Raigarh News: विज्ञान का ज्ञान जीवन को दे नया आयाम – कृष्णा पटेल

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रायगढ़,चिस्दा. जवाहर नवोदय विद्यालय में राष्ट्रीय विज्ञान दिवस का आयोजन बहुत ही उत्साह के साथ किया गया। राष्ट्रीय विज्ञान दिवस महान भारतीय भौतिक विज्ञानी सर चंद्रशेखर वेंकटरमन द्वारा रमन प्रभाव की खोज में मनाया जाता है, जिसके लिए उन्हें 1930 में नोबेल पुरस्कार दिया गया था।
इस अवसर पर विद्यालय में विभिन्न प्रकार के कार्यक्रमों का आयोजन किया गया ।कक्षा आठवीं के छात्र छात्राओं के लिए पावर पॉइंट प्रेजेंटेशन और साइंस वॉल मैगजीन की प्रतियोगिता रखी गई थी। कक्षा सातवीं की छात्राओं के द्वारा “वनों की रखवाली प्रकृति के हरियाली” विषय पर मनमोहक नाटक की प्रस्तुति की गई।
सुबह के प्रातः कालीन सभा में कक्षा 11वीं के छात्र चिन्मय रंजन साहू और सिद्धांत पटेल ने सर सी वी रमन के जीवनवृत्त और विज्ञान के क्षेत्र में उनके योगदान को विस्तार से बताया।

विद्यालय के विज्ञान क्लब और अटल टिंकरिंग लैब के प्रभारी शिक्षक कृष्ण कुमार पटेल जो समस्त कार्यक्रम के कोऑर्डिनेटर और मार्गदर्शक शिक्षक थे,ने बताया कि राष्ट्रीय विज्ञान दिवस का मुख्य उद्देश्य भी यही है कि लोगों में पर्यावरण और विज्ञान के प्रति जागरूकता लाया जाए। तत्संबंध में विद्यालय में आईसीटी से संबंधित विविध क्रियाकलाप जैसे टिंकरकेड में मॉडल बनाना, माइक्रोसॉफ्ट पब्लिशर के द्वारा डिजिटल मैगजीन बनाना ,वर्चुअल म्यूजियम विजिट करना कार्यक्रम रखा गया था। विद्यालय के प्राचार्य महोदय ने वर्तमान परिदृश्य में छात्रों को विज्ञान के नए क्षेत्र में अनुसंधान करने व भविष्य के लिए स्वयं को तैयार रहने पर जोर दिया।
“जो सिद्ध हो जाए विज्ञान उसे ही मानता है”























संध्या कालीन प्रार्थना सभा में अपने विचार व्यक्त करते हुए कृष्णा पटेल ने विज्ञान के क्षेत्र में भविष्य की चुनौतियां पर जानकारी देते हुए बताया कि मेरी नजर में विज्ञान वह है:-
जो अपने आस पास को , दिमाग से नहीं दिल से जानता है।
जो दुनिया जहान को तो मानता है, पर सच की आईने से पहचानता है।
विज्ञान वही होता है,जो सिद्ध हो जाए उसे ही मानता है..

पिछले कुछ वर्षों से कंप्यूटर के बढ़ते प्रयोग, दूर संचार में हुए विकास और इंटरनेट ने शिक्षा के क्षेत्र में नए अवसर खोले हैं और नयी चुनौतियों को जन्म दिया है। विज्ञान शिक्षण में आई.सी.टी. के उपयोग की महत्ता को हम सब भली-भांति स्वीकार कर चुके हैं।
पर जब तक यह मशीनों की भाषा रहेगी , हमारे मन की भाषा ,अपनेपन की भाषा, लोगों के दुख दर्द की भाषा, हंसने रोने खेलने कूदने की भाषा जैसे मानवीय गुण उसके अंदर नहीं रहेगें तब तक विज्ञान, विज्ञान नहीं है यह केवल अधूरी ज्ञान है।



































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