बिलासपुर। कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय में कुलपति के पद पर श्री बल्देव भाई शर्मा की सांठगांठ कर नियम विरुद्ध नियुक्ति के खिलाफ शिक्षाविद् डॉ शाहिद अली की याचिका पर छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट की डबल बैंच ने विश्वविद्यालय, छत्तीसगढ़ शासन, यूजीसी और कुलपति श्री बलदेव भाई शर्मा को नोटिस कर जवाब मांगा है।
छत्तीसगढ़ के राज्य विश्वविद्यालयों में कुलपति की नियुक्तियां हमेशा से चर्चा का विषय रहीं हैं। छत्तीसगढ़ के शिक्षाविदों की उपेक्षा कर अन्य राज्यों के व्यक्तियों को कुलपति बनाए जाने पर सवाल उठते रहे हैं। लेकिन इस बार कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय के कुलपति पद पर नियुक्ति का जो खुलासा हुआ है उसने पूरे सिस्टम को चौंका दिया है। विश्वविद्यालय के वरिष्ठ प्राध्यापक डॉ शाहिद अली ने कुलपति श्री बल्देव भाई शर्मा के पास न्यूनतम योग्यता पूरी ना करने तथा नियुक्ति में यूजीसी रेगुलेशन 2018 के अनिवार्य प्रावधानों का उल्लंघन करने के कारण इस नियुक्ति को रद्द करने याचिका दाखिल की है। याचिका के अनुसार श्री बल्देव भाई शर्मा को कुलपति के पद पर बैठने का कोई अधिकार नहीं है वे इस पद पर नियम विरुद्ध कार्य कर रहे हैं।
याचिका में सनसनी खेज खुलासा हुआ है कि श्री बल्देव भाई शर्मा के पास किसी भी विषय की ना तो पीजी डिग्री है और ना ही पीएचडी की वैध उपाधि है। जो व्यक्ति विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर बनने की न्यूनतम योग्यता भी नहीं रखता है उसकी विश्वविद्यालय में कुलपति के पद पर नियुक्ति एक बड़ा सवाल है। विश्वविद्यालयों में कुलपतियों की नियुक्तियों में किस प्रकार से हाईलेवल सांठगांठ करके योग्य आवेदकों को दरकिनार कर दिया जाता है उसका अंदाजा इस याचिका की गंभीरता से लगाया जा सकता है। याचिकाकर्ता डा शाहिद अली के अनुसार वे स्वयं भी कुलपति पद के दावेदार थे तथा अनेक ऐसे दावेदार थे जिनके पास कुलपति पद के लिए उच्चतम अर्हताएं थी। कुलाधिपति द्वारा कुलपति पद के लिए नियुक्त तीन सदस्यीय सर्च कमेटी में चेयरमैन प्रो. कुलदीप चंद्र अग्निहोत्री बनाए गए थे। सर्च कमेटी में शामिल प्रो.कुलदीप चंद्र अग्निहोत्री यूजीसी की ओर से नामिनी थे। जबकि अन्य दो सदस्यों में विश्वविद्यालय की कार्यपरिषद की ओर से हरिदेव जोशी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुलपति श्री ओम थानवी तथा राज्य शासन की ओर से तत्कालीन वन संरक्षक एवं योजना आयोग के सदस्य डॉ के.सुब्रमण्यम की उपस्थिति रही। तीन सदस्यीय समिति के चेयरमैन प्रो कुलदीप चंद्र अग्निहोत्री उस दौरान हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय में कुलपति रहे। केन्द्रीय विश्वविद्यालय में कुलपति रहते हुए प्रो अग्निहोत्री ने यूजीसी के नियमों को ताक में रखकर केवल स्नातक दो वर्षीय बीए पास श्री बल्देव भाई शर्मा को हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय धर्मशाला के पत्रकारिता विभाग में वर्ष 2017 में एमिनेंट प्रोफेसर मानद के पद पर नियुक्ति देकर विभागाध्यक्ष भी बना दिया। जब प्रो कुलदीप चंद्र अग्निहोत्री कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय में कुलपति पद के लिए दिनांक 12/09/2019 को बनाईं गई सर्च कमेटी में चेयरमैन नियुक्त हो गए तो उन्होंने श्री बल्देव भाई शर्मा को कुलपति पद के पैनल में अनुशंसा भी कर दी। डा शाहिद अली ने आरटीआई में प्राप्त दस्तावेजों से यह भी सवाल उठाया है कि श्री बल्देव भाई शर्मा ने वर्ष 2017 में ही इंदिरा गांधी विश्वविद्यालय, रेवाड़ी से डाक्ट्रेट की मानद उपाधि प्राप्त की जिसका उपयोग किसी अकादमिक कार्य में नहीं किया जा सकता है किंतु इन्होंने कुलपति पद के आवेदन में इसका दुरूपयोग करते हुए अकादमिक योग्यता के रूप में दर्शाया। डा शाहिद अली ने याचिका में कुलपति नियुक्ति की सांठगांठ और गड़बड़ी पर उच्च स्तरीय जांच और दोषियों पर कार्रवाई की भी अपील की है।
