रायगढ़ । “द केरला स्टोरी” फिल्म को धार्मिक नजरिए से देखने की जगह आतंकवाद को बढ़ाने के लिए मुस्लिम धर्म के दुरुपयोग के नजरिए से देखें जाने की जरूरत है। इस फिल्म को धर्म से ऊपर उठकर पूरे आवाम को देखना चाहिए। जो लोग इस फिल्म की विषय वस्तु पर प्रश्न चिन्ह लगा रहे है वो वास्तव में समस्या से मुंह फेरने की शुतुरमुर्ग शैली के पैरोकार कहे जा सकते है।
उक्ताशाय का वक्तव्य देते हुए भाजपा नेता आलोक सिंह ने कहा है कि यह फिल्म हर बेटी को ही नही बल्कि धर्म का चश्मा उतार कर हर बेटे और दोनो के परिवार को भी देखना चाहिए। आखिर वो कौन लोग है जो धर्म की घुट्टी पिला कर किसी बेटे को कभी आतंकवादी तो कभी लव जेहाद के लिए प्रेरित कर देता है ? वो कौन सी ट्यूशन है जो किसी युवा की मानसिकता में यह जहर घोलती है कि किसी लड़की को तयशुदा रणनीति के तहत फेम जाल में फसाना है, उसकी धार्मिक मान्यता के खिलाफ उसकी मानसिकता तैयार करनी है और फिर उसका धर्म परिवर्तन कर आतंकवाद की भट्ठी में झोंक देना है। इस लक्ष्य के लिए निकाह, सेक्स ,ड्रग्स और जाने क्या – क्या ….? मां – बाप और परिवार तो इन युवाओं के भी होते है। इन घटिया कामों में जवानी तो इनकी भी बर्बाद होती होगी ? आतंकवादी बन कर जान तो ये भी गवाते होंगे ? क्या इन परिवारों को ऐसे ट्यूशन दाताओं के खिलाफ मुहिम नही चलानी चाहिए ? ” द कश्मीर फाइल्स” और ” द केरला स्टोरी” जैसी सत्यपरख फिल्मे हर हिंदुस्तानी को आगाह करती है इसलिए ऐसी फिल्मे सबको देखनी चाहिए। ये हिन्दू मुसलमान नही देश का विषय है। देशभक्त हिंदुस्तानी के सरोकार का विषय है।
आलोक सिंह ने कहा है कि यह फिल्म उन परिवारों के लिए भी चिंतन का विषय है जो अपनी धार्मिक मान्यताओं के मूल से स्वय अनभिज्ञ रहते है और बच्चो को भी अनभिज्ञ रखते है। ज्यादातर परिवार कर्मकांड को ही धर्म मान लेते है । उन्हे सिर्फ ये पता होता है कि कर्मकांड भौतिक संसाधनों की उपलब्धता का सरल माध्यम मात्र है। धर्म के नाम पर पौराणिक कथाओं की थोड़ी बहुत जानकारी ही होती है । ईश्वर यानि सर्वोच्च परालौकिक शक्ति को जानने समझने और बच्चो को जनवाने और समझाने का समय ही नहीं है। लिहाजा घर के बाहर बैठे आतंकवादियों के स्लीपर सेल के लोग जो कुछ समझाते है वही उन्हे सच लगने लगता है। जरूरी है कि बच्चो को सदाचरण के साथ धर्म के मूल की शिक्षा भी दी जाय । धार्मिक ग्रंथों का अध्यन जीवन का अनिवार्य हिस्सा बने । अन्यथा जब तक परिवार को पता चलेगा तब तक बहुत देर हो चुकी होगी।
आलोक सिंह ने कहा है कि किसी भी समस्या के निदान के लिए उस पर चर्चा, परिचर्चा, चिंतन आवश्यक होता है। जन जागरूकता ही ऐसी समस्याओं का बेहतर निदान कर सकती है। कोरोना से हम इसलिए जीते क्योंकि इस बीमारी पर जन जागरूकता बेहतर तरीके से फैली, आवश्यक उपाय में जनभागीदारी रही। नतीजा डब्ल्यूएचओ ने कोरोना को महामारी के लिस्ट् से बाहर कर दिया है। “द केरला स्टोरी” जन जागरूकता के लिए प्लेटफार्म उपलब्ध कराती है आप इस पर चिंतन करें ,चर्चा करें , समाधान खोजें। सब मिलकर जब यह काम करेंगे तभी आतंकवाद की भट्ठी में जाने से न केवल बेटियां ही बचेगी बल्कि आतंकवादी बनने से बेटे भी बचेंगे। इन सबके लिए “द केरला स्टोरी” जैसी फिल्म देखनी ही चाहिए… सभी धर्म के लोगो को।