CG News: गिद्ध संरक्षण में छत्तीसगढ़ की वैज्ञानिक पहल, सैटेलाइट टैगिंग से बदलेगा संकटग्रस्त प्रजातियों का भविष्य

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बीजापुर। छत्तीसगढ़ ने जैव विविधता संरक्षण की दिशा में एक नई वैज्ञानिक पहल करते हुए गिद्धों की घटती आबादी को रोकने की ठोस कोशिश शुरू की है। इंद्रावती टाइगर रिजर्व में पहली बार भारतीय गिद्ध (Gyps indicus) और सफेद पीठ वाले गिद्ध (Gyps bengalensis) की सैटेलाइट टैगिंग और रिंगिंग की गई। यह कार्य छत्तीसगढ़ वन विभाग और बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी (BNHS) के साझा प्रयास से, वैज्ञानिक पद्धति के तहत किया गया।

टेक्नोलॉजी से संरक्षण की ओर
गिद्धों पर लगाए गए सैटेलाइट टैग्स और पहचान रिंग अब इन पक्षियों की आवाजाही, प्रवास की दिशा, घोंसले की स्थिति, और मृत्यु के संभावित कारणों जैसे व्यवहारों की बारीकी से निगरानी करेंगे। यह डेटा न केवल वैज्ञानिक शोध में सहायक होगा, बल्कि राज्य व राष्ट्रीय स्तर पर गिद्ध संरक्षण नीतियों की नींव भी बनेगा।













इस प्रक्रिया को वन्यजीव विशेषज्ञ सचिन रानाडे (BNHS) और इंद्रावती टाइगर रिजर्व के फील्ड बायोलॉजिस्ट सूरज नायर की निगरानी में पर्यावरण मंत्रालय (MoEF&CC) की स्वीकृति और अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक प्रोटोकॉल के तहत अंजाम दिया गया।

नीति निर्माण में उपयोगी डेटा
गिद्धों की संख्या में आई गिरावट भारत सहित दक्षिण एशिया में एक चिंताजनक मुद्दा रहा है। सैटेलाइट टैगिंग से मिलने वाला डेटा यह जानने में मदद करेगा कि गिद्ध किन क्षेत्रों में निवास करते हैं, उन्हें किस तरह के खतरे हैं, और किन कारणों से उनकी मृत्यु हो रही है। इससे जहरीले रसायनों के नियंत्रण, निवास क्षेत्रों की सुरक्षा और प्रजनन स्थलों की बहाली जैसी नीतियों को सशक्त आधार मिलेगा।

स्थानीय नेतृत्व और समन्वय
यह ऑपरेशन छत्तीसगढ़ सरकार के वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री केदार कश्यप के नेतृत्व और प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यजीव) सुधीर कुमार अग्रवाल (IFS) के मार्गदर्शन में सफलतापूर्वक पूरा हुआ। क्षेत्रीय स्तर पर इंद्रावती टाइगर रिजर्व के निदेशक आरसी दुग्गा, उप निदेशक संदीप बलगा और बीजापुर डीएफओ रंगनाथ रामकृष्ण वाई ने इसकी योजना और संचालन में अहम भूमिका निभाई।

राष्ट्रीय स्तर पर एक मॉडल
इस पहल को जैव विविधता संरक्षण की दिशा में एक मॉडल प्रोजेक्ट के रूप में देखा जा रहा है, जिसे अन्य राज्यों द्वारा भी अपनाया जा सकता है। संकटग्रस्त प्रजातियों के लिए आधुनिक तकनीक का उपयोग भारत में संरक्षण के परिदृश्य को एक नई दिशा दे सकता है।





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