मां बम्लेश्वरी को अर्पित किया जाएगा सोने का मुकुट…9 हजार से ज्यादा दीप जलाए जाएंगे..

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डोंगरगढ़। धर्म नगरी डोंगरगढ़ में हर साल चैत्र और क्वार नवरात्रि का पर्व बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। इस बार चैत्र नवरात्र में मां बम्लेश्वरी को सोने का मुकुट अर्पित किया जाएगा। मंदिर ट्रस्ट समिति के अध्यक्ष मनोज अग्रवाल ने मीडिया को बताया कि, श्रद्धालुओं द्वारा इस वर्ष नवरात्रि पर्व में मां बमलेश्वरी के दरबार में 8500 ज्योति कलश, छोटी मां बमलेश्वरी के दरबार में 900 ज्योति कलश, शीतला माता के दरबार में 61 ज्योति कलश प्रज्वलित की गई है। इनमें से 10 से 11 ज्योति कलश ऑस्ट्रेलिया, यूएसए से भी प्रज्वलित करवाई गई है। वहीं सीएम विष्णुदेव साय, मंत्री बृजमोहन अग्रवाल, वि.स अध्यक्ष डॉ. रमन सिंह और अन्य अधिकारियों ने भी मां के दरबार में ज्योति कलश प्रज्वलित करवाया है।

साल में दो बार लगता है भव्य मेला











वहीं नवरात्र के पर्व पर भव्य मेले का आयोजन किया जाता है। दर्शनार्थियों के लिए खान-पान, झूले, कपड़े, सजावटी सामान आदि की व्यवस्था की गई है। सुरक्षा के लिए 24 घंटे पुलिस प्रशासन तैनात रहती है। कलेक्टर और विभाग के आला अधिकारी तमाम व्यवस्थाओं का जायजा लेते हैं।

मंदिर परिसर में सुविधा की सारी व्यवस्था

वहीं नवरात्रि के पर्व पर मां बम्लेश्वरी मंदिर ट्रस्ट समिति ने दर्शनार्थियों की सुविधा के लिए सुरक्षित उड़नखटोला की व्यवस्था, एयर कंडीशन युक्त वेटिंग हॉल की व्यवस्था और सीढ़ियों से दर्शन करने वाले दर्शनार्थियों के लिए जगह-जगह पर ठंडे पानी और आराम करने के लिए व्यवस्था की गई है। पूरे मंदिर परिसर में नीचे से लेकर ऊपर तक सुरक्षा के लिए सी.सी.टी.वी की व्यवस्था की गई है। यहां पर गाइड के साथ ही मेडिकल सुविधा भी उपलब्ध कराई गई है।

मां बम्लेश्वरी मंदिर का इतिहास

मां बम्लेश्वरी मंदिर का इतिहास 2200 वर्ष पुराना है। डोंगरगढ़ शहर पहले कामावती नगरी के नाम से जाना जाता था। डोंगरगढ़ की पहाड़ी 2 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित है। यहां पर मां बम्लेश्वरी के दर्शन के लिए लगभग 1 हजार से ज्यादा सीढ़ियों को पार करके या रोपवे की मदद से ऊपर जाते हैं।

राजा कामसेन ने बनवाया भव्य मंदिर

मंदिर निर्माण की बात करें तो राजा कामसेन ने अपने तपोबल से मां बगलामुखी को प्रसन्न किया और उनसे विनती की कि, वे उनके राज्य की सबसे ऊंची पहाड़ी पर विराजमान हों और सबका कल्याण करें। लेकिन अत्यधिक जंगल और दुर्गम रास्ता होने के कारण भक्त माता का दर्शन नहीं कर पा रहे थे। तब राजा कामसेन ने माता बम्लेश्वरी से विनती की और कहा कि, पहाड़ी के नीचे विराजमान हों। माता ने राजा की विनती सुन कर छोटी मां बम्लेश्वरी और मंझली मां रणचंडी के रूप में विराजमान हुईं। वही दूसरी ओर कुछ इतिहासकारों का यह भी कहना है की मां बम्लेश्वरी का इतिहास उज्जैन से भी जुड़ा हुआ हैं । राजा विक्रमादित्य भी यहां पहले शासक रह चुके हैं राजा विक्रमादित्य भी मां बगलामुखी के बड़े उपासक रहे हैं।

सच्चे मन से मांगी मन्नत पूरी करती हैं मां बम्लेश्वरी

मान्यता है कि, जो भक्त मां बम्लेश्वरी के दरबार पहुंचकर सच्चे मन से मन्नत मांगते हैं तो उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती है। जो ऊपर पहाड़ों पर नहीं पहुंच पाते वे छोटी मां बम्लेश्वरी और मां रणचंडी का दर्शन कर लाभ प्राप्त कर सकते हैं। जनश्रुति है कि, जिन दंपतियों को संतान सुख नहीं होता यदि वे सच्चे मन से माता रानी का दर्शन करते हैं तो मां उनकी मनोकामना पूर्ण करती है। जिन श्रद्धालुओं की मनोकामना पूरी होती है वे मां को धन्यवाद ज्ञापित करने के लिए अपने निवास स्थान से पैदल चलकर मां के दरबार पहुंचते हैं। कई लोग घुटनों के बल जाते हैं, तो कुछ जस गीत गाते हुए या मैया का जयकारा लगाते हुए जाते हैं।















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