बस्तर. छत्तीसगढ़ में हरेली अमावस्या पर्व की धूम मची हुई है. छत्तीसगढ़ राज्य सरकार ने इस पर्व को देखते हुए शासकीय अवकाश भी घोषित किया है. एक तरफ जहां छत्तीसगढ़ के हर जिले में हरेली अमावस्या पर अलग-अलग तरह के आयोजन किए जा रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ बस्तर में हरेली अमावस्या के दिन सबसे लंबे दिनों तक चलने वाले विश्व प्रसिद्ध दशहरा पर्व की शुरुआत हो गई है. इस पर्व की सबसे खास और महत्वपूर्ण पाठ जात्रा की रस्म धूमधाम से अदायगी की गई. जगदलपुर शहर के दंतेश्वरी मंदिर परिसर में एक विशेष गांव बिलोरी से पेड़ के तना को काटकर लाया गया. इसकी विधि विधान से पूजा अर्चना की गई.
अब इस पेड़ के तना से जिसे “ठुरलू खोटला” कहा जाता है, इससे बस्तर दशहरा का सबसे मुख्य आकर्षण का केंद्र 8 चक्कों का विशालकाय रथ बनाने के लिए औजार तैयार किया जाएगा. इस रस्म के साथ ही अब दशहरा पर्व में अलग-अलग रस्म निभाने की शुरुआत होगी. खास बात यह है कि इस दशहरा पर्व में 12 से अधिक अद्भुत रस्म निभाई जाती है जो पूरे भारत देश में केवल बस्तर में ही देखने को मिलती है. बकायदा प्रशासन के द्वारा एक समिति का गठन किया जाता है जिसके अध्यक्ष खुद बस्तर के सांसद होते हैं. देश में सबसे ज्यादा लंबे दिनों तक चलने वाली दशहरा पर्व को धूमधाम से मनाया जाता है. इस साल यह पर्व 107 दिनों तक मनाया जाएगा. इस पर्व की शुरुआत 600 साल पहले हुई थी जो आज भी अनवरत जारी है. इस पर्व के हर रस्म को धूमधाम से मनाया जाता है.
600 सालों से मनाया जा रहा बस्तर दशहरा का पर्व
विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा पर्व की शुरुआत सोमवार को हरेली अमावस्या के दिन पाठ जात्रा पूजा विधान के साथ हो गई है. मां दंतेश्वरी मंदिर के सामने इस रस्म की अदायगी की गई. ठुरलू खोटला लकड़ी की पूजा अर्चना करने के बाद बकरा और मुंगरी मछली की बलि देकर माता को प्रसाद स्वरूप चढ़ाया गया. परंपरा अनुसार बस्तर जिले के विशेष गांव बिलोरी के ग्रामीण साल की लकड़ी को लेकर सोमवार (17 जुलाई) को जगदलपुर पहुंचे. दरअसल इसी लकड़ी से रथ बनाने के बड़े हथौड़े और अन्य औजार तैयार किए जाते हैं. औजार निर्माण करने वाले कारीगर, खाता पुजारियों, दशहरा पर्व से जुड़े मांझी चालकियों स्थानीय लोग और सेवादारों की उपस्थिति में इस विधान को संपन्न किया गया.
दूर दराज से पर्यटक बस्तर पहुंचते हैं पर्व को देखने के लिए
दरअसल इस साल 105 दिनों तक चलने वाले दशहरा पर्व की शुरुआत इसी पाठ जात्रा रस्म के साथ शुरू हो गयी है. इस लकड़ी को ठुरलू खोटला कहा जाता है, मंगलवार से अब रथ बनाने के लिए औजार तैयार किए जाएंगे. इस पूजा विधान के बाद बस्तर दशहरे में चलने वाले दो मंजिलें लकड़ी के रथ निर्माण के लिए जंगल से लकड़ियां लाने का क्रम शुरू हो जाएगा. दशहरा समिति के प्रमुख मांझी ने बताया कि विश्व प्रसिद्ध दशहरा पर्व पिछले 600 सालों से मनाया जा रहा है. इस पर्व में जितने भी रस्म अदायगी की जाती है. वह केवल बस्तर दशहरा में ही देखने को मिलती है. उन्होंने बताया कि आधुनिक काल में भी बस्तर में दशहरा पर्व के सभी रस्मों को पूरी विधि विधान के साथ पूरा किया जाता है. बकायदा इस पर्व को देखने दूर दराज से पर्यटक बस्तर पहुंचते हैं. दशहरा पर्व के शुरुआत के साथ ही जिला प्रशासन ने भी पर्व को धूमधाम से मनाने की तैयारी शुरू कर दी है.