Raigarh News: आश्रम के स्थापना उद्देश्यों को समाज आत्मसात करे :-बाबा प्रियदर्शी

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रायगढ़ टॉप न्यूज 3 अगस्त। तीन दशक पूर्व अघोर गुरु पीठ ब्रम्ह निष्ठालय बनोरा के जरिए अंचल के लिए अघोर पंथ की नीव रखने वाले बाबा प्रियदर्शी राम जी ने आम जनमानस को संबोधित करते हुए आश्रम के उद्देश्यों की सही मायने में सार्थकता तभी होगी जब यहां आने वाले लोग इसे आत्मसात कर अपने व्यवहारिक जीवन में उतारे। स्थापना दिवस पर आत्मविश्वास से भरे बच्चो द्वारा प्रस्तुत किए गए कार्यक्रम की पूज्य पाद श्री ने सराहना करते हुए कहा अंचल में रहने वाले किसान मजदूर और मध्यमवर्गीय परिवार के बच्चे यहां निर्मित स्कूल में शिक्षा ग्रहण करते है। इन अपार उत्साही बच्चो के अंदर अपार संभावनाएं छिपी हुई है। आत्मविश्वास के बिना जीवन में आगे नही बढ़ पाना संभव नही है । बच्चो को प्रेरित करते हुए कहा जीवन में कोई भी लक्ष्य बिना परिश्रम के हासिल नही किया जा सकता। विषम परिस्थितियों से जूझते हुए परिश्रम साहस से जो व्यक्ति अपने लक्ष्य को तलाशता है ।ऐसे लोग जो जीवन में इतिहास भी रचते है। संघर्ष करने वाले कभी हार नही सकते।

हमारे देश के इतिहास में ऐसी बहुत सी मिशाल है। पूर्व के वक्ताओं ने बताया है कि हमारे क्षेत्र के बच्चे शिक्षा के माध्यम से इतिहास रचने के लिए प्रयास रत है। बच्चो को संस्कार वान बनाने शिक्षको के उल्लेखनीय योगदान की चर्चा करते हुए उनके प्रति आभार भी जताया। छात्रों को शिक्षक से आदर्श पूर्ण व्यवहार को शिक्षा देते हुए पूज्य बाबा ने कहा शिक्षा ज्ञान बढ़ने का जरिया है लेकिन व्यवहार मनुष्य को जीवन में आगे बढ़ने में मदद गार साबित होता है। किताबी ज्ञान के जरिए नौकरी हासिल करने वाली शिक्षा की परिपाटी को संकटों का कारण बताते हुए कहा प्राचीन भारत में गुरु कुल पद्धति शिक्षा हासिल करने का जरिया रही है ।गुरुकुलो में पठन पाठन के अलावा शारीरिक एवं व्यवहारिक शिक्षा भी दी जाती थी। यह शिक्षा पूरे जीवन काल मनुष्य को काम आती थी। गौ सेवा पूजा अर्चना भी गुरुकुल पद्धति की शिक्षा में शामिल रही।भारतीय संस्कृति की पुरातन परंपरा से हम मन से दूर नही हुए है जन मानस धरती माता का सम्मान करते हुए अपनी संस्कृति के साथ आगे बढ़ते रहे। माता पिता के सामने केवल दिखावे की पढ़ाई को व्यर्थ निरूपित किया। ऐसा करना स्वयं के साथ धोखाधड़ी है क्योंकि शिक्षा अर्जित करना स्वय के लिए बेहतर भविष्य बनाने की प्रक्रिया है। प्रतिदिन निरंतर पढ़ाई के जरिए उच्च पद हासिल कर परिवार समाज एवं देश की सेवा कर नाम कमाया जा सकता है।सिर्फ अपने लिए जीने की मानसिकता को निरर्थक बताया।जिस देश की माटी में हमने जन्म लिया जिस देश की प्राण वायु से जीवन चल रहा है उसके प्रति भी हम सबका कर्तव्य है। देश की माटी का कर्ज उतारने वाले सही मायने में सौभाग्यशाली होते है। देश के लिए कुछ करने की भावना को ही मनुष्य के लिए प्रगतिशील सोच बताया।











आधुनिक समाज में माता पिता की शिकायत के संबंध में बाबा प्रियदर्शी ने बताया कि बच्चे माता पिता को अपने मार्ग की बाधा मानने लगे है । सही मायने में जन्म देने वाले माता पिता का दर्जा भगवान के समतुल्य है माता पिता बच्चो के सही मायने में शुभ चिंतक है वे अपने अनुभव के आधार पर उन्हें आने वाली परेशानियों से आगाह करते है।माता पिता बच्चो के मार्ग की बाधा नहीं बल्कि समाज में मौजूद नाना प्रकार की विसंगतियों से माता पिता बच्चो को दूर रखने का प्रयास करते है।ताकि वह स्कूली शिक्षा हासिल कर जीवन के नई ऊंचाइयां हासिल कर सके बच्चो को गलत दिशा में जाने से रोकने के लिए माता पिता द्वारा बरती गई सख्ती को बच्चे जीवन की बाधा मानने की बड़ी भूल कर सकते है। जीवन में कोई भी सफलता माता पिता के आशीर्वाद के बिना हासिल नही की जा सकती भाग्य वश किसी को सफलता मिल जाती है तो वह सफलता सही उद्देश्यों को हासिल नही कर सकती। माता पिता को जीवन में सबसे बड़े हितैषी मानकर उनके बताए मार्ग का अनुसरण करना चाहिए। बच्चे को नौ माह तक पेट में रहने वाली माता जन्म के साथ बच्चे की कठिन परवरिश निःस्वार्थ भाव से करती है । माता बच्चो की प्रथम पाठशाला होती है। जिस भी इष्ट देवता की पूजा आराधना करते है उनके गुण ,आदर्श शिक्षा को अपने व्यवहारिक जीवन मे उतारना चाहिए। भगवान की आराधना के जरिए मन चाही वस्तु पाने की कल्पना को निरर्थक बताते हुए कहा ईश्वर की उपासना जीवन आध्यात्मिक ज्ञान को अर्जित करने का जरिया है।जिस रात मर्यादा पुरुषोत्तम राम के राजतिलक की तैयारी हो रही थी उसे अगले दिन उन्होंने पिता के वचन को पूरा करने के लिए चौदह वर्षो का वनवास जाने का निर्णय लिया। माता के वचनों को पूरा करने के साथ साथ भाई भरत के लिए सिंहासन छोड़ा और हंसते हंसते वनवास स्वीकार किया। एक आदर्श पुत्र ने पिता के वचनों को पूरा करने माता का आज्ञा पालन हेतु गद्दी की बजाय वनवास स्वीकार कर लिया । यदि वे वनवास नही जाते तो सिर्फ
राजा राम होते लेकिन चौदह वर्षो के वन वास ने उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम राम के रूप के स्थापित किया। माता पिता की आज्ञा को शिरोधार्य करने वालो का जीवन धन्य हो जाता है।







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