चक्रधर समारोह 2025 : सुर-ताल और घुंघरू की सतरंगी छटा, केंद्रीय राज्य मंत्री रामदास अठावले ने कहा- मल्लखंभ दल रहा आकर्षण का केंद्र, देश ही नहीं, पूरी दुनिया में प्रतिष्ठित हो रहा है चक्रधर समारोह

केंद्रीय राज्य मंत्री अठावले ने समारोह के आठवें दिन के कार्यक्रम का किया विधिवत शुभारंभ
पद्मश्री स्व.डॉ सुरेन्द्र दुबे को चक्रधर समारोह का मंच किया नमन
काव्य संध्या में गूंजा हास्य, वीर रस और व्यंग्य का संगम
अबूझमाड़ के विश्व प्रसिद्ध मल्लखंब दल ने दिखाया ताकत, संतुलन और लचीलेपन का अद्भुत संगम
अर्नव चटर्जी की गायकी ने समारोह को बनाया अविस्मरणीय
मैया मोरी मैं नहीं माखन खायो पर सात वर्षीय आशिका सिंघल ने कथक पर दी अद्भुत प्रस्तुति, दर्शक हुए भावविभोर
संगीता कापसे ने कथक में झलकाया कृष्ण लीला और भक्ति भाव
रायपुर की सुप्रसिद्ध नृत्यांगना अजीत कुमारी कुजूर और उनकी टीम ने भरतनाट्यम से दिखाई दक्षिण भारत की झलक
दुर्ग की देविका दीक्षित की कथक प्रस्तुति से देखने को मिला परंपरा और नवाचार का अनूठा संगम
डॉ.लक्ष्मीनारायण जेना और उनकी टीम की कथक प्रस्तुति ने रचा अद्भुत समा
रायगढ़ घराने की कथक परंपरा को जीवंत करती वासंती वैष्णव और उनकी टीम की अनूठी प्रस्तुति
जबलपुर की कथक गुरु नीलांगी कालांतरे ने बिखेरी कला की छटा
स्थानीय कलाकारों के साथ मुंबई, बेंगलुरू और जबलपुर के कलाकारों ने शास्त्रीय संगीत में दी मनमोहक प्रस्तुति
रायगढ़, 4सितम्बर 2025/ अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त चक्रधर समारोह 2025 का आठवां दिन विविध सांस्कृतिक प्रस्तुतियों और लोक-शास्त्रीय कलाओं की अनूठी छटा से सराबोर रहा। रामलीला मैदान में आयोजित सुर, ताल, छंद और घुंघरू के आठवें दिन कलाकारों की सजीव प्रस्तुतियों ने दर्शकों को भावविभोर कर दिया और समारोह की गरिमा को नई ऊंचाइयों पर पहुँचा दिया।
कार्यक्रम का शुभारंभ केंद्रीय राज्य मंत्री, सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय, भारत सरकार श्री रामदास अठावले ने भगवान श्री गणेश की पूजा-अर्चना, राजा चक्रधर के चित्र पर पुष्प अर्पित कर तथा दीप प्रज्वलित कर समारोह का शुभारंभ किया। कार्यक्रम को संबोधित करते हुए केंद्रीय राज्य मंत्री श्री रामदास अठावले ने कहा कि राजा चक्रधर सिंह केवल रायगढ़ के नहीं, बल्कि पूरे देश के गौरव हैं। वे एक महान शासक, समाजसेवी और संगीत साधक थे। गरीबों, किसानों, मजदूरों और आदिवासी समाज के उत्थान के लिए उन्होंने कार्य किया और कथक को नया आयाम देकर ‘रायगढ़ घरानेÓ की स्थापना की। आज उनका यह सांगीतिक धरोहर देश ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में सम्मान पा रहा है। इस मौके पर राज्यसभा सांसद श्री देवेंद्र प्रताप सिंह, नगर निगम रायगढ़ महापौर श्री जीवर्धन चौहान, सभापति श्री डिग्री लाल साहू, कलेक्टर श्री मयंक चतुर्वेदी, पुलिस अधीक्षक श्री दिव्यांग पटेल सहित अनेक जनप्रतिनिधि एवं गणमान्य नागरिक उपस्थित रहे।
