छत्तीसगढ़

बस्तर के आकाश कुमार देवांगन को राष्ट्रीय हथकरघा पुरस्कार, ट्राइबल बस्तर जाला कोसा साड़ी ने दिलाया गौरव 

रायपुर। छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले के युवा और प्रतिभाशाली बुनकर आकाश कुमार देवांगन ने अपनी अद्वितीय ट्राइबल बस्तर जाला कोसा साड़ी के लिए राष्ट्रीय हथकरघा पुरस्कार प्राप्त कर राज्य का नाम रोशन किया। यह सम्मान उन्हें नई दिल्ली में आयोजित 11वें राष्ट्रीय हथकरघा दिवस समारोह में केंद्रीय वस्त्र मंत्री गिरिराज सिंह द्वारा प्रदान किया गया।

यह विशेष साड़ी बस्तर की पारंपरिक जाला बुनाई तकनीक और कोसा रेशम की विशिष्टता का अद्वितीय संगम है। अपने जटिल डिज़ाइन, पारंपरिक पैटर्न और प्राकृतिक रंगाई की विशेषताओं के कारण यह न केवल देश में बल्कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी आकर्षण का केंद्र बनी हुई है।

समारोह में विदेश एवं वस्त्र राज्य मंत्री श्री पबित्रा मार्गेरिटा, उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण राज्य मंत्री निमुबेन जयंतीभाई बांभणिया, सांसद श्रीमती कंगना रनौत, सचिव वस्त्र श्रीमती नीलम शमी राव सहित मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी और देशभर के लगभग 650 बुनकर, डिजाइनर, निर्यातक, विदेशी खरीदार और अन्य हितधारक उपस्थित रहे।

अपने संबोधन में केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने कहा कि वस्त्र क्षेत्र देश का दूसरा सबसे बड़ा रोजगार सृजन क्षेत्र बन चुका है और बस्तर के बुनकरों की तरह ही देशभर के कारीगर पारंपरिक कलाओं को संरक्षित करते हुए नवाचार के जरिए नए बाजार बना रहे हैं। उन्होंने हथकरघा उत्पादों में विविधीकरण, प्राकृतिक रेशों को बढ़ावा देने और नई पीढ़ी के बुनकर उद्यमियों को सशक्त बनाने पर जोर दिया।

छत्तीसगढ़ प्रतिनिधिमंडल ने इस अवसर पर कोसा सिल्क, डोकरा-प्रेरित डिज़ाइन और बस्तर की विशिष्ट जला बुनाई के नमूने प्रदर्शित किए, जिन्हें विदेशी खरीदारों और डिजाइनरों ने विशेष सराहना दी।

कार्यक्रम के अंतर्गत निफ्ट मुंबई द्वारा हथकरघा उत्कृष्टता पर कॉफी टेबल बुक का विमोचन, “वस्त्र वेद – भारत की हथकरघा विरासत” शीर्षक से फैशन शो, पुरस्कार विजेता उत्पादों की प्रदर्शनी और विशेष रूप से तैयार की गई फिल्मों का शुभारंभ भी किया गया।

गौरतलब है कि राष्ट्रीय हथकरघा दिवस हर साल 7 अगस्त को 1905 के स्वदेशी आंदोलन की स्मृति में मनाया जाता है, जिसने स्वदेशी उत्पादों के उपयोग को बढ़ावा दिया और हथकरघा उद्योग को सशक्त बनाया। हथकरघा क्षेत्र आज पूरे देश में 35 लाख से अधिक लोगों को रोजगार देता है, जिसमें 70% से अधिक महिलाएं हैं। छत्तीसगढ़ में यह न केवल आजीविका का महत्वपूर्ण साधन है बल्कि सांस्कृतिक पहचान और पारंपरिक कला के संरक्षण का माध्यम भी है।

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