ताज़पोशी के साथ नए संकल्पों के पथ पर ऊर्जा और विश्वास के नए आलोक में भाजपा की असली परीक्षा

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विजयोल्लास के पथ पर चुनौतियों के नुकीले कंटकों पर चलकर स्वप्नों को साकार करने संकल्पों की कसौटी पर खरा उतरने की चुनौती

सत्ता व संगठन के कर्णधार कार्यकर्ताओं का ध्यान रखें, कार्यकर्ता सत्ता और संगठन के मद्देनजर अपनी समझ विकसित करें























रायपुर। भारतीय जनता पार्टी पाँच वर्षों के अपने वनवास से उबरकर नए संकल्पों के पथ पर ऊर्जा और विश्वास के नए आलोक में अपनी महत्वपूर्ण यात्रा प्रारंभ करने जा रही है। संकल्पों का यह पथ चुनौतियों के कंटकों से भरा हुआ है और भाजपा के कर्णधारों को इन चुनौतियों को पार कर विश्वास के धरातल को अपने निर्णयों, नीतियों और कार्य-संस्कृति से सतत अभिसिंचित करना है, संगठन के स्तर पर भी और सत्ता के स्तर पर भी! सत्ता के गलियारे में चहलकदमी करते वक़्त भाजपा को यह बात हमेशा ध्यान रखनी होगी कि यह माया महाठगिनी होती है। वह सत्ताधीशों को अपनी चकाचौंध में वह सबकुछ देखने ही नहीं देती, जो वास्तव में उसे देखना चाहिए और जिस काम के लिए सत्ता उन्हें साधन के तौर पर मिली है। यह अप्रत्याशित क़तई नहीं है कि भाजपा ने चुनावी मैदान मार लिया है, क्योंकि अपनी पराजय की पटकथा तो कांग्रेस के सत्ताधीशों ने सत्ता सम्हालते ही खुद अपने हाथों लिखनी शुरू कर दी थी और जिस भाजपा को तमाम राजनीतिक विश्लेषक और कांग्रेस के लोग सत्ता की दौड़ से बाहर मानकर चल रहे थे, वे मतदान के पहले चरण के क़रीब आते-आते भाजपा को कांग्रेस के मुक़ाबिल मानने लगे, हालाँकि भाजपा की जीत हो रही है, यह बात मानने और भाजपा की जीत पचाने के लिए मतगणना के पहले तक मतगणना के शुरुआती रूझानों के बाद भी वे तैयार नहीं दिखाई दे रहे थे। पर जनादेश भाजपा के पक्ष में आना था, सो आ गया। अब शपथ ग्रहण के महोत्सव के साथ भाजपा की असली परीक्षा शुरू हो रही है। विजयोल्लास के पथ पर चुनौतियों के नुकीले कंटकों पर चलते हुए उन स्वप्नों को साकार करना है, जिसे पूर्व प्रधानमंत्री ‘भारत रत्न’ श्रद्धेय अटलजी ने संजोया था, उन संकल्पों की कसौटी पर खरा उतरना है, जिसे बार-बार दुहराकर भाजपा ने यह विश्वासपूर्ण जनादेश अर्जित किया है।

