बिल्डरों से सौदेबाजी के लिए विधेयक पास होने के बाद 6 महीने आदेश लटका कर रखा! महिला सचिव ने किया इंकार…

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रायपुर। कालोनाईजर एक्ट बदलकर गरीबों के आवासों का नुकसान करने के मामले में एक बड़ा अपडेट आया है। बताते हैं, कालोनाईजर एक्ट बदलने को लेकर एक महिला सिकरेट्री तैयार नहीं थी। उन्होंने साफ कह दिया था कि गरीबों का हक मारने वाले इस एक्ट को बदलने वे कैबिनेट में कैसे लेकर जाएंगी। बताते हैं, इसके बाद उन्हें हटा दिया गया।

इस मामले में दूसरा खुलासा यह हुआ है कि कालोनाईजर एक्ट को बजट सत्र 2023 में पेश किया गया था और 13 मार्च 2023 को पारित कर दिया गया। हालांकि, विधानसभा में पारित हुआ है इसलिए गुपचुप ढंग से नहीं कहा जा सकता मगर इसका सिर्फ अजय चंद्राकर ने विरोध किया। बाकी और कुछ नहीं। विधेयक पारित हो गया।













 

छह महीने तक पेंडिंग क्यों?

13 मार्च 2023 को विधानसभा में कालोनाईजर एक्ट में संशोधन हो गया था। मगर आदेश राजपत्र में प्रकाशित हुआ 13 सितंबर 2023 को। याने ठीक छह महीने बाद। सवाल उठता है कि जिस एक्ट को बदलवाने छत्तीसगढ़ के बिल्डर सालों से लगे रहे, विधेयक पारित भी हो गया, तो उसे नगरीय प्रशासन द्वारा छह महीने तक लटका कर रखने का क्या तात्पर्य था। सूत्रों का कहना है, बिल्डरों के साथ सौदेबाजी चल रही थी।

 

चुनाव से महीने भर पहले क्यों?

जिस कालोनाईजर एक्ट को बदलवाने के लिए छत्तीसगढ़ के बिल्डर 13 सालों से प्रयासरत रहे, वह विधानसभा चुनाव 2023 से 15 दिन पहले क्यों किया गया…यह प्रश्न लाजिमी है। जाहिर है, रमन सरकार के दौरान भी बिल्डरों ने काफी प्रयास किया। मगर सरकार टस-से-मस नहीं हुई। कांग्रेस सरकार में भी चार साल तक बिल्डरों की दाल नहीं गली। अक्टूबर के फर्स्ट वीक में आचार संहिता संभावित थी। इससे पहले 13 सितंबर को कालोनाईजर एक्ट को बदल दिया गया।

एक साल में 1000 करोड का फटका

कालोनाईजर एक्ट में संशोधन से गरीबों के नाम पर बिल्डरों से मिलने वाली 15 फीसदी जमीनें मारी गई। पिछले एक साल में रेरा में 55.65 लाख वर्ग मीटर जमीनों की कालोनियों के लिए रजिस्ट्रेशन कराया गया है। 15 परसेंट के हिसाब से नगरपालिकाओं और नगर निगमों को एक साल में 200 एकड़ जमीनें मिलती और इसमें 300 वर्ग फुट की 27 हजार ईडब्लूएस आवास बनते। सोचिए, सिर्फ एक साल में गरीबों और सरकार का इतना बड़ा नुकसान हुआ, तो साल-दर-साल क्या होगा।

सिर्फ एक साल की बात करें तो शहरों में गिरे हालत में पांच करोड़ रुपए एकड़ जमीन होंगी तो 200 एकड़ का एक हजार करोड़ होता है। याने बिल्डरों को एक साल में एक हजार करोड का फायदा हुआ।

रेरा के अनुसार 13 सितंबर 2023 के बाद अब तक छत्तीसगढ़ में 217 नए प्रोजेक्ट की मंजूरी मिली है। इसके लिए 54,65756 वर्ग मीटर क्षेत्रफल की जमीन निर्धारित की गई है। इनमें 25170 प्लाट कटेंगे या आवास बनेंगे।

13 सितंबर 2023 से पहले के नियम के अनुसार 54.65 लाख वर्ग मीटर में से 15 परसेंट के हिसाब से कालोनाईजर गरीबों के लिए आवास के लिए नगरपालिकाओं या नगर निगमों को 200 एकड़ जमीन देते। इसमें गरीबों के लिए 300 वर्ग फुट के 27 हजार पक्के मकान बनते।

