छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट का अहम फैसला: विधवा बहू को पुनर्विवाह तक ससुर से भरण-पोषण पाने का अधिकार

बिलासपुर: छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि हिंदू दत्तक ग्रहण एवं भरण-पोषण अधिनियम, 1956 की धारा 19 के तहत एक विधवा बहू को तब तक अपने ससुर से भरण-पोषण पाने का अधिकार है, जब तक वह दूसरा विवाह नहीं कर लेती। हाई कोर्ट ने कोरबा फैमिली कोर्ट के उस फैसले को बरकरार रखा है, जिसमें एक ससुर को अपनी विधवा बहू को हर महीने ₹2,500 देने का आदेश दिया गया था।
क्या है पूरा मामला?
यह मामला कोरबा जिले का है, जहां चंदा यादव का विवाह 2006 में हुआ था। 2014 में उनके पति की सड़क दुर्घटना में मौत हो गई, जिसके बाद वह अपने बच्चों के साथ अलग रहने लगीं। चंदा ने अपने ससुर तुलाराम यादव से भरण-पोषण की मांग करते हुए फैमिली कोर्ट में याचिका दायर की थी।
फैमिली कोर्ट ने 6 दिसंबर 2022 को आदेश दिया कि तुलाराम यादव अपनी बहू को हर महीने ₹2,500 का भरण-पोषण देंगे। इस फैसले से असहमत होकर तुलाराम यादव ने हाई कोर्ट में अपील की। उन्होंने दलील दी कि उनकी आय सीमित है और उनकी बहू खुद नौकरी कर सकती है। साथ ही, उन्होंने बहू के चरित्र पर भी आरोप लगाए।
हाई कोर्ट का फैसला
हाई कोर्ट ने सभी दलीलों और दस्तावेजों की समीक्षा की। अदालत ने पाया कि तुलाराम यादव को करीब ₹13,000 की पेंशन मिलती है और उनके पास पैतृक संपत्ति भी है। वहीं, बहू के पास न तो कोई नौकरी है और न ही संपत्ति में कोई हिस्सा। ऐसे में, अदालत ने कहा कि कानून के अनुसार बहू को भरण-पोषण का अधिकार है और यह जिम्मेदारी ससुर की है।
अदालत ने यह भी साफ किया कि हिंदू दत्तक ग्रहण एवं भरण-पोषण अधिनियम, 1956 की धारा 19 विधवा बहू को सुरक्षा प्रदान करती है। यह धारा सुनिश्चित करती है कि यदि पति की संपत्ति से बहू का भरण-पोषण नहीं हो पा रहा है, तो ससुर पर यह दायित्व आता है। यह आदेश तब तक प्रभावी रहेगा जब तक बहू पुनर्विवाह नहीं कर लेती। इसी के साथ हाई कोर्ट ने ससुर की अपील को खारिज कर दिया।














