Raigarh News: मां के संघर्षों से प्रेरित होकर अदिति ने मुकाम हासिल किया

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भाजपा महामंत्री ओपी चौधरी की धर्म पत्नी अदिति ने साझा किए विचार

रायगढ़ टॉप न्यूज 22फरवरी।  जोश कार्यक्रम के तहत इंटरव्यूह के दौरान प्रदेश भाजपा महामंत्री ओपी चौधरी की धर्म पत्नी अदिति ने अपने निजी जीवन से जुड़े विचार पहले बार सार्वजनिक किए l ऋषि परंपरा के अनुसार अदिति देव माता को माना जाता है l अदिति ने अपने मां जीवन से जुड़े सफर को जब साझा किया तो इसे सुनकर एक बार आंखे भर आई l उनके जीवन से जुड़ा यह संस्मरण हर इस व्यक्ति को जीवन में प्रेरित करेगा जिनके जीवन में कठिनाइयां है। जोश इंटरव्यूह के दौरान अदिति ने कहा हर व्यक्ति को यह महसूस होता है दूसरो की तुलना में हमारे जीवन में परेशानी ज्यादा है। मुझे भी देखकर लोग ऐसा ही सोचते होंगे। मैं रेलवे की अधिकारी हूं मेरी मां जिला जज है पति भाजपा के प्रदेश महामंत्री है।  यह देख कर लोगो को लगता है वाह क्या लाइफ है । इस मुकाम तक पहुंचने के लिए अपने जीवन में यूपीएससी तक पहुंचने के सफर से जुड़े पहलुओं को आज पहली बार चर्चा में सामने ला रही हूं। इंडियन रेलवे पर्सनल सर्विस की अधिकारी
अदिति पटेल ने एमबीबीएस ग्रेजुएट किया फिर यूपीएससी की परीक्षा के दौरान प्रथम प्रयास में सफलता प्राप्त की। अपनी सफलता की श्रेय अपनी मां को देते हुये अदिति ने बताया इस मुकाम तक पहुंचने के लिए मुझसे ज्यादा मेरी मां ने संघर्षों से भरा सफर तय किया है। खरसिया तहसील के छोटे से अभावों के कस्बे में मेरा जन्म हुआ l दसवीं तक की पढ़ाई बिलासपुर में पूरी की। इस दौरान पिता का कैंसर से निधन हो गया। निधन के दौरान छोटे भाई को उम्र एक साल मां की उम्र तीस साल थी l एक वो दौर था जब 17 वर्ष की उम्र में शादी हो जाती थी।  उसके बावजूद दृढ़ निश्चय व शिक्षा के जरिए कैसे आप भारत में अपने जीवन में बदलाव ला सकते है l मेरी मां का जीवन इसी हकीकत का जीता जागता प्रमाण है l 17 साल की उम्र में मां की शादी हो गई फिर दो बच्चो के रूप में मेरा व भाई का जन्म हुआ।  नौकरी का तो मन में ख्याल भी नही था। पापा सरकारी सेवा में थे l एक घरेलू महिला के रूप में मां अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी से निभाती रही l इस दौरान भी शिक्षा के प्रति उनका जज्बा जीवित था शिक्षा के प्रति उनके ललक को इस बात से समझा जा सकता है कि घरेलू महिला का किरदार निभाते हुए प्राइवेट में बी ए किया उसके बाद एम ए हिस्ट्री में एल एल बी किया। उसके बाद बी एड किया l यहां तक की शिक्षा दोनो बच्चो के साथ मायके जाकर प्राइवेट छात्रा के रूप मे हासिल की।  सब कुछ यूं ही चलता रहा। 1995-96 के दौरान कैंसर की वजह से पिता के दो तीन आपरेशन भी हुए लेकिन अंततः 1997 में पिता जीवन की जंग हार गए। 30 साल की उम्र में पति का निधन हो जाए और साथ में दो मासूम बच्चे हो तो आप अंदाज लगा सकते है जीवन की डगर कितनी कठिन रही होगी।  उस मां को विधाता द्वारा निर्मित विधि का विधान कितना कठिन लगता होगा। आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी और पिता के मृत्यु के बाद मिलने वाली पेंशन की राशि भी बहुत ज्यादा नही थी। एक अकेली महिला 2 बच्चो के साथ यह जीवन कितना कठिन रहा होगा l जीवन में कठिनाइयां आती है। और यही से हमारी सही मायने में परीक्षा शुरू होती है l इस दौरान हम कौन सा मार्ग चयन करते है यही से तय होता है कि आगे का सफर कैसा होगा। कभी कभी जीवन मे आ रही परेशानियों के मद्देनजर जब कार्य के तरीके को बदलते है तो हमे सफलता मिल सकती है l यदि कार्य का तरीका नही बदलते तो यह सोच पैदा हो जाती है कि जीवन नीरर्थक है। बस किसी तरह जीवन जीना है। मैने जीवन से यह सीखा है कि कैसी भी परेशानी हो कैसी भी परिस्थिति हो सकारात्मक रहते हुए कुछ अच्छा सोचते हुए सुनहरे सपने देखने चाहिए। निर्णय आपका है कि परेशानी भरे जीवन को आप कठिन परिश्रम के जरिए बदलना चाहते है या फिर जीवन को ऐसे ही बिताना चाहते है। आज की स्थिति के परिपेक्ष्य में 1997 के भारत में अलग स्थितियां थी।  30 साल की उम्र में 2 बच्चो के साथ अनुकंपा नियुक्ति छोड़ने का निर्णय लेना महिला के लिए कितना कठिन रहा होगा। ऐसी विषम परिस्थिति में मेरी मां ने साहस भरा निर्णय लिया कि पढ़ाई करके कुछ करके दिखाना है। निर्णय लेने के बाद साथ आठ साल बहुत कठिनाई भरे रहे। घरेलू जिम्मेदारियों को निभाते हुए बच्चो को पढ़ाना सामाजिक बंधनों को निभाते हुए अपनी पढाई पूरी करनी है l 1997 से 2004 तक जीवन से जुड़े सभी झंझावतों से गुजरते हुए अंततः 2004 में मां का एम पी ज्यूडिशियल वर्ग – 1 में चयन हो ही गया।  वर्तमान में मेरी मां मध्यप्रदेश में जिला जज के पद पर है l यही मेरी मां के संघर्ष की कहानी है। लक्ष्य हासिल करने के लिए मन में आत्मविश्वास और आस होना चाहिए।  कठिन मेहनत करना मैने अपनी मां से सीखा और आज जो कुछ भी हूं मेरी माँ के बदौलत ही हूं।  जीवन में आगे बढ़ने के लिए सबसे जरूरी आत्मविश्वास का होना है।