यह माना जाना चाहिए कि हिन्दुत्व, विकास, सेवा, सुशासन और ग़रीब कल्याण के साथ-साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे तथा ‘मोदी की गारंटी’ ने भाजपा की जीत की राह को आसान बनाया है, पर उससे भी कहीं ज़्यादा महत्वपूर्ण बात यह ध्यान में रखी जानी चाहिए कि कर्ज़माफ़ी, मुफ़्त बिजली, मुफ़्त शिक्षा जैसे नितांत निजी फ़ायदों को अपनी ठोकर पर रखकर प्रदेश की जनता-जनार्दन ने भाजपा के वादों और घोषणाओं पर इतना अधिक विश्वास जताया कि अब तक के हुए पाँच चुनावों में भाजपा को न केवल अधिक सीटें मिली हैं, अपितु वोटों के प्रतिशत में भाजपा को एक नया रिकॉर्ड बनाने का मौक़ा दे दिया। पर जीत और सरकार में आने की इस बेला में आत्ममुग्ध होने के बजाय भाजपा के लिए भी आत्म मंथन की उतनी ही ज़रूरत है, जितनी आज कांग्रेस को है। परंतु, कांग्रेस पराजय के सबक और संदेश को कब समझ पाई है? सत्ता प्रबंधन की इतनी ही राजनीतिक समझ कांग्रेस में होती तो 71 सीटों से महज़ पाँच सालों में 35 सीटों पर नहीं सिमटती। इस सच्चाई को पूरी शिद्दत से स्वीकार करना चाहिए कि प्रधानमंत्री आवास की मांग को लेकर विधानसभा के समक्ष हुए प्रदर्शन के साथ ही भाजपा ने अपने धारदार तेवर दिखाए और उसके बाद लगातार चले अभियानों व कार्यक्रमों ने भाजपा की भूमिका को प्रभावी बनाया। राजधानी के साइंस कॉलेज मैदान पर इस वर्ष के मध्य में हुई प्रधानमंत्री श्री मोदी की सभा ने भाजपा को राजनीतिक संजीवनी दे दी। आज धान की क़ीमत, ख़रीदे जाने वाले धान की मात्रा, दो साल का बकाया बोनस, महतारी वंदन योजना, युवाओं के लिए संभावनाओं का आकाश तलाशने की प्रतिबद्धता, जबरिया धर्मांतरण पर रोक लगाकर आदिवासी संस्कृति व परंपराओं की रक्षा और तुष्टीकरण की रक्त-पिपासु राजनीतिक प्रवृत्ति को नेस्त-ओ-नाबूद करने का प्रण, इनमें से भाजपा की जीत का श्रेय राजनीतिक विश्लेषक चाहे जिसे दें, पर इन चुनावों में इस सत्य को नकारा नहीं जा सकता कि पहली बार एक दल के नाम पर चुनाव हुए हैं और इसमें व्यक्ति गौण हो गया था। प्रधानमंत्री श्री मोदी इस विजय रथ के सारथी बने और इसीलिए कांग्रेस ‘भूपेश है तो भरोसा है’ से लेकर ‘भरोसे की सरकार’ के जुमले उछालने के लिए विवश हुई जबकि बिना कोई चेहरा सामने किए भाजपा सत्ता-सिंहासन पर विराजमान है। निश्चित रूप से भाजपा के लिए यह गर्व का क्षण है कि प्रधानमंत्री श्री मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह व अन्य अनेक प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों व साधु-संतों की मौज़ूदग़ी में प्रदेश के हज़ारों-हज़ार कार्यकर्ताओं के बीच प्रदेश के नवनियुक्त मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने अपने मंत्रिमंडलीय सहयोगियों के साथ शपथ ली है। अब इस विचार पर भी विमर्श की शुरुआत होनी चाहिए कि मंत्रिमंडल के परंपरागत ढाँचे को कोई नया आकार दिया जाए जिसमें शामिल हर एक मंत्री समूचे प्रदेश के स्तर पर अपने विभाग की कार्यप्रणाली की न केवल समझ से भरपूर हो, अपितु अपनी विभागीय योजनाओं व कार्यक्रमों से प्रदेश के हर एक परिवार को लाभ पहुँचा सके। जाहिर है, ऐसे मंत्रिमंडल में किसी अपराधी या भ्रष्ट प्रवृत्ति को ज़गह नहीं मिलनी चाहिए, अन्यथा ऐसे लोग सेवा-सुशासन और ग़रीब कल्याण के संकल्पों को कर्क-रोग की तरह भीतर से खोखला ही करेंगे, अपराधों को प्रश्रय देंगे, सरकार के ‘कमाऊ पूत’ बनकर मनमानी करेंगे, सर्वतोमुखी विकास की अवधारणा को पलीता ही लगाएंगे। यह भी नहीं भुलाया जा सकता कि इस नई सरकार को कर्ज़ के दलदल को भी पार करना है और विकास के तमाम तक़ादों को पूरा भी करना है। 15 वर्षों के भाजपा के पूर्ववर्ती शासनकाल में जिन राजनीतिक दोषों से जनता नाराज़ हो चली थी, अब भाजपा के सत्ताधीश छाछ को भी फूँक-फूँककर पीएंगे, जनता-जनार्दन की यह उम्मीद बेमानी नहीं है।