आठवें दिन का मुख्य आकर्षण अबूझमाड़ का प्रसिद्ध मल्लखंभ दल रहा। उनकी रोमांचक प्रस्तुतियों ने दर्शकों को उत्साहित कर तालियों से सभागार गूंजा दिया। इस अवसर पर रायपुर की आशिका सिंघल, संगीता कापसे संगीत कला अकादमी रायपुर, दुर्ग की देविका दीक्षित, बिलासपुर की श्रीमती वासंती वैष्णव एवं टीम, जबलपुर की श्रीमती निलांगी कालान्तरे और बेंगलुरु के डॉ.लक्ष्मी नारायण जेना ने कथक की विभिन्न शैलियों से दर्शकों को मंत्रमुग्ध किया। रायपुर की श्रीमती अजीत कुमारी कुजूर ने भरतनाट्यम और मुंबई के श्री अर्नव चटर्जी ने मधुर गायन से समा बांध दिया। चक्रधर समारोह के अवसर पर पद्मश्री स्व. डॉ. सुरेन्द्र दुबे की स्मृति में विशेष काव्य संध्या का आयोजन हुआ। कवियों की प्रस्तुतियों में हास्य, वीर रस और व्यंग्य का सुंदर संगम देखने को मिला। दर्शक देर तक तालियों से कवियों का उत्साहवर्धन करते रहे।
सात वर्षीय आशिका सिंघल की कथक प्रस्तुति ने मोहा मन
चक्रधर समारोह 2025 के आठवें दिन का शुभारंभ नन्हीं बाल कलाकार आशिका सिंघल की कथक नृत्य प्रस्तुति से हुआ। केवल 7 वर्ष की आयु में ही आशिका ने अपनी सधी हुई ताल और भावपूर्ण अभिनय से उपस्थित दर्शकों का दिल जीत लिया। आशिका ने मैया मोरी मैं नहीं माखन खायो जैसे भक्ति गीत पर कथक नृत्य प्रस्तुत कर मंच की गरिमा बढ़ाई। उनकी लय, ताल और भावाभिव्यक्ति ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। रायपुर की बाल कलाकार आशिका सिंघल विगत चार वर्षों से कथक की साधना कर रही हैं। उन्होंने विद्यालय एवं विभिन्न प्रतियोगिताओं में उत्कृष्ट प्रदर्शन कर कई उपलब्धियां हासिल की हैं।
संगीता कापसे ने कथक में झलकाया कृष्ण लीला और भक्ति भाव
कथक नृत्यांगना और गुरु संगीता कापसे और उनकी होनहार शिष्याओं की प्रस्तुति ने शास्त्रीय नृत्य को कृष्ण भक्ति की गहराई से जोड़ा। उन्होंने तीनताल और झपताल की संरचनाओं पर आधारित नृत्य में श्रीकृष्ण के जीवन प्रसंगों को भावपूर्ण ढंग से प्रस्तुत किया।
संगीता कापसे और उनकी शिष्याओं ने मंच पर ‘कृष्ण सांवरिया’ प्रसंग को जीवंत किया। आज चक्रधर समारोह में कृष्ण सांवरा की प्रस्तुति रही-कृष्ण के गोकुल आगमन पर खुशी और उल्लास का भाव, माखन चोरी करते समय यशोदा और कृष्ण की ममता का भाव, गोपियों को परेशान करना, फिर कालिया नाग से सारे गोकुल को मुक्त करना और अंत में गोपियों के साथ रास करके प्रेम का संदेश देना। इन सबको उन्होंने भाव और लय की सुंदरता से पिरोया। उनकी प्रस्तुति में कथक का सौंदर्य ही नहीं, बल्कि लोक और शास्त्र के संगम का भी अनुभव हुआ। कार्यक्रम में कला-प्रेमियों ने उनकी नृत्य साधना और कृष्ण भक्ति से ओतप्रोत इस प्रस्तुति को सराहा।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मलेशिया और दुबई तक अपनी कला का प्रदर्शन कर चुकी संगीता कापसे को कई प्रतिष्ठित पुरस्कार मिल चुके हैं। छत्तीसगढ़ में पंजीकृत संगीता कला एकेडमी, रायपुर उनकी संस्था है, जो सामान्य बच्चों के साथ-साथ गरीब बच्चों को भी नृत्य का नि:शुल्क प्रशिक्षण दे रही है और उनकी शिक्षा का दायित्व उठा रही है।
