Raigarh News: जिला चिकित्सालय में क्लब फूट वाले बच्चों का हो रहा बेहतर इलाज… अब तक 159 बच्चे हुए लाभान्वित.. क्लब फूट से प्रभावित बच्चे हुए स्वस्थ, चल रहे अपने पैरों पर

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रायगढ़ टॉप न्यूज 23 मई 2023। कलेक्टर श्री तारन प्रकाश सिन्हा के निर्देशन एवं सीएमएचओ डॉ.मधुलिका सिंह ठाकुर के मार्गदर्शन में शासकीय जिला चिकित्सालय रायगढ़ में अब तक 159 क्लब फूट वाले बच्चों को ठीक किया गया है। यह सब संभव हो पाया फिजियोथैरेपिस्ट डॉ.सिद्धार्थ सिन्हा एवं क्यूर इंटरनेशनल टीम की कोआर्डिनेटर गीता साहू के सहयोग से जिन्होंने ऑपरेशन और पानसेन्टी टेक्निक के द्वारा प्लास्टर एवं डेनिस ब्राउन इस्पिलिंट डे कर पैरो को ठीक किया गया। आज वे सभी बच्चे स्वस्थ है और अपने पैरों से चल पा रहे है। इसमें हड्डी रोग विभाग की टीम डॉ.आर.के.गुप्ता, डॉ.दिनेश पटेल एवं डॉ.आकाश पण्डा का विशेष योगदान रहा।

सिविल सर्जन डॉ.आर.एन.मंडावी ने बताया कि एक रिसर्च के अनुसार प्रत्येक 1000 जन्मों में से 1 बच्चा क्लबफुट से अवश्य प्रभावित होता है। यह संख्या अलग-अलग देशों में अलग-अलग हो सकती है। यदि क्लबफुट का इलाज सही समय पर और सही तरीके से न किया जाये तो इसका परिणाम आजीवन विकलांगता और असहनीय दर्द हो सकता है। इसके विपरीत यदि इस बीमारी का जन्म के ठीक बाद इलाज कर लिया जाये तो इस स्थिति में सुधार के लिए सर्जरी की भी आवश्यकता नहीं पड़ेगी। जागरूकता के अभाव के कारण यह आसानी से सुधारात्मक विकृति बहुत सारे बच्चों में स्थायी विकलांगता का कारण बन जाती है। क्लबफुट एक प्रकार की पैर से संबंधित जन्मजात विकृति (जन्म के समय उपस्थित) होती है जिसमें जन्म के समय से ही बच्चे का पैर उसके सामान्य आकार का नहीं होता है। यह या तो बाहर की ओर या अंदर की ओर मुड़ा होता है। यह नवजात शिशुओं में पायी जाने वाली सबसे आम विकृति है जो हड्डियों और जोड़ों से संबंधित होती है। यह स्थिति सामान्य भी हो सकती है और कुछ परिस्थितियों में यह स्थिति गंभीर भी हो सकती है और शिशु के एक पैर या दोनों पैरों में भी दिखाई दे सकती है।











जन्म के साथ क्लबफुट की संभावना को बढ़ाने वाले ये है जोखिम के कारण
माता या पिता द्वारा धूम्रपान सेवन, गर्भ में एमनियोटिक द्रव की कमी,पहली गर्भावस्था, आनुवंशिक या न्यूरोलॉजिकल समस्याओं के साथ पैदा होने वाले बच्चों में कभी-कभी क्लबफुट का एक अन्य रूप भी देखने मिलता है जो मांसपेशियों के असंतुलन का कारण बनता है। क्लबफुट का इलाज पूरी तरह से किया जा सकता है। बशर्ते इसका इलाज सही समय पर किया जाए। इस स्थिति के इलाज की प्रक्रिया में शिशु के पैर के प्रभावित हिस्से पर क्रमिक प्लास्टर (अनुक्रमिक मलहम) किया जाता है जो इसके दीर्घकालिक प्रभाव को रोकने में भी सक्षम होता है। वास्तव में सही इलाज के बाद इस विकृति के साथ पैदा हुए बच्चों को भविष्य में किसी भी कार्यात्मक कठिनाई का सामना नहीं करना पड़ता जन्म के 5-7 दिनों के बाद कास्टिंग शुरू करा देनी चाहिए। उचित समय पर इलाज से लगभग 95-98 प्रतिशत प्रभावित बच्चे पूरी तरह से बिना किसी सर्जिकल सुधार के ठीक हो सकते हैं। यदि गर्भावस्था के दौरान या जन्म के तुरन्त बाद क्लबफुट का निदान कर लिया जाता है, तो इस स्थिति में माता-पिता को चिंतित होने की आवश्यकता नहीं है। यहाँ यह याद रखना अत्यन्त महत्वपूर्ण है कि यदि समय पर इलाज नहीं कराया जाये तो यह स्थिति उम्र के साथ और बिगड़ सकती है, इसलिए बच्चे के स्वस्थ और सामान्य जीवन जीने के लिए शुरुआती चिकित्सा हस्तक्षेप आवश्यक है।

इसके इलाज के प्रोटोकॉल में प्रारंभिक स्ट्रेचिंग, साप्ताहिक कास्टिंग और ब्रेसिंग का समायोजन होता है। 5-7 दिन बाद, बच्चे के पूरी तरह स्वस्थ होने के बाद ही इसका इलाज शुरू किया जा सकता है। यदि शिशु का समय से पहले जन्म हुआ है या उसका वजन जन्म के समय बहुत कम 2-5 किलोग्राम से कम है, उस स्थिति में शिशु के स्वस्थ हो जाने के बाद ही स्ट्रेचिंग प्रारम्भ करनी चाहिए। साप्ताहिक कास्टिंग का उपयोग करते हुए पैर के क्रमिक सुधार की इस प्रक्रिया को पोंसेटि तकनीक कहा जाता है। स्थिति की गंभीरता के आधार पर यह प्रक्रिया कुछ महीने लम्बी हो सकती है और इसमें विशेष बूट और बार के उपयोग की भी आवश्यकता हो सकती है। कार्यात्मक, दर्द मुक्त, सीधे पैर और भविष्य में चलने में किसी प्रकार की परेशानी न होना ही इस इलाज प्रक्रिया को करने का मुख्य उद्देश्य है। सही समय पर सही इलाज शीघ्र रिकवरी में सहायक होता है।















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