जशपुर में मितानिन ने गर्भवती को पीठ पर लादकर पार कराई नदी, कराया सुरक्षित प्रसव

जशपुर। छत्तीसगढ़ के जशपुर जिले से सरकारी लापरवाही और बुनियादी सुविधाओं की कमी को उजागर करने वाली एक घटना सामने आई है, जहाँ एक मितानिन (आशा कार्यकर्ता) ने अपनी जान जोखिम में डालकर एक गर्भवती महिला को पीठ पर लादकर तेज बहाव वाली नदी पार कराई और सड़क किनारे ही सुरक्षित प्रसव कराया। इस साहसिक कार्य के लिए मितानिन और दाई को “धरती की देवियां” कहकर सराहा जा रहा है।
टूटे पुल और खराब सड़कों ने बढ़ाई मुसीबत
यह घटना जशपुर जिले की मनोरा तहसील के सतालूटोली गांव की है। मंगलवार सुबह आठ बजे, गर्भवती आदिवासी महिला मंजीता बाई को संस्थागत प्रसव के लिए मितानिन बिफनी बाई और दाई रेलों बाई लेकर निकलीं। गांव को मुख्य सड़क से जोड़ने वाला पुल लंबे समय से टूटा हुआ है और पक्की सड़क का नामोनिशान नहीं है। ऊपर से बारिश के कारण नदी में पानी का बहाव काफी तेज था, और रास्ते में मोबाइल नेटवर्क भी काम नहीं कर रहा था।
सड़क किनारे हुआ प्रसव, जच्चा-बच्चा सुरक्षित
हालात इतने विकट थे कि मितानिन को महिला को पीठ पर लादकर नदी पार करनी पड़ी। नदी पार करने के बाद जैसे ही वे सड़क किनारे पहुंचे, मंजीता बाई को प्रसव पीड़ा तेज हो गई। गांव के ही ललित यादव के घर के सामने सड़क किनारे ही, मितानिन बिफनी बाई, दाई रेलों बाई और मंजीता की मां ने मिलकर सुरक्षित डिलीवरी कराई। प्रसव के बाद, नवजात शिशु और जच्चा को लाठी के सहारे अस्पताल तक ले जाया गया, जहाँ वे सुरक्षित हैं।
ग्रामीणों ने बताया कि पुल टूटे हुए एक लंबा समय हो गया है और वे लगातार जनप्रतिनिधियों से गुहार लगा रहे हैं, लेकिन अभी तक कोई समाधान नहीं निकला है।
ग्रामीण भारत में बुनियादी सुविधाओं की कमी उजागर
स्थानीय युवक ललित यादव ने इस घटना पर टिप्पणी करते हुए कहा कि अस्पताल महज डेढ़ किलोमीटर दूर है, लेकिन टूटी सड़क और पुल ने इस दूरी को जानलेवा बना दिया है। उन्होंने बताया कि इन खराब रास्तों के कारण बच्चे स्कूल नहीं जा पाते, शिक्षक गांव नहीं आ पाते, और बारिश के दौरान गांव का संपर्क बाहरी दुनिया से कट जाता है। यह घटना केवल एक महिला की पीड़ा की कहानी नहीं है, बल्कि यह उस सरकारी तंत्र पर एक करारा तमाचा है जो विकास के बड़े-बड़े दावे करता है, जबकि हकीकत में ग्रामीण भारत आज भी बुनियादी सुविधाओं के लिए जूझ रहा है।