अजीत कुमारी कुजूर और उनकी टीम ने भरतनाट्यम से दिखाई दक्षिण भारत की झलक
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर की सुप्रसिद्ध नृत्यांगना अजीत कुमारी कुजूर और उनकी टीम ने भरतनाट्यम की मनमोहक प्रस्तुति देकर दर्शकों का दिल जीत लिया। उनकी भावपूर्ण अभिव्यक्ति, सधे हुए पदचालन और नृत्य की बारीकियों ने सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया। अजीत कुमारी की प्रस्तुति में दक्षिण भारत की संस्कृति और परंपरा की झलक सजीव रूप में दिखाई दी। उन्होंने भरतनाट्यम के माध्यम से कहानी कहने और भावनाओं को व्यक्त करने के लिए हाथों के हाव-भाव (मुद्रा), चेहरे के भाव (नवरस) और पैरों की तालबद्ध चाल का बेहतरीन उपयोग किया। यह प्रस्तुति न केवल भरतनाट्यम की शास्त्रीयता को दर्शाती थी, बल्कि छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक धरोहर का अद्भुत संगम भी प्रतीत हुई।















अपनी बहुमुखी प्रतिभा के लिए जानी जाने वाली अजीत कुमारी कुजूर ने जबलपुर से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक और योग में स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त की है। वर्तमान में वह जल संसाधन विभाग, रायपुर में उप अभियंता के पद पर कार्यरत हैं। अपनी पेशेवर जिम्मेदारियों के साथ-साथ, उन्होंने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपनी नृत्य कला से एक विशिष्ट पहचान बनाई है। कला प्रेमियों ने उनकी प्रस्तुति की सराहना करते हुए कहा कि यह न केवल भरतनाट्यम की उत्कृष्टता को दर्शाती है, बल्कि लगन और समर्पण से कोई भी व्यक्ति अपने पेशेवर जीवन के साथ-साथ अपनी कला साधना को भी नई ऊंचाइयों तक ले जा सकता है। ज्ञात हो कि भरतनाट्यम तमिलनाडु, दक्षिण भारत का एक प्राचीन शास्त्रीय नृत्य है, जिसकी जड़ें मंदिरों में हैं और यह हिंदू धर्म की आध्यात्मिक विचारों और धार्मिक कहानियों को व्यक्त करता है।
दुर्ग की देविका दीक्षित ने कथक में परंपरा और नवाचार का अनूठा संगम प्रस्तुत किया
दुर्ग की कथक नृत्यांगना देविका दीक्षित ने अपनी प्रस्तुति से दर्शकों का मन मोह लिया। लगभग चौबीस वर्षों से कथक साधना में रमीं देविका ने परंपरा और नवीनता का ऐसा संगम प्रस्तुत किया, जिसमें भाव, लय और ताल की उत्कृष्टता स्पष्ट झलकी। उनकी प्रस्तुति में कथक की गहराई के साथ आधुनिक दृष्टि का समावेश दिखाई दिया। दर्शकों ने इस प्रतिभाशाली कलाकार के समर्पण और साधना से सजी प्रस्तुति को तालियों की गडग़ड़ाहट के साथ सराहा।