भाजपा को अब अपने संगठन के स्तर पर भी पर्याप्त ध्यान देने की ज़रूरत महसूस होनी चाहिए। कार्यकर्ताओं को देवतुल्य बोल-बोलकर सिर्फ चुनाव तक ही उनके समर्पण, परिश्रम, पुरुषार्थ और पराक्रम को कसीदे पढ़े जाते हैं, लेकिन चुनाव निपटने के बाद उन कार्यकर्ताओं की पूछ-परख तक नहीं होती। उनका आत्मसम्मान सत्ता के गलियारों में कराहता न मिले, उनकी अपेक्षाएँ सत्तावादी अहंकार के बोझ तले दम न तोड़ें, अब इस बात का संगठन के स्तर पर ध्यान रखा जाना चाहिए। चापलूसों-चाटुकारों की काकस मंडली सत्ता के अनुचित लाभ लेने के लिए घेरेबंदी करने में निपुण होती है, ऐसे किसी भी घेरे में कैद होकर पार्टी कार्यकर्ताओं की अनदेखी अब नहीं होनी चाहिए। ऐसी गिरोहबंदी, घेरेबंदी ने ही पिछले चुनाव में कार्यकर्ताओं को अपनी ही पार्टी से इतना दूर छिटका दिया था कि प्रदेश में 15 वर्षों की सरकार महज़ 15 सीटों पर आ गई थी! भाजपा की इस विजय के सूत्रधार प्रधानमंत्री श्री मोदी हैं तो इस सूत्र से कार्यकर्ताओं को बांधने का काम केंद्रीय गृह मंत्री श्री शाह, प्रदेश चुनाव सह प्रभारी व केंद्रीय मंत्री डॉ. मनसुख मांडविया, प्रदेश भाजपा प्रभारी ओम माथुर, सह प्रभारी नितिन नवीन ने किया। संगठन सूत्र में कार्यकर्ताओं को पिरोने में लगा भाजपा केंद्रीय नेतृत्व कार्यकर्ताओं को यह समझाने में सफल रहा कि सार्वजनिक और राजनीतिक जीवन में कार्यकर्ता के नाते उनकी पूछ-परख तभी है, जब पार्टी सत्ता में रहे। यह बात कार्यकर्ता समझ गए और नतीजा सामने है। दरअसल कार्यकर्ता भी सत्ता के होने का महत्व समझ गए थे। सत्ता खोने का जो अहसास पाँच साल के कांग्रेस शासनकाल में भाजपा के कार्यकर्ताओं ने भोगा है, उसका एक असर यह भी देखने को मिला कि इस बार कार्यकर्ता स्व-स्फूर्त पार्टी को जिताने में संकल्पपूर्वक जुटे। यह केंद्रीय नेतृत्व के प्रयासों का सुपरिणाम रहा। पर अब भाजपा का प्रदेश और केंद्रीय नेतृत्व इस बात पर संज़ीदगी दिखाए कि सत्ता की चौखट के पार सरकार और भाजपा के सभी जनप्रतिनिधि अपने समर्पित कार्यकर्ताओं और चापलूसों-चाटुकारों में भेद करने की समझ का परिचय दें, अन्यथा राममनोहर लोहिया तो कह ही गए हैं कि ज़िंदा क़ौमें पाँच साल इंतज़ार नहीं किया करतीं। इसी तरह भाजपा के कार्यकर्ताओं को भी अपनी समझ विकसित करनी होगी। राजनीति में व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा जागना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है, परंतु जन-आकांक्षा और व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा के महीन अंतर की मर्यादा का ध्यान आज भाजपा के कार्यकर्ताओं को इसलिए ज़्यादा रखना होगा क्योंकि अब वे उस स्थिति में हैं जहाँ आकांक्षाओं में संतुलन स्थापित कर अपने राजनीतिक आचरण की मर्यादा की मिसाल प्रस्तुत करें। सत्ता अपने साथ कुछ दोष सहज साथ लेकर आती है जिनमें एक दर्प है। दर्प के दर्पण में सुशासन का प्रतिबिम्ब दरक जाता है, यह बात सबको ध्यान में रखनी होगी। कार्यकर्ता समझें कि सत्ता की अपनी मर्यादाएँ होती हैं, सत्ता-संचालन की अपनी एक प्रक्रिया होती है। संगठन के निर्णय हर बार मनोनुकूल नहीं हो पाते, फिर भी विनम्रता के साथ सत्ता और संगठन से समन्वय बिठाकर कार्यकर्ता चलें। सत्ता और संगठन के कर्णधार भी अपने अल्पकालिक लाभ के लिए कार्यकर्ताओं की महत्वाकांक्षाओं को इतना न बढ़ाएँ कि वे बेलगाम होकर अराजकता का उत्सव मनाने लगें।

( अनिल पुरोहित, वरिष्ठ पत्रकार )



































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