Janjgir-Champa: बैलगाड़ी में निकली रेलवे के इंजीनियर की बारात…आर्शीवाद समारोह में छत्तीसगढ़ी लोक गीत…स्टाल में छत्तीसगढ़ व्यंजन बनाकर सजाया

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जांजगीर-चांपा। रेलवे के इंजीनियर की शादी में निमंत्रण पत्र से लेकर मंडप , खाने का स्टाल और स्टेज सब में छत्तीसगढ़ी रंग दिखा। यहां तक बारात में भी दूल्हा बैलगाड़ी में सवार होकर निकला। आर्शीवाद समारोह में आयोजित स्नेह भोज में छत्तीसगढ़ी व्यंजन का स्टाल लगाया गया था। यहां तक डीजे में जो गीत बजे वह भी छत्तीसगढ़ी में थे। इस अनूठे विवाह की चर्चा जैजैपुर सहित आसपास के गांवों में भी जमकर है। ग्राम खैरा निवासी मयंक चंद्रा पिता कमलेश कुमार का विवाह ग्राम सेरो जिला सक्ती निवासी मनहरण लाल चंद्रा की बेटी प्रियंका चंद्रा के साथ 18 फरवरी को हुआ। इस विवाह में छत्तीसगढ़ी संस्कृति व परंपरा देखने को मिला शादी का आमंत्रण पत्र छत्तीसगढ़ी में छपवाया गया था।

 























वर के घर के मंडप की साज सज्जा भी छत्तीसगढ़ी अंदाज में किया गया था। बारात भी जनवासे से बैलगाड़ी में निकली। विवाह के बाद सोमवार 19 फरवरी को आर्शीवाद समारोह का आयोजन हुआ। जिसमें खाने के स्टाल में छत्तीसगढ़ व्यंजन बनाकर सजाया गया था। जिसमें मूंग भजिया, चनाचटपटी, फरा, खुरमी, तिखुर, डूबकी, बटकर की सब्जी, जिमिकांदा, ननकी बड़ी, प्याज भाजी, कैथला, चावल, दाल, बासी, बिजौरी, लाई बड़ी, मुनगा, झुनगा बड़ी, उसना चावल आदि की व्यवस्था थी। खाने के प्लेट के ऊपर पत्तल बिछाया गया था। इस तरह स्टेज से लेकर खाने के स्टाल तक सब जगह छत्तीसगढ़ी संस्कृति की झलक दिखी। यहां तक स्टाल की साज सज्जा भी पर्रा, टोकरी, सूपा, लालटेन, झाडू, पैरा, बांस , बोरी, खाट आदि से की गई थी। इस शादी की व्यवस्था की चर्चा न केवल शादी समारोह में बल्कि पूरे जैजैपुर नगर और आसपास के गांवों में भी रही। लड़के के पिता कमलेश चंद्रा सीएसईबी कोरबा में असिस्टेंट इंजीनियर है।

उन्होंने बताया कि उनके बेटे की इच्छा थी कि लोग हमारी छत्तीसगढ़ी संस्कृति व परंपरा को भूल रहे हैं। इसे लोग याद रखें और भावी पीढ़ी इससे परिचित हो इस सोच के साथ शादी में पूरी व्यवस्था गांव की पुरानी पंरपरा के आधार पर हो। स्टाल में भोजन सर्व करने वाली महिलाएं भी लुगरा पहनकर छत्तीसगढ़ी वेशभूषा में उपस्थित थीं। उन्होंने बताया कि आर्शीवाद समारोह के लिए स्टेज और स्टाल आदि तैयार करने में लगभग 8 से 10 दिन लग गए। इसके लिए पर्याप्त मात्रा में टोकरी, बांस , बल्ली, पैरा, लालटेन, परंपरा गत बर्तन आदि की व्यवस्था करनी पड़ी।



































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