देविका दीक्षित ने पाँच वर्ष की उम्र से ही नृत्य यात्रा की शुरुआत की और गुरु श्रीमती उपासना तिवारी एवं आचार्य पंडित कृष्ण मोहन मिश्र से प्रशिक्षण प्राप्त किया। कथक में ‘कोविद’ और ‘विशारद’ उपाधियाँ अर्जित करने के साथ उन्हें नेशनल नृत्य शिरोमणि पुरस्कार, श्रेष्ठ भारत सम्मान और गोपीकृष्ण नेशनल अवॉर्ड सहित कई राष्ट्रीय सम्मान मिल चुके हैं। दिल्ली के कामानी ऑडिटोरियम से लेकर बनारस लिट फेस्ट तक उन्होंने अपनी कला का प्रदर्शन कर सराहना प्राप्त की है। नृत्य के साथ-साथ शिक्षा के क्षेत्र में भी देविका ने अपनी अलग पहचान बनाई है। लंदन यूनिवर्सिटी कॉलेज से अर्बन डिजाइन में स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त करने के बाद वे वर्तमान में आईआईएम, रायपुर से एमबीए की पढ़ाई कर रही हैं।
बेंगलुरु के डॉ.लक्ष्मीनारायण जेना और उनकी टीम की कथक प्रस्तुति ने रचा अद्भुत समा
बेंगलुरू के प्रख्यात कथक कलाकार डॉ. लक्ष्मीनारायण जेना और उनकी टीम ने कथक की ऐसी अनुपम प्रस्तुति दी कि दर्शक भावविभोर होकर तालियों की गडग़ड़ाहट से सभागार गूंजाते रहे। डॉ. जेना ने लखनऊ-जयपुर घराने की बारीकियों को अपने नृत्य में समाहित कर भारतीय परंपरा और संस्कृति का अद्भुत चित्रण प्रस्तुत किया। उनकी भाव-भंगिमाएं, पदचालन और ताल की सटीकता ने कथक की शास्त्रीयता को मंच पर जीवंत कर दिया। प्रस्तुति में उनके साथ श्री मैसुर बी.नागराज, श्री अजय कुमार सिंह, श्री रघुपति झा और श्री विजय ने संगत कर समां और भी भव्य बना दिया। भाव, राग और ताल के इस अनूठे संगम ने समारोह में उपस्थित कला प्रेमियों को मंत्रमुग्ध कर दिया।
गौरतलब है कि कथक एक उत्तर भारतीय शास्त्रीय नृत्य है, जिसकी विशेषता जटिल पैरों के बोल, सुंदर हस्त-संचालन, चेहरे के भावों का प्रयोग और कहानी कहने की कला है। कथक नृत्य में अनुसरण किया जाने वाला क्रम आमद-एक नर्तकी का नाटकीय और आकर्षक प्रवेश, थाट-नृत्य का कोमल और सुरुचिपूर्ण भाग, तोरा, टुकरा और परन-नृत्य की रचनात्मक रचनाएँ, परहंत-कोमल लय के चरण और तत्कार- पैर की गति है। डॉ. लक्ष्मीनारायण जेना को भारत सरकार द्वारा प्रतिष्ठित उस्ताद ‘बिस्मिल्लाह खां युवा पुरस्कार’ से सम्मानित किया जा चुका है। वे विदेशों में भी भारत की सांस्कृतिक धरोहर को मंच पर प्रस्तुत कर चुके हैं और आज रायगढ़ के ऐतिहासिक मंच पर उनकी उपस्थिति ने समारोह की गरिमा को और बढ़ाया।
अबूझमाड़ के विश्व प्रसिद्ध मल्लखंब दल ने दिखाया ताकत, संतुलन और लचीलेपन का अद्भुत संगम
चक्रधर समारोह की शाम आज उस समय अविस्मरणीय बन गई, जब अबूझमाड़ से आए श्री मनोज प्रसाद के नेतृत्व में मल्लखंब दल ने मंच पर प्रवेश किया। परंपरा, अनुशासन और अद्भुत संतुलन के साथ खिलाडिय़ों ने ऐसा प्रदर्शन किया कि पूरा कार्यक्रम स्थल रोमांचित हो उठा। बस्तर और नारायणपुर के छोटे-छोटे गांवों से निकलकर अंतरराष्ट्रीय मंच तक पहुँचे इंडियाज गॉट टैलेंट सीजन-10 के विजेता नरेंद्र गोटा और फुलसिंह सलाम ने अपने साथियों संग अद्भुत मल्लखंब कला की प्रस्तुति दी।
