पंडवानी गायिका तीजन बाई का जन्मदिन आज, छत्तीसगढ़ की लोक-कला ‘पंडवानी’ को विदेश तक पहुंचाने वाली तीजन बाई की कहानी 

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रायपुर। तीजन बाई छत्तीसगढ़ की सुप्रसिद्ध पंडवानी गायिका हैं. जिन्होंने पंडवानी शैली में गायन करके राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रदेश का नाम ऊंचा किया है. पंडवानी गायन में तीजनबाई के अतुल्यनीय योगदान को देखते हुए उन्हें पद्मश्री और पद्मभूषण का पुरस्कार से नवाजा जा चुका है. तीजनबाई कापालिक शैली की पहली महिला पंडवानी गायिका हैं. तीजन बाई का जन्म 24 अप्रैल 1956 को छत्तीसगढ़ के भिलाई गनियारी गांव में हुआ था. महज तेरह साल की उम्र में तीजनबाई ने पंडवानी शैली में गायन शुरु कर दिया था.













डिप्टी सीएम अरुण साव  ने तीजन बाई को जन्मदिवस की शुभकामनाएं दी हैं. उन्होंने सोशल मीडिया X पर ट्वीट करते हुए कहा- प्रदेश की लोककला को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर गौरवान्वित कर छत्तीसगढ़ महतारी का मान बढ़ाने वाली सुप्रसिद्ध पंडवानी गायिका, पद्म श्री, पद्म भूषण व पद्म विभूषण श्रीमती डॉ. तीजन बाई जी को जन्मदिन की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं। मां महामाया से आपके उत्तम स्वास्थ्य एवं दीर्घायु जीवन की कामना करता हूं।

 

लोक संगीत को दिलाई पहचान 

तीजन बाई भारतीय लोक संगीत की एक प्रसिद्ध गायिका हैं. जिन्हें पंडवानी में महारथ हासिल हैं. तीजन बाई ने अपनी कला के माध्यम से जनता के बीच समाज के अनेक मुद्दों को उठाया. इससे उन्हें समाज सुधारने और उसमें सद्भावना लाने में मदद मिली. उन्होंने अपने जीवन में कई समाजसेवी कार्य किए. लोक संगीत के माध्यम से आगे बढ़ने का एक नया रास्ता मिला. तीजन बाई की गायकी की संगीत रूपरेखा में भावनात्मक तान-संगत सबसे अलग है.

पंडवानी शैली है खासियत 

पंडवानी गायिका तीजन बाई अपनी शैली के लिए प्रसिद्ध हैं. यह गायनी मुख्य रूप से छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में गायी जाती है. पंडवानी गायिकी में घटना का गायन किया जाता है.जिसमें महाभारत के कथाओं को प्राथमिकता दी जाती है. इन कथाओं का मुख्य नायक भीम होता है.इसलिए पंडवानी महाभारत के इर्द-गिर्द ही घूमती है. छत्तीसगढ़ी भाषा में इसका गायन रोमांचित करने वाला होता है.

पद्मविभूषण डॉ. तीजन बाई : ऐसी है संघर्ष और सफलता की कहानी

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने राष्ट्रपति भवन में पद्म भूषण,पद्म विभूषण और पद्मश्री पुरस्कार प्रदान किए। पुरस्कार पाने वाले में कलाकार, खिलाड़ी, साहित्य जगत के साथ अन्य क्षेत्रों के लोग भी शामिल रहे। छत्तीसगढ़ की प्रसिद्घ पंडवानी गायिका तीजन बाई को पद्म विभूषण से सम्मानित किया है। तीजन बाई छत्तीसगढ़ राज्य के पंडवानी लोक गीत-नाट्य की पहली महिला कलाकार हैं।

डॉ तीजन बाई ने कोई औपचारिक शिक्षा नहीं ली है, लेकिन उनकी उपलब्धी को देखते हुए बिलासपुर केंद्रीय विश्वविद्यालय द्वारा उन्हें डी लिट की मानद उपाधि से सम्मानित किया जा चुका है। देश-विदेश में अपनी कला का प्रदर्शन करने वाली तीजनबाई ने छत्तीसगढ़ की प्राचीनतम पंडवानी गायन कला को जीवित रखा है और अब वे उसे अगली पीढ़ी तक पहुंचा रही हैं।

13 साल की उम्र में किया था पहला मंच प्रदर्शन

छत्तीसगढ़ के भिलाई के गांव गनियारी में तीजन बाई का जन्म हुआ था और इनके नाना ब्रजलाल ने इन्हें प्राचीन पंडवानी कला को आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित किया। वे उन्हें महाभारत की कहानियां गाते सुनाते और धीरे-धीरे उन्हें को यह कहानियां याद होने लगीं। उनकी लगन और प्रतिभा को देखकर उमेद सिंह देशमुख ने उन्हें पंडवानी का अनौपचारिक प्रशिक्षण दिया। 13 वर्ष की उम्र में उन्होंने अपना पहला मंच प्रदर्शन किया।

उस समय में महिला पंडवानी गायिकाएं केवल बैठकर गा सकती थीं जिसे वेदमती शैली कहा जाता है। पुरुष खड़े होकर कापालिक शैली में गाते थे। तीजनबाई वे पहली महिला थीं जो जिन्होंने कापालिक शैली में पंडवानी का प्रदर्शन किया।

एक दिन ऐसा भी आया जब प्रसिद्ध रंगकर्मी हबीब तनवीर ने उन्हें सुना और तबसे तीजनबाई का जीवन बदल गया। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से लेकर अनेक अतिविशिष्ट लोगों के सामने देश-विदेश में उन्होंने अपनी कला का प्रदर्शन किया।

अद्भुत होता है पंडवानी का प्रदर्शन

प्रदेश और देश की सरकारी व गैरसरकारी अनेक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत तीजनबाई मंच पर सम्मोहित कर देनेवाले अद्भुत पंडवानी नृत्य नाट्य का प्रदर्शन करती हैं। ज्यों ही प्रदर्शन आरंभ होता है, उनका रंगीन फुंदनों वाला तानपूरा अभिव्यक्ति के अलग-अलग रूप ले लेता है।

कभी दुःशासन की बांह, कभी अर्जुन का रथ, कभी भीम की गदा तो कभी द्रौपदी के बाल में बदलकर यह तानपूरा श्रोताओं को इतिहास के उस समय में पहुंचा देता है जहां वे तीजन के साथ-साथ जोश, होश, क्रोध, दर्द, उत्साह, उमंग और छल-कपट की ऐतिहासिक संवेदना को महसूस करते हैं। उनकी ठोस लोकनाट्य वाली आवाज और अभिनय, नृत्य और संवाद उनकी कला के विशेष अंग हैं।

 

डॉ तीजन को उनकी कला के लिए सन 1988 में भारत सरकार द्वारा पद्मश्री और 2003 में पद्म भूषण से अलंकृत किया गया। उन्हें 1995 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार और 2007 में नृत्य शिरोमणि से भी सम्मानित किया जा चुका है। उनकी कला को भिलाई इस्पात संयंत्र द्वारा काफी संरक्षण मिला।





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