इस पूरे मामले में कुलपति के पद पर हुई अनियमितता की जांच होने पर कुछ बड़े खुलासे भी हो सकते हैं।
उल्लेखनीय है कि कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय में कुलपति पद के लिए 20/09/2019 को विज्ञापन जारी कर अंतिम तिथि 11/10/2019 तक योग्य उम्मीदवारों से आवेदन मंगाए गए थे। इसके बाद सर्च कमेटी की बैठक राजभवन में दिनांक 11/11/2019 को संपन्न हुई। बैठक में सर्च कमेटी ने छह लोगों के नामों का पैनल प्रस्तुत किया जिनमें सबसे ऊपर श्री बल्देव भाई शर्मा उसके बाद क्रमशः श्री दिलीप चंद मंडल, श्री जगदीश उपासने, श्री लव कुमार मिश्रा, डॉ मुकेश कुमार, श्री उर्मिलेश नाम पैनल में रखे गए।
यूजीसी रेगुलेशन 2018 का अनिवार्य प्रावधान विश्वविद्यालय में कम से कम 10 वर्षों के लिए प्रोफेसर के पद का अनुभव अथवा एक प्रतिष्ठित अनुसंधान या शैक्षणिक प्रशासनिक संगठन में शैक्षणिक नेतृत्व के साक्ष्य के साथ 10 वर्षों के अनुभव के साथ एक विशिष्ट शिक्षाविद् होना चाहिए।
राज्यपाल के अवर सचिव के हस्ताक्षर से जारी दिनांक 20/09/2019 में कहा गया ऐसे व्यावसायिक व्यक्ति, जो या तो पत्रकारिता अथवा संचार मीडिया क्षेत्र की शाखा से हो, जिसके पास सार्वजनिक या निजी क्षेत्र में वरिष्ठ स्तर में 20 वर्ष का अनुभव हो, की वांछित अहर्ता को पूर्ण करते हों। याचिकाकर्ता ने राज्यपाल के अवर सचिव द्वारा जारी कुलपति पद के लिए यूजीसी के प्रावधानों के विरुद्ध शैक्षणिक अर्हता को भी चुनौती दी है और कहा है कि यूजीसी के मापदंडों को किसी भी प्रकार से बदला नहीं जा सकता है।
याचिकाकर्ता डॉ शाहिद अली ने बताया कि विश्वविद्यालयों में स्नातक, स्नातकोत्तर एवं पीएचडी स्तर की पढ़ाई एवं परीक्षाएं होती है। असिस्टेंट प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर तथा प्रोफेसर की चयन प्रक्रिया होती है। विश्वविद्यालय के प्रशासनिक एवं अकादमिक विभागों के नेतृत्व, विद्यापरिषद , कार्यपरिषद तथा दीक्षांत समारोह का संचालन होता है। अतः ऐसा व्यक्ति जिसके पास न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता भी नहीं है, केवल बीए स्नातक है। कोई अनुसंधान अथवा शैक्षणिक प्रशासनिक नेतृत्व का अनुभव नहीं है वह विश्वविद्यालय का कुलपति कैसे नियुक्त हो सकता है। एजुकेशन सिस्टम की गुणवत्ता पर ऐसी नियुक्तियों से गंभीर चिंता और चुनौती उत्पन्न होती है।
याचिकाकर्ता के अनुसार श्री बल्देव भाई शर्मा ने 5/3/2020 को कुलपति का पदभार ग्रहण किया और उसके दो हफ्ते बाद लाकडाऊन हो गया। लगभग दो वर्ष कोरोना काल रहा। विश्वविद्यालय की वेबसाइट पर कुलपति ने अपनी शैक्षणिक प्रोफ़ाइल अपलोड नहीं की। इसलिए योग्यता और नियुक्ति की सांठगांठ का पता नहीं चला। लेकिन पिछले एक वर्ष से जब आफलाइन और कार्यालय सामान्य होने लगे तो कार्यशैली से आशंका हुई और आरटीआई के माध्यम से तथ्यों का पता चला।
विशेष बात है कि पत्रकारिता विश्वविद्यालय में पिछले तीन सालों में ऐसा कोई अकादमिक उपलब्धि हासिल नहीं हुई है जिसमें शासन करोड़ों रुपए खर्च कर रहा है। कुलपति महीने में 15 -20 दिन बिना छुट्टियों के गायब रहते हैं। कार्यालय में मात्र दो से तीन घंटे ही रहते हैं। विद्यार्थियों और शिक्षकों से कोई संवाद नहीं है। कोई भी स्तरीय संगोष्ठियां नहीं हुई। वर्षों से लंबित शिक्षकों की भर्तियां,पदोन्नतियां नहीं हुई। नैक का आवेदन तक नहीं हुआ। विद्यार्थियों की परीक्षा कभी भी समय से नहीं हुई। छात्रों के लिए बुनियादी सुविधाएं भी नहीं हैं। वर्षों से कार्यरत दैनिक वेतन भोगी कर्मचारियों को सेवा से हटाया गया। शिक्षकों कर्मचारियों के बीच सद्भावना खत्म कर दी गई। कुलपति की नियुक्ति में हुई ,अनियमितता का दंड पूरे विश्वविद्यालय को मिल रहा है।