मंच पर कलाकारों ने खंभे पर कौशल, कला व जिम्नास्टिक की अद्भुत मुद्राओं का प्रदर्शन किया, जिसने दर्शकों को रोमांचित कर दिया। इस प्रस्तुति ने साबित कर दिया कि सुदूर वनांचल की प्रतिभाएं अब विश्व मंच तक अपनी पहचान दर्ज करा रही हैं। समारोह में उपस्थित हजारों दर्शकों ने खड़े होकर तालियों से इन कलाकारों की सराहना की और उन्हें छत्तीसगढ़ का गौरव बताया। यह वही दल है जिसने 2023 में इंडियाज गॉट टैलेंट सीजन 10 जीतकर पूरे देश का दिल जीता था। इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भी इन कलाकारों ने भारत का परचम लहराया है।
इन कलाकारों की सफलता के पीछे है अबूझमाड़ मल्लखंब अकादमी, जो 2018 से आदिवासी अंचलों के बच्चों को प्रशिक्षण देकर उन्हें राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिला रही है। अब तक इस अकादमी के 500 से अधिक राष्ट्रीय पदक विजेता तैयार हो चुके हैं और 50 से अधिक बच्चे यहाँ रहकर शिक्षा एवं मल्लखंब की विधिवत ट्रेनिंग ले रहे हैं। इनके प्रशिक्षक मनोज प्रसाद ने अपनी मेहनत, समर्पण और जुनून से इन बच्चों को विश्वस्तरीय मंच दिलाया है।
रायगढ़ घराने की कथक परंपरा को जीवंत करती वासंती वैष्णव और उनकी टीम की अनूठी प्रस्तुति
रायगढ़ घराने की विशिष्ट छाप छोड़ते हुए बिलासपुर की सुप्रसिद्ध कथक नृत्यांगना श्रीमती वासंती वैष्णव, सुश्री ज्योतिश्री और उनकी टीम ने शास्त्रीय नृत्य की ऐसी मोहक प्रस्तुति दी, जिसने उपस्थित दर्शकों को भावविभोर कर दिया। कार्यक्रम की शुरुआत गणेश स्तुति से हुई, जिसके पश्चात तबले की उठान, शिव तांडव, तबला और घुंघरुओं की जुगलबंदी तथा वर्षा ऋतु की अद्भुत झलकियों को नृत्य में पिरोया गया। सुर, ताल और भाव की इस अनूठी संगति ने सभागार में ऐसा वातावरण निर्मित किया कि दर्शक मंत्रमुग्ध होकर तालियों की गडग़ड़ाहट से कलाकारों का उत्साहवर्धन करते रहे।
ज्ञात हो कि रायगढ़ घराने की स्थापना राजा चक्रधर सिंह द्वारा की गई थी। कला-संरक्षक के रूप में उनकी दूरदृष्टि और नृत्य-प्रेम के कारण विभिन्न घरानों के महान गुरुओं व कलाकारों ने रायगढ़ को अपना केंद्र बनाया। यहीं से मेघ पुष्प, चमक बिजली, ब्रह्म बीज और दाल-बादल परन जैसी अनुपम नृत्य बंदिशों की रचना हुई, जो आज भी रायगढ़ घराने की पहचान बनी हुई हैं। इस घराने की एक विशेषता यह भी है कि इसके कलाकार या तो अत्यंत धीमी या फिर अत्यंत तेज गति में अपनी प्रस्तुति देते हैं, जो कथक की गहराई और विविधता को दर्शाता है। श्रीमती वासंती वैष्णव ने रायगढ़ घराने की शिक्षा अपने पिता व सुप्रसिद्ध कलागुरु श्री फिरतूराम महाराज से प्राप्त की है। कठोर साधना और संगतिक अनुशासन के प्रति उनकी निष्ठा ने उन्हें देश की प्रतिष्ठित कथक नृत्यांगनाओं की श्रेणी में स्थापित किया है। वे देश के प्रमुख कला मंचों पर अपनी अद्वितीय प्रस्तुतियों से रायगढ़ घराने की परंपरा को निरंतर आगे बढ़ा रही हैं।
