CG News: इस मंदिर में 10 वर्ष की कन्या ही जलाती है ज्योति…माचिस की जगह इस पत्थर का होता है इस्तेमाल

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रायपुर Chaitra Navratri 2023 in Chhattisgarh: देशभर में चैत्र नवरात्रि का पर्व बुधवार से शुरू हो गया. इस मौके पर माता के भक्त सुबह से शाम तक देवी मंदिरों में दर्शन करने लिए पहुंच रहे हैं. छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर  स्थित 1300 वर्ष पुरानी महामाया मंदिर में नवरात्रि के दौरान भक्तों का तांता लग जाता है.
दरअसल, इस मंदिर जुड़ी कई अनोखी मान्यताएं हैं. यहां की रस्मों जानकर लोग हैरान हो जाते हैं. इस मंदिर में 10 वर्षीय कुंवारी कन्या ही ज्योति कलश जलाती है. इस मंदिर में ज्योति कलश जलाने के लिए माचिस की जगह चकमक पत्थर का इस्तेमाल किया जाता है.

प्राचीन है यह महामाया मंदिर























दरअसल, मां महामाया मंदिर बेहद ही खास मंदिर है. इसकी मान्यता इतनी खास है कि दूर दूर से श्रद्धालु मंदिर में दर्शन करने पहुंचते हैं. इस साल भी चैत्र नवरात्रि पर मंदिर में सुबह से ही भक्तों की कतारें लग गईं. मंदिर के पुजारी पंडित मनोज शुक्ला बताते हैं कि ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार इस मंदिर को 1300 साल पहले 8वीं शताब्दी में हैहयवंशी राजाओं ने बनवाया था. मान्यता है कि छत्तीसगढ़ में 36 किले बनवाए और हर किले की शुरुआत में मां महामाया के मंदिर बनवाए गए. रायपुर के महामाया मंदिर में महालक्ष्मी के रूप में माता दर्शन देती हैं. यहां मां महामाया और समलेश्वरी देवी को विराजमान किया गया है.

माचिस का नहीं होता उपयोग

हर नवरात्रि पर मां महामाया मंदिर में विशेष महत्व के साथ ज्योति कलश जलाए जाते हैं. मंदिर समिति के सदस्य विजय झा ने इसकी कहानी बताते हुए कहा कि यहां पहल ज्योति कलश 10 साल से कम उम्र की कुंवारी कन्या ही जलाती हैं. इसके बाद माता के गर्भगृह की ज्योत जलाई जाती है. उन्होंने कहा कि परंपरा के अनुसार हमारा मानना है कुंवारी कन्या के रूप में माता खुद इस पर्व की शुरुआत ज्योति जला कर करती है. इसके अलावा महामाया मंदिर में पारंपरिक मान्यता के अनुसार से अग्नि जलाई जाती है. यहां माचिस का उपयोग नहीं किया जाता. आदिकाल की तरह ही चकमक पत्थर को रगड़ कर आग जलाई जाती है.

कुंवारी कन्या को मानते हैं देवी स्वरूप

इस बार महामाया मंदिर में 10 हजार से अधिक ज्योति कलश जलाए जा रहे हैं. वहीं, इसकी शुरुआत विशेष परंपरा से की जाती है. मंदिर में पहला जोत जलाने के लिए 10 साल से कम उम्र की कुंवारी कन्या को लाल चुनरी के साथ माता के स्वरूप में तैयार किया जाता है. मंदिर के प्रमुख पुजारियों की मौजूदगी में मंदिर में मंत्रोच्चार के साथ पहला ज्योति कलश जलाया जाता है. इसके बाद माता स्वरूप कुंवारी कन्या के लोग आशीर्वाद लेते हैं.

नवरात्रि पर श्रद्धालुओं के लिए खास नियम

महामाया मंदिर के पंडित मनोज शुक्ला ने बताया कि श्रद्धालुओं के लिए कुछ खास नियम बनाए गए हैं. उन्होंने कहा कि धोती के साथ पीला और भगवा कपड़ा पहन कर माथे पर तिलक लगाकर, अपने आसपास के मंदिर जाना चाहिए. श्रद्धालुओं को साथ में कम से कम 2 ध्वज, पताका खरीद कर ले जाना चाहिए. दोनों को मंदिर में चढ़ा कर 1 वापस ले आए और इसे अपने अपने घर के छत पर लगाएं. घर के गेट पर आम पत्ते का तोरण लगाएं. इसके बाद घर के बड़े बुजुर्गों का आशीर्वाद लेकर रात में दीप जरूर जलाएं.



































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