Raigarh: प्रयासों में कमी असफलता का मूल कारण- बाबा प्रियदर्शी राम

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बाबा प्रियदर्शी ने कहा आत्म तत्व को जाने बिना जीवन निरर्थक

पूज्य बाबा ने बताया ईश्वर भक्ति से मिटते है जीवन के क्लेश























गुरु पूर्णिमा के अवसर पर बाबा प्रियदर्शी का आशीर्वचन

रायगढ़। गुरु पूर्णिमा के अवसर नौ राज्यों सहित छत्तीसगढ़ से छत्तीसगढ़ के दो दर्जन जिलों से आए अघोर पंथ के अनुयाईयो सहित आम जनमानस से जीवन में अनिवार्य रूप से शील एवं शालीनता के पालन का अनुरोध करते हुए बाबा प्रियदर्शी राम ने कहा अध्यात्मिक एवं धार्मिक संस्थाओ से जुड़ा होना प्रसन्नता का विषय है। आध्यात्मिक संस्थाओं से जुड़े लोगो को जीवन की अलग अनुभूति होती है। संस्थाओं से जुड़े व्यक्तियो के जीवन में रहन सहन की शैली, बोल चाल का तौर तरीकों में सत्संग के प्रभाव की झलक दिखाई पड़ती है। इसलिए उनके जीवन में हर समय प्रसन्नता का भाव रहता है। उनके जीवन में संतो के सत्संग का प्रभाव भी स्पष्ट देखा जा सकता है। संस्थाओं जुड़े व्यक्तियों के संपर्क में आकर अन्य व्यक्तियों का जीवन भी स्वत: ही परिवर्तित होने लगता है। परमात्मा की कृपा से मिले मनुष्य जीवन को सौभाग्य का विषय बताते हुए पूज्य पाद ने कहा मनुष्य जीवन पाकर जन्म मरण एवं आवागमन के बंधन से मुक्ति संभव है। हाड़ मांस का यह शरीर गुरु नही बल्कि महा पुरुषों का दिव्य ज्ञान ही गुरु तत्व है । जिस पर हमारी श्रद्धा आस्था या विश्वास है उनके उपदेशों का अनुकरण कर जीवन का कल्याण किया जा सकता है। किसी भी धर्म जाति से जुड़े जवान बूढ़े बच्चे स्त्री पुरुष सभी के लिए मृत्यु का समय अनिश्चित है। इसलिए ईश्वर भक्ति को टालने की बजाय स्वय को ईश्वर भक्ति में लीन रखना चाहिए।तेजी से गुजरते हुए समय का जिक्र करते हुए बाबा प्रियदर्शी राम ने कहा आत्म कल्याण हेतु समय रहते जीवन में बदलाव लाना चाहिए। मनुष्य को चारो ओर निर्मित माया के भ्रम जाल से बाहर निकलना चाहिए। मनुष्य को जो कुछ मिला है उसे पर्याप्त बताते हुए पूज्य बाबा ने कहा योग्यता विवेक के जरिए अपना कल्याण किया जा सकता है।इसके लिए किसी विशेष परिस्थिति की आवश्यकता नहीं होती। जो कुछ अर्जित है उसके सदुपयोग से जीवन का लक्ष्य हासिल किया जा सकता है जबकि उसका दुरुपयोग अधोगति की ओर ले जाता है । केवल अपने हित के लिए ही सोचना मानव जीवन का सबसे बड़ा दुरुपयोग है। परिवार के साथ साथ समाज देश के हित के लिए कार्य करना मानव जीवन का श्रेष्ठतम सदुपयोग है। मनुष्य को कर्म करने के दौरान परिणाम के रूप में जो कुछ भी अच्छा या बुरा मिलता है वह पूर्व जन्मों में किए गए कर्मो का प्रतिफल भी शामिल होता है। इसलिए अपने अनुकूल परिणाम नही मिलने पर विचलित होकर सत्य का मार्ग नही छोड़ना चाहिए।परिणाम की चिंता किए बिना सदैव अच्छे कर्म करने से मनुष्य कर्म बंधन से मुक्त हो सकता है । जीवन के लिए यही मोक्ष है। परिवार समाज देश से जो कुछ हमने हासिल किया है उसे लौटा कर ही हम ऋण से मुक्त हो सकते है। माला में मौजूद 108 मनके में आठ मनके माता-पिता गुरु देश पित्र देव के होते है माला फेरने के दौरान हम इनका जाप भी कर ऋण से मुक्त होकर पुण्य अर्जित करते है। ईश्वर की भक्ति मनुष्य को आत्म तत्व का बोध कराती है।आत्म तत्व का बोध हुए बिना मानव जीवन निरर्थक बताते हुए पूज्य बाबा प्रियदर्शी ने कहा ईश्वर को पाने के लिए की गई भक्ति से सही मायने में सुख शांति मिलती है।जबकि धन संपदा एकत्र करने के लिए की गई मेहनत से मिली सुख शांति क्षणिक एवम नश्वर होती है । दुखों के निवारण के लिए आत्म तत्व के बोध को आवश्यक बताते हुए कहा अभ्यंतर में मौजूद अज्ञानता ही मनुष्य जीवन में दुखों की जड़ है ।आत्म तत्व के बोध से ही जीवन की अज्ञानता दूर होती है। यही जीवन के वास्तविक सुख की अनुभूति है। गीतो पदेश में भगवान कृष्ण ने आत्म तत्व को पाने के लिए साधन बताए है। निष्ठा एवं प्रयासों को साधन बताते हुए कहा बिना प्रयासो के लक्ष्य हासिल नहीं किया जा सकता। ईश्वर को पाने के लिए भी चाहत को आवश्यक बताते हुए कहा जैसे एक बच्चे के घर नहीं आने पार माता व्याकुल हो जाती है। ईश्वर को पाने के लिए भी एक भक्त में मां जैसी ही व्याकुलता होनी चाहिए। मनुष्य जीवन पाते ही परम पिता परमेश्वर को भूल कर सांसारिक वस्तुओं को एकत्र करने में जुट जाते है।यही हमारे जीवन में दुखों का कारण बन जाता है। बाहरी साधनों को एकत्र करने के फेर में हम ईश्वर द्वारा प्रदत्त आंतरिक शक्तियों की भूल जाते है। मन मंदिर में स्थापित परमेश्वर के अंश से अनभिज्ञ होकर हम बाहर मंदिरो मे भगवान को तलाशते है और नाना प्रकार की धूप फूल सामग्री चढ़ाकर भगवान को प्रसन्न करने का प्रयास करते है। भगवान की भक्ति का यह तरीका उचित नही है। निष्काम भक्त ईश्वर के सामने बिना इच्छा से एकाग्र होकर भक्ति करता है। निष्काम भाव से भक्ति करने वालो पर ईश्वर की विशेष कृपा होती है ईश्वरीय कृपा से सभी कार्य सिद्ध हो जाते है। भक्ति को ज्ञान का आधार माना गया है भक्ति और ज्ञान ही मनुष्य को सांसारिक दुखों से मुक्ति दिला सकते है। ज्ञानी पूरी सृष्टि में ब्रम्ह के अलावा कुछ नहीं देखता जबकि भक्त संपूर्ण जगत में ईश्वर को देखता है। मनुष्य के लिए भक्ति के मार्ग को सरल सहज बताते हुए पूज्य बाबा ने बताया भक्ति के मार्ग के अनुशरण से मन निर्मल हो जाता है । निर्मल मन से की गई भक्ति से हर कार्य सिद्ध हो जाते है। सुख शांति की तलाश में जुटे हुए मनुष्य को दुख मिलने का कारण अनुचित कर्म को बताते हुए कहा गुरु मंत्रो का निरंतर अभ्यास सुख प्राप्ति का सशक्त जरिया है। आकस्मिक मृत्यु की वजह अनियंत्रित जीवन शैली को निरूपित करते हुए बाबा प्रियदर्शी ने कहा विलंब से सोना उठना बीमारियों को निमंत्रण देना है। सात्विक भोजन की बजाय बाहरी खान पान को प्राथमिकता दिए जाने की वजह से रोग तेजी से बढ़ रहे हैं। भगवत कृपा से जो कुछ मिला है उससे संतुष्ट होना आवश्यक है। संतोष का भाव जीवन में सुख शांति समृद्धि लाता है। मेहनत के बाद भी फल नही मिलने की शिकायत के संबंध में पीठाधीश्वर ने गीता ज्ञान का उल्लेख करते हुए कहा मनुष्य को सदा फल की चिंता किए बिना ही कर्म करते रहना चाहिए। धूप और वर्षा से पानी से बचाव का कार्य छाता भली भांति करता है।