बचपन के दौरान मैं और मेरा छोटा भाई बिजली बिल पटाने लाइन में खड़े होते थे। घर का किराया पटाते थे l घर का राशन लाते थे।  इन छोटे-छोटे कार्यों से
कॉन्फिडेंस मिलता रहा l सभी अभिभावकों को संदेश देते हुए कहा बच्चियों को छोटे-छोटे कार्य करने हेतु प्रेरित करे ताकि उनका आत्मविश्वास बढ़ सके l इसी आत्मविश्वास के जरिए बड़ी से बड़ी परिक्षाओं में सुखद परिणाम आएगा।  मां ने घर में सुख सुविधा के साधन कम रखे लेकिन मुझे उस दौर में बिलासपुर के सबसे अच्छे स्कूल में पढ़ाई हेतु भेजा गया।  2014 के दौरान मेरा चयन हो गया लेकिन आईएएस नहीं बन पाई थी उसके बाद तीन प्रयास और किए। उसके बाद मैने रेलवे पर्सनल सर्विस में ही रहकर समाज के प्रति अपना योगदान देने का निर्णय लिया। जीवन में जो सोचे वही हो है आवश्यक नही है। मुझे ये विश्वास है कि मेरी मां का प्रेरणा दाई सफर आपको भी जीवन में कुछ नया करने के लिए प्रेरित कर पाए।

























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