जबलपुर की कथक गुरु नीलांगी कालांतरे ने बिखेरी कला की छटा
कथक की प्रख्यात गुरु नीलांगी कालांतरे ने अपनी विलक्षण प्रस्तुति से ऐसा समां बाँधा कि पूरा कार्यक्रम स्थल तालियों की गडग़ड़ाहट से गूँज उठा। उनकी साधना, भाव-भंगिमा और मनमोहक नृत्य मुद्राओं ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया।
गुरु नीलांगी कालांतरे ने सात वर्ष की आयु से कथक की शिक्षा आरंभ की। उन्हें यह ज्ञान गुरु शरदिनी गोले जी और पंडित रोहिणी भाटे जैसे विख्यात गुरुओं से प्राप्त हुआ। लगभग तीन दशकों से अधिक समय से वे कथक की परंपरा को साधते हुए इसे नई ऊँचाइयों पर पहुँचा रही हैं। मंच पर उनकी उपस्थिति मात्र ने ही वातावरण को आध्यात्मिक और कलात्मक ऊर्जा से भर दिया। उन्होंने पारंपरिक कथक की बारीकियों के साथ आधुनिक प्रयोगों का ऐसा सुंदर समन्वय प्रस्तुत किया, जिसने दर्शकों को शास्त्रीय नृत्य की गहराई से अवगत कराया। भक्ति और लयात्मकता से ओतप्रोत उनकी प्रस्तुतियों ने यह संदेश दिया कि कला साधना केवल प्रदर्शन नहीं, बल्कि जीवन का अभिन्न हिस्सा है।
पद्मश्री स्व.डॉ सुरेन्द्र दुबे को चक्रधर समारोह का मंच किया नमन, काव्य संध्या में गूंजा हास्य, वीर रस और व्यंग्य का संगम
अंतरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त चक्रधर समारोह की आठवीं संध्या साहित्य पद्मश्री स्व.डॉ.सुरेन्द्र दुबे की स्मृतियों को नमन करते हुए एक विशेष काव्य संध्या का आयोजन रायगढ़ के रामलीला मैदान में हुआ। पद्मश्री डॉ.दुबे, जिन्होंने हास्य और व्यंग्य को वैश्विक पहचान दिलाई, अनेक बार इस मंच पर अपनी रचनाओं से श्रोताओं को गुदगुदा चुके थे। उनकी स्मृतियों को समर्पित इस संध्या में प्रदेश के ख्यात कवियों ने वीर रस, हास्य और व्यंग्य की रचनाओं से दर्शकों को भाव-विभोर कर दिया।
समारोह में राजनांदगांव के पद्मलोचन मुंहफट ने हास्य, व्यंग्य और पैरोडी से हंसी की फुहारें बिखेरीं। भिलाई के किशोर तिवारी ने अपने मधुर गीतों से श्रोताओं के दिलों को छू लिया। मुंगेली के देवेन्द्र परिहार ने ओजस्वी वीर रस की कविताओं ने वातावरण को ऊर्जावान बना दिया। रायपुर की शशि सुरेन्द्र दुबे ने गीत और व्यंग्य की रचनाओं से श्रोताओं को गुदगुदाया और सोचने पर विवश किया। रायगढ़ के नरेन्द्र गुप्ता ने वीर रस की कविताओं ने देशभक्ति और पराक्रम की भावना को जीवित किया।
