छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ में 50 करोड़ का पाठ्यपुस्तक महाघोटाला – 11 लाख ‘भूत’ छात्र बेनकाब”. बारकोड ने खोली पोल”

रायपुर.. छत्तीसगढ़ में सरकारी स्कूली शिक्षा व्यवस्था पर से परदा हटाते हुए एक चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। पाठ्यपुस्तक निगम में हर साल लगभग 50 करोड़ रुपये का महाघोटाला किया जा रहा था। घोटाले का तरीका इतना सुनियोजित था कि 11 लाख ऐसे छात्रों के नाम पर किताबें छपाई जाती थीं, जिनका स्कूलों में कोई नामोनिशान ही नहीं था।

ऐसे हुआ पर्दाफाश

नए अध्यक्ष राजा पांडे ने 12 अप्रैल को कार्यभार संभालने के बाद किताबों की छपाई और वितरण प्रक्रिया में गड़बड़ियों के संकेत पाए। इसके बाद पहली बार स्कैनिंग और बारकोडिंग सिस्टम लागू किया गया और ईमानदारी से यू-डाइस कोड के आंकड़े खंगाले गए। नतीजा यह निकला कि कक्षा पहली से दसवीं तक राज्य में सिर्फ 43 लाख छात्र पढ़ते हैं, जबकि पहले 54 लाख किताबें हर साल छपती थीं। यही अंतर लगभग 11 लाख ‘फर्जी छात्रों’ का था, जिन पर सालाना 50 करोड़ रुपये अतिरिक्त खर्च होता रहा।

पिछली सरकार और अधिकारियों की भूमिका

यह गड़बड़ी पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के कार्यकाल में भी जारी रही, जब स्कूल शिक्षा विभाग का जिम्मा रिटायर्ड आईएएस डॉ. आलोक शुक्ला के पास था। उस समय यू-डाइस कोड लागू करने से इनकार किया गया, जिससे आंकड़ों की हेराफेरी जारी रही। सरकारी रिकॉर्ड में 48 लाख छात्रों के लिए व्यवस्था थी, लेकिन भुगतान 50 लाख के हिसाब से किया जाता था।

टेंडर प्रक्रिया में भी गड़बड़ी
मामले में सिर्फ छात्रों की संख्या ही नहीं, बल्कि टेंडर प्रक्रिया में भी सवाल खड़े हुए हैं। निगम ने 78 रुपये प्रति किलो के हिसाब से कागज खरीदा, जबकि न्यूनतम दर देने वाली पार्टी के अलावा दो और कंपनियों को भी इसी दर पर टेंडर लेने को मजबूर किया गया। वहीं, यही पार्टी मध्यप्रदेश में 90-95 रुपये प्रति किलो के हिसाब से काम कर रही है, जो दरों के अंतर और प्रक्रिया की पारदर्शिता पर गंभीर सवाल खड़ा करता है।

अब क्या आगे?

घोटाले का खुलासा होने के बाद इस वर्ष किताबों की छपाई पर खर्च घटकर 100 करोड़ रुपये रह गया है। शिक्षा विभाग के आंकड़ों और खरीद प्रक्रिया पर गहन जांच की मांग तेज हो गई है। विशेषज्ञों का मानना है कि दोषियों पर केवल विभागीय कार्रवाई से काम नहीं चलेगा, बल्कि कठोर कानूनी दंड और राजनीतिक संरक्षण देने वालों की भी पहचान जरूरी है।

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