इसी तरह ईश्वर की भक्ति जीवन में बहुत ही परेशानियों से बचने का सशक्त माध्यम है। ईश्वर की ध्यान और भक्ति को ऋण मुक्ति का मार्ग बताते हुए पूज्य पाद ने कहा ईश्वर की भक्ति पुण्य के साथ साथ मनुष्य को जीवन में आई नाना प्रकार की व्याधियों से मुक्ति भी दिलाती है। भक्ति से जीवन निष्कंटक होता है और आयु दीर्घायु होती है।मंत्र को मणि की भांति निरूपित करते बताया कि मंत्र रूपी मणि मानव जीवन को प्रकाश मान करती है। महा मृत्युंजय मंत्र के जाप से स्वास्थ्य ठीक होने की मिशाल देते हुए उन्होंने कहा यदि कोई संत आने वाली परेशानियों की भविष्यवाणी कर मंत्र जाप की सलाह देता है तब विषम परिस्थिति में भी मनुष्य मंत्र का जाप करते हैं ताकि परेशानियों से बचा जा सके। दुख मे सुमिरन सब करे सुख में करे ना कोय सुख में सुमिरन करे तो दुख काहे को होय की व्याख्या करते हुए उन्होंने कहा मनुष्य को ईश्वर का सुमिरन सदैव करते रहना चाहिए। जो स्वयं को जान लेते हैं उनके जीवन में दुख खत्म हो जाते है। उन्होंने कहा मनुष्य को अपने अंदर मौजूद परमात्मा के अंश का बोध होना आवश्यक है।