बिलाईगढ़ के बंशीधर मिश्रा ने हास्य कविताओं की चुटीली पंक्तियों से माहौल को खुशनुमा बना दिया। कवर्धा के अभिषेक पांडे ने युवा ऊर्जा और समकालीन व्यंग्य से भरी हास्य कविताओं ने मंच को जीवंत किया। बता दे कि गत वर्ष आयोजित 39वें चक्रधर समारोह में डॉ.दुबे ने अपनी चिरपरिचित पैनी व चुटीली कविताओं से मंच को हँसी और व्यंग्य से गूंजा दिया था। अब वे हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी साहित्य साधना और कला अवदान अमर है। इस काव्य संध्या ने उनके योगदान को सच्ची श्रद्धांजलि दी।
कवियों का परिचय
शशि सुरेंद्र दुबे-छत्तीसगढ़ की जानीमानी कवयित्री और दिवंगत डॉ.सुरेंद्र दुबे की धर्मपत्नी हैं। उन्होंने ‘वाह वाह क्या बात है’ जैसे कई टीवी कार्यक्रमों और दूरदर्शन पर काव्य पाठ किया है। उनका काव्य संग्रह ‘पट्टी खोलो गांधारी’ प्रकाशित हो चुका है। किशोर तिवारी-मधुर गीतकार हैं, जो वाह वाह क्या बात है समेत विभिन्न राष्ट्रीय मंचों, आकाशवाणी और दूरदर्शन पर काव्य पाठ कर चुके हैं। पद्मलोचन मुंहफट-पद्मश्री डॉ. सुरेंद्र दुबे के शिष्य, पद्मलोचन हास्य-व्यंग्य और पैरोडी के लिए मशहूर हैं। उन्होंने देश के 16 राज्यों में काव्य पाठ कर छत्तीसगढ़ का नाम रोशन किया है। देवेन्द्र परिहार-वीर रस के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने ज़ी न्यूज़ के कवि युद्ध सहित कई राष्ट्रीय और प्रादेशिक चैनलों पर काव्य पाठ किया है। नरेंद्र गुप्ता-रायगढ़ के मूल निवासी और वीर रस के कवि हैं। उन्हें अटल साहित्य सम्मान और दिनकर साहित्य सम्मान से सम्मानित किया जा चुका है। बंशीधर मिश्रा-ख्यात हास्य कवि, जो देश के कई राज्यों में काव्य पाठ और मंच संचालन कर चुके हैं। वे वाह भाई वाह टीवी शो में भी 6 एपिसोड में शामिल हुए थे। उनकी हास्य संग्रह ‘भूतहा लोरी’ प्रकाशित हो चुकी है और उन्हें धुरंधर हास्य सम्मान 2025 से सम्मानित किया गया है। अभिषेक पांडे-युवा कवि, वक्ता और आयोजक हैं, जो अपनी वक्ता कला के लिए युवा पुरस्कार से सम्मानित हैं। वे दूरदर्शन सहित विभिन्न निजी चैनलों पर काव्य पाठ कर चुके हैं।
मुंबई के विख्यात संगीतकार एवं गायक अर्नव चटर्जी की सुमधुर तान की गूंज
मधुर रागों से सजी प्रस्तुति, श्रोताओं के दिलों में उतरा संगीत का रस
सुप्रसिद्ध संगीतकार एवं गायक अर्नव चटर्जी ने अपनी अनूठी प्रस्तुति से दर्शकों का मन मोह लिया। छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में जन्में और ऑल इंडिया रेडियो, मुंबई से प्रमाणित गायक अर्नव चटर्जी ने भजन, गज़ल और गीतों की प्रस्तुति दी। उनकी मधुर आवाज़ और सुर-ताल की अद्भुत संगति ने श्रोताओं को मुग्ध कर दिया। कार्यक्रम के दौरान अर्नव चटर्जी ने फिल्म, टीवी सीरियल, म्यूजि़क एल्बम और डॉक्यूमेंट्री फिल्मों के लिए किए गए अपने सृजनात्मक योगदान की झलक भी प्रस्तुत की। संगीत प्रेमियों ने उन्हें खड़े होकर तालियों से सम्मानित किया। चक्रधर समारोह की इस संध्या में उनकी प्रस्तुति ने न केवल भारतीय संगीत की समृद्ध परंपरा को जीवंत किया बल्कि अर्नव चटर्जी की संगीतमयी संध्या ने समारोह को अविस्मरणीय बना दिया।