। लेकिन अफसोस है कि उन्हें अपना फेयरवेल स्पीच उस मैदान पर कहने को नहीं मिला जिस मैदान पर अपने हाथों में गेंद और बल्ले से हमें झूमने पर मजबूर करते थे और गर्व से हमारा सीना चौरा कर दिया करते थे।
उसी फेहरिस्त में रविचंद्रन अश्विन भी जुड़ गए हैं जिन्होंने १२ वर्षों के अपने क्रिकेट कैरियर में भारत के लिए अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में कुल 765 विकेट लिए और 4394 रन बनाएं, साथ ही वे भारत के ओर से टेस्ट क्रिकेट में अनिल कुंबले के बाद सर्वाधिक विकेट लेने वाले गेंदबाज हैं, लेकिन उन्हें विदाई मैच नसीब नहीं हुआ जिसके वे हकदार थे। यह भी सच है कि अश्विन अपने कैरियर के टॉप पर नहीं थे। लेकिन आज रिटायरमेंट के बाद भी वह अभी विश्व के 5वें रैंक के टेस्ट बॉलर हैं और ऑल राउंडर की लेटेस्ट लिस्ट में उनकी रैंक 3 है। बेशक, वह कम से कम 2 साल और खेल सकते थे।
यह संभव है कि टीम मैनेजमेंट से उनका कुछ विवाद हुआ हो या कोई बात उन्हें बुरी लगी हो। वरना, बीच सीरीज़ में कोई वापिस लौटकर नहीं आता, वह भी बिना किसी प्री-प्लानिंग के। मुझे लगता है टीम मैनजमेंट से यह चूक हुई है। इस गलती पर अश्विन के पिताजी के स्टेटमेंट ने भी मुहर लगा दी। अश्विन के ऑस्ट्रेलिया से देश वापसी पर उनके पिताजी ने जो बयान दिया है, उससे स्पष्ट होता है कि अश्विन ने सामान्य तरीके से संन्यास की घोषणा नहीं की है, बल्कि दुख और आत्मसम्मान को बचाने के चक्कर में उन्होंने जल्दबाजी में संन्यास की घोषणा की है। हम आशा करते हैं कि बोर्ड इस पर मंथन करेगी और आगे से अश्विन जैसे कद के किसी भी खिलाड़ी के साथ ऐसा नहीं होगा।
बिनोद कुमार चौधरी*
(लेखक क्रिकेट के विश्लेषक हैं।)