सम्यक दृष्टि के अभाव की वजह से मनुष्य सबके अंदर मौजूद परमात्मा के अंश को नही देख पाता। सम्यक दृष्टि सत्संग के जरिए प्राप्त होती है । भक्त प्रहलाद को मिली दृष्टि का जिक्र करते हुए बाबा प्रियदर्शी राम ने कहा कि भक्त प्रहलाद ने सबके अंदर परमात्मा के अंश को देखा वही उनके अहंकारी पिता के अंदर विनय शीलता का अभाव था। अहंकारी पिता ने बेटे भक्त प्रह्लाद को कहा ईश्वर सबमें विद्यमान है इसे साबित करे अन्यथा मरने को तैयार हो जाते र । अपनी भक्ति के बल पर प्रह्लाद ने साबित भी कर दिया कि ईश्वर सर्वव्यापी है । भक्त प्रहलाद जैसी दृष्टि सत्संग के जरिए ही मिल सकती है । सत्संग के विचारों को जीवन में आत्मसात करने से भगवान की भक्ति प्रबल हो जाती है। अन्यथा इसके अभाव में बहुत सी विकृतियां मानव को घेर लेती है। मनुष्य के मन का भटकाव जीवन को गलत दिशा की ओर ले जाता है । ना चाहते हुए भी मनुष्य ऐसे कार्य करने लगता है जिससे उसका जीवन बंधन में फंस कर रहा जाता है । मुक्ति के मार्ग में चलने की बजाय मनुष्य पाप कर्म की वजह से जीवन मरण के बंधन में फंसकर रह गया। मन इंद्रियों को नियंत्रित करने के लिए सात्विक बुद्धि आवश्यक है।धर्मशास्त्र के जरिए जीवन जीने की सलाह देते हुए बाबा प्रियदर्शी राम ने नारियों के सम्मान की अपील करते हुए कहा नारी के प्रति सम्मान का भाव मानव समाज की उन्नति का मजबूत आधार है। धर्म शास्त्रों में विद्यार्थी युवा नर नारी पति पत्नी सभी के लिए जीवन जीने के तरीके बताए गए है।रावण और विभीषण भाई होते हुए भी दोनों के विचारों में भिन्नता थी रावण आसुरी प्रवृत्ति की सोच रखता था जबकि विभीषण की बुद्धि सात्विक थी।विभीषण ने तपस्या के दौरान भगवान से सदा भक्ति में रमें रहने का आशीर्वाद मांगा था वही रावण ने अमरता का वरदान मांगते हुए सामान्य पुरुष एवम वानर के हाथो मृत्यु का वरदान मांगा। बहुत से मनुष्य दुसरो का अहित सोचते है। जबकि बहुत से मनुष्य सदैव दूसरों की मदद के लिए तैयार रहते हैं । परोपकार की भावना रखने वाले मनुष्य का जीवन श्रेष्ठ बताते हुए कहा ऐसे मनुष्य देव तुल्य माने जाते है।

 

पूज्य बाबा ने समाज से की नारी सम्मान अपील

आशीर्वचन का दौरान बाबा प्रियदर्शी ने नारी शक्ति को समाज की उन्नति का आधार बताते हुए कहा माता के गर्भ में सृष्टि का सृजन पलता है। माता पार्वती को भगवान शिव ने आदि शक्ति का दर्जा दिया था। समाज नारी का सम्मान करे।

युवाओं से किया नशे परित्याग का का अनुरोध

नशा जीवन का नाश करता है युवाओं से नशा छोड़ने की अपील करते हुए बाबा प्रियदर्शी राम जी ने कहा नशा करने से शरीर खोखला हो जाता है। नशे से धन समय शरीर तीनो का अपव्यय होता है। नशा करने वाले जीवन का लक्ष्य हासिल नहीं कर सकते।



































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