रायगढ़। सहस्त्रधारा या देव स्नान के बाद भगवान जगन्नाथ की तबीयत खराब हो जाती है। जिसके बाद 14 दिनों तक मंदिर के पट बंद हो जाते हैं। इन 14 दिनों में जगन्नाथ जी के दर्शन नहीं होते हैं और इस दौरान भगवान पर वो सभी नियम लागू होते हैं, जो मनुष्यों पर लागू होते हैं। वहीं इस संबंध में उत्कल सांस्कृतिक सेवा समिति के अध्यक्ष देवेष षडंगी ने बताया कि इन चौदह दिनों में सभी भगवान जगन्नाथ का खूब ध्यान रखते हैं और उनके शरीर का ताप या ज्वर कम करने के लिए उन्हें दवाई भी दी जाती है। ज्वर के कारण उनके शरीर की पीड़ा को कम करने के लिए खास जड़ी-बूटी से तैयार तेल से मालिश भी की जाती है। 14 दिनों के बाद जब मंदिर का कपाट खुलता है, उस दिन नेत्र उत्सव मनाया जाता है, आज के इस लेख में हम इस नेत्र उत्सव के बारे में जानेंगे।
यह है नेत्रोत्सव पूजा
14 दिनों के बाद 15वें दिन यानी आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि के दिन मंदिर के कपाट खोल दिए जाते हैं। इस कपाट खुलने और भगवान के दर्शन के अवसर पर विशेष रूप से नेत्रोत्सव मनाया जाता है। इस नेत्र उत्सव अनुष्ठान में भगवान जगन्नाथ, सुभद्रा और बलभद्र को नए नेत्र प्रदान किए जाते हैं, जिसके बाद सभी श्रद्धालु और भक्त भगवान के पहली बार दर्शन करते हैं।
नेत्रोत्सव के बाद रथयात्रा
नेत्र उत्सव के बाद से ही पूरे विश्व में जगन्नाथ रथ यात्रा का पर्व शुरू होता है। इस रथ यात्रा के भव्य उत्सव में भगवान जगन्नाथ, सुभद्रा और बलदाऊ के लिए विशाल और भव्य रथ बनाया जाता है। इस रथ को मंदिर से निकाला जाता है और तीनों देवों को भ्रमण कराया जाता है। भगवान जगन्नाथ, सुभद्रा और बलदाऊ के इस विशाल रथ को सभी श्रद्धालुओं की भीड़ खींचता है।
आज होगी नेत्रोत्सव पूजा
– श्री जगन्नाथ मंदिर के देवेश षडंगी ने बताया कि रथउत्सव यात्रा पूजा के अंतर्गत आज सुबह सात बजे से दोपहर बारह बजे तक श्री मंदिर के पट शुभ मुहूर्त में विशेष पूजा अर्चना के बाद खोले जाएंगे एवं विधि विधान से भगवान जगन्नाथ का नेत्रोत्सव संस्कार कराया जाएगा। जिसमें भगवान को विभिन्न औषधियों का सेवन कराने के पश्चात नेत्रों में काजल लगाकर पट वस्त्र पहनाकर श्रृंगार किया जाएगा तथा आरती एवं भोग का प्रसाद अर्पित महाप्रभु को किया जाएगा।
सात को रथयात्रा पहंडी पूजा
धार्मिक कार्यक्रम के अन्तर्गत आगामी सात जुलाई को दोपहर तीन बजे महाप्रभु जगन्नाथ, बलभद एवं सुभद्रा के साथ रथ पर आरुढ़ होकर अपनी मौसी रानी गुंडिचा देवी के यहाँ जाने हेतु निकलेंगे। वहीं रायगढ़ के राजपरिवार द्वारा भगवान के पहंडी कार्यक्रम का शुभारंभ रथ के आगे झाडू से बुहारकर किया जाएगा।