200 की बजाए अब 20 एकड़

नए नियम के अनुसार अब 200 एकड़ की जगह कालोनाईजर 20 एकड़ जमीन गरीबों के लिए सुरक्षित रख फुरसत पा जाएंगे। जबकि, 54.65 लाख वर्ग मीटर में से 15 परसेंट के हिसाब से उन्हें 200 एकड़ जमीन देना पड़ता। मगर 15 को घटाकर 9 परसेंट करने और क्षेत्रफल को संख्या में परिवर्तित करने के चतुराई भरे खेल से अब वे 20 एकड़ जमीन ही रिर्जव करेंगे। क्योंकि, सबसे छोटे साइज के 500 फुट के प्लाट की बात करें तो 9 परसेंट अनुसार 20 एकड़ होगा।

नगरनिगमों को शून्य

नए नियमों के गरीबों के लिए आरक्षित की जाने वाली जमीनें 15 से घटकर 9 परसेंट तो किया ही गया, उसे भी नगरपालिकाओं और नगर निगमों को नहीं दिया जाएगा। कालोनाईजर खुद ही अपने हिसाब से जमीनें आरक्षित करेंगे और खुद ही बनाकर बेच देंगे। मतलब नगरपालिकाओं और नगर निगमों के हाथ में अब कुछ भी नहीं रहेगा। इस नियम से हर साल नगरपालिकाओं को लैंड बैंक बनता जा रहा था। इसी जमीनों पर शहरों के भीतर गरीबों के लिए पक्का आवास बनाया जा रहा था।

देश में छत्तीसगढ़ का यूएसपी

गरीबों के लिए शहरों के भीतर अफोर्डेबल हाउसिंग प्रोजेक्ट बनाने के लिए देश में छत्तीसगढ़ को नजीर के रूप में पेश किया जा रहा था। क्योंकि, दूसरे राज्यों में ये नियम नहीं है। बाकी सभी राज्यों में शहरों के भीतर जमीन बची नहीं। लिहाजा, उन्हें शहरों के 30-40 किलोमीटर बाहर गरीबों के लिए आवास बनाया जाता है। भारत सरकार में होने वाली मीटिंगों में छत्तीसगढ़ को इसके लिए खूब वाहवाही मिलती थी कि देश का अकेला राज्य जहां गरीबों को शहरों के भीतर व्यवस्थान की व्यवस्था की जाती है।

छत्तीसगढ़ में पिछले विधानसभा चुनाव के पहले बिल्डरों ने गरीबों के हक पर डाका डालने का काम किया, उसके लिए वे पिछले 23 साल से प्रयासरत थे। पहले अजीत जोगी सरकार में नियम बदलवाने की कोशिश की। उसके बाद रमन सिंह सरकार के 15 बरसों तक लगातार दबाव डालते रहे कि किसी भी तरह नियम बदल जाए, जिससे उन्हें दोनों हाथ से मलाई खाने का मौका मिल जाए।

रमन सिंह सरकार में आवास और पर्यावरण विभाग तथा नगरीय प्रशासन में लंबे समय तक डायरेक्टर रहे एक अफसर ने एनपीजी न्यूज को बताया कि रमन सिंह की दूसरी और तीसरी पारी में कालोनाईजरों का बडा प्रेशर था कि गरीबों और कमजोर आय वर्ग के लिए जमीन छोड़ने का नियम बदल दिया जाए। खासकर, 2018 में विधानसभा चुनाव से पहले सारे कालोनाईजर एकजुट हो गए थे। मगर सरकार टस-से-मस नहीं हुई।

दरअसल, छत्तीसगढ़ देश का पहला नजीर पेश किया था, जो कालोनाईजरों से जमीन लेकर गरीबों के लिए शहरों में फ्लैट बनाकर दे रहा था। बिल्डर चाहते थे कि जमीन नगरपालिक और नगर निगम को देने की बजाए उन्हें अधिकार दे दिया जाए….वे खुद बनाकर बेचेंगे।

पिछली सरकार में विधानसभा चुनाव से महीना भर पहले सितंबर में वे इसमें कामयाब हो गए। नगरीय प्रशासन विभाग ने कालोनाईजरों की मिलीभगत से गरीबों के हकों की कटौती करने वाला आदेश 13 सितंबर 2023 को राजपत्र में प्रकाशित कर दिया। कालोनाईजर नियमों में ऐसे समय बदलाव किया गया, जब पूरा तंत्र चुनाव में लगा था। याने छत्तीसगढ़ के कालोनाईजर 23वें साल में गरीबों का हक मारने में कामयाब हो गए।





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