Raigarh News: जिला अस्पताल में 84 बच्चों के क्लबफुट का हुआ उपचार…विदेश से आए डॉक्टर्स की टीम ने शिविर का किया मुआयना

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आर्थोपेडिक संघ व हड्डी रोग विभाग द्वारा शिविर का आयोजन

रायगढ़ 09 फरवरी 2023। जिला अस्पताल में बुधवार को 84 बच्चों का क्लबफुट के तहत सफल जांच एवं इलाज किया गया। इसमें से 5 बच्चों को प्लास्टर बांधे गए और बाकी के बच्चों को ब्रेस, विशेष जूता दिया गया। जिला अस्पताल में चल रहे इस तरह के शिविर का अवलोकन करने के लिए विदेश से विशेषज्ञ टीम आई थी।























जिसका नेतृत्व कर थे कॉर्ट्लन ब्रूस स्मिथ। वे जिला अस्पताल द्वारा क्लबफुट के इलाज से संतुष्ट दिखे और वहां आए बच्चों से फीडबैक लिया और रायगढ के डॉक्टर्स और स्टाफ की खूब तारीफ की। विदित हो कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर श्रीमान स्मिथ की संस्था क्लबफुट से पीड़ित बच्चचों के लिए ब्रेस और विशेष जूते का निर्माण करती है। बुधवार को शिविर का आयोजन जिला आर्थोपेडिक संघ और जिला अस्पताल के हड्डी रोग विभाग द्वारा किया गया था।

जिले के बाहर से आए डॉक्टर्स भी जिला अस्पताल पहुंचे जहां पर 2017 से हर बुधवार को क्लब फुट के तहत चल रहे इलाज एवं ऑपरेशन के तहत 84 बच्चों का अवलोकन किया। क्लब फुट इंडिया और जिला अस्पताल के सहयोग से हर बुधवार को शिविर का आयोजन किया जाता है जिसमें से अब तक 186 बच्चों का निशुल्क सफल आयोजन किया जा चुका है।

जिला अस्पताल के हड्डी रोग विशेषज्ञ डॉ. राजकुमार गुप्ता ने बताया कि इस तरह के क्लब फुट का ऑपरेशन एवं इलाज पिछले 7 सालों से चल रहा है। अब तक करीब इस कार्यक्रम के तहत करीब 100 से ऊपर बच्चों का क्लब फुट के तहत ऑपरेशन एवं इलाज किया गया। हमारे पास पॉन्सेटी मेथड के ट्रेनर हैं जो जटिल से जटिल समस्याओं को हल कर देते हैं।

जिला अस्पताल के न्यूरो फिजियोथेरेपिस्ट डॉ. सिद्दार्थ सिन्हा ने बताया कि क्लबफुट, एक जन्म दोष जिसमें एक या दोनों पैर अंदर की ओर मुड़े होते हैं, बच्चों में विकलांगता का एक प्रचलित कारण है, जो भारत में सालाना 800 नवजात शिशुओं में से 1 को प्रभावित करता है। हमारे देश में हर साल 33,000 बच्चे क्लबफुट के साथ पैदा होते हैं। उचित उपचार के बिना, क्लबफुट वाले बच्चों को स्थायी विकलांगता का सामना करना पड़ता है। अनुपचारित क्लबफुट बेहद दर्दनाक हो सकता है, और प्रभावित बच्चों में भेदभाव, उपेक्षा, मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं, अशिक्षा और शारीरिक और यौन शोषण का खतरा अधिक होता है। सौभाग्य से, पोन्सेटी विधि, एक न्यूनतम लागत की मानक प्रक्रिया है जो एक प्रभावी समाधान प्रदान करती है।

जिला ऑर्थोपेडिक संघ के अध्यक्ष डॉ बीआर पटेल ने आमजन से अपील की है कि उनके निकट कोई भी बच्चा क्लबफुट की बीमारी से ग्रसित हो तो उसे जिला अस्पताल लाएं यहाँ इसका इलाज निःशुल्क है। जितनी जल्दी हो सकें क्लबफुट के लक्षणों को पहचाने।
जिला अस्पताल में आयोजित शिविर में वरिष्ठ अस्थिरोग विशेषज्ञ डॉ शरद अवस्थी, डॉ वरुण गोयल, डॉ संतोष दास समेत जिला अस्पताल और ऑर्थोपेडिक संघ के लोग मौजूद थे।

इलाज में न करें देर
डॉ. सिन्हा ने बताया कि क्लबफुट पैरों का सबसे आम जन्मजात विकार है। यह हल्के और लचीले से लेकर गंभीर और कठोर तक हो सकता है। पैर की शारीरिक बनावट भिन्न हो सकती है। एक या दोनों पैर प्रभावित हो सकते हैं। जन्म के समय पैर अंदर और नीचे की ओर मुड़ता है और उसे सही स्थिति में रखना मुश्किल होता है। पिंडली की मांसपेशियाँ और पैर सामान्य से थोड़े छोटे हो सकते हैं। पैर का एक्स-रे किया जा सकता है। गर्भावस्था के पहले 6 महीनों के दौरान अल्ट्रासाउंड भी विकार की पहचान करने में मदद कर सकता है। उपचार यथाशीघ्र शुरू किया जाना चाहिए, आदर्श रूप से, जन्म के तुरंत बाद, जब पैर को दोबारा आकार देना सबसे आसान हो। पैर की स्थिति में सुधार के लिए हर हफ्ते हल्की स्ट्रेचिंग और रीकास्टिंग की जाएगी। आम तौर पर, 5 से 10 कास्ट की आवश्यकता होती है। पैर सही स्थिति में आने के बाद, बच्चा 3 महीने तक लगभग पूरे समय एक विशेष ब्रेस पहनेगा। फिर, बच्चा 3 से 5 साल तक रात में ब्रेस पहनेगा।

कैसे करें क्लबफुट की पहचान
जिला अस्पताल के हड्डी रोग विशेषज्ञ डॉ. दिनेश कुमार पटेन बताते हैं कि क्लबफुट वाले बच्चे अक्सर असामान्य तरीके से चलते हैं। आमतौर पर, लोग अपने पैरों के तलवों और तलवों के बल चलते हैं। क्लबफुट वाला बच्चा अपने पैरों के किनारों और ऊपरी हिस्से पर चल सकता है। पैरों की समस्याएं, जिनमें घट्टे भी शामिल हैं । कैलस त्वचा की एक मोटी परत होती है जो अक्सर पैर के तलवे पर विकसित होती है। यह इसकी एक पहचान है साथ ही गठिया, जोड़ों की एक स्थिति जो दर्द, कठोरता और सूजन का कारण बनती है।



































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