रायगढ़ :- छतीसगढ से अजय मंडावी डोमार सिंह को पद्मश्री मिलने पर ओपी ने इसे छत्तीसगढ लोक कलाकारों सहित छत्तीसगढ़ियो का सम्मान निरूपित किया। इसके पहले पंडवानी गायिका उषा बारले को भी पद्मश्री से सम्मानित किया गया था। मोदी सरकार द्वारा छत्तीसगढ़ की लोक कला संस्कृति का सम्मान किए जाने पर आभार व्यक्त करते हुए प्रदेश भाजपा महामंत्री ने कहा छत्तीसगढ़ माटी पुत्र अजय कुमार मंडावी ने छतीसगढ़ी लोक-कला संस्कृति को नाचा गाना के जरिए देश विदेश के कोने कोने तक पहुंचाया l काष्ठ कला के अद्भुत कलाकार अजय कुमार मंडावी और छत्तीसगढ़ी नाट्य नाच कलाकार डोमार सिंह कुंवर को पद्मश्री सम्मान मिलना प्रदेश वासियों के लिए गौरव पूर्ण उपलब्धि है l
छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले गोविंदपुर के अजय मंडावी ने काष्ठ शिल्प कला में गोंड ट्राईबल कला का समागम किया है। उन्होंने नक्सली क्षेत्र के प्रभावित और भटके हुए लोगों को काष्ठ शिल्प कला से जोड़ते हुए क्षेत्र के 350 से ज्यादा लोगों के जीवन में बदलाव लेकर आने के साथ-साथ लकड़ी की अद्भुत कला से युवाओं को जोड़ा है। युवाओ को बंदूक की बजाय छेनी उठाने के लिए प्रेरित करने हेतु मंडावी को पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया गया है।
अजय मंडावी जी ने लकड़ी पर कलाकारी करते हुए बाइबल, भगवत गीता, राष्ट्रगीत, राष्ट्रगान, प्रसिद्ध कवियों की रचनाएं को उकेरने का अदभुत कार्य किया। पिता आरती मंडावी मिट्टी की मूर्तियां बनाने का काम करते थे जबकि उनकी मां सरोज मंडावी पेंटिंग का काम किया करती थीं।अजय मंडावी ने कांकेर जेल में 200 से अधिक बंदीयो को काष्ठ कला पारंगत किया। मंडावी काष्ठ कला को तपस्या मानते है इस तपस्या भरी काष्ठ कला ने जेल में निरुद्ध बंदी नक्सलियों के विचारों को पूरी तरीके से बदल कर रख दिया है।मंडावी के इस काष्ठ कला ने बंदूक थामने वाले नक्सलियों को ऐसा कलाकार बना दिया जो अपनी कला से की गई कमाई से ऐसे अनाथ व गरीब बच्चों की मदद कर रहे हैं जो कि आज नक्सल प्रभावित क्षेत्र में रहते हैं।
बालोद जिले के लाटाबोड़ निवासी डोमार सिंह कुंवर 12 साल की उम्र से नाचा कर रहे है । छत्तीसगढ़ी नाट्य नाच कलाकार डोमार सिंह कुंवर ने पद्मश्री हासिल कर बालोद जिला सहित पूरे प्रदेश को गौरवान्वित किया है। डोमार सिंह कुंवर नृत्य कला के साधक एवं मशहूर कलाकार हैं। देश से कोने कोने से लेकर विदेशों तक ख्याति प्राप्त डोमार सिंह ने छत्तीसगढ़ी हास्य गम्मत नाचा कला विधा को 47 साल से परी और डाकू सुल्तान की भूमिका निभाकर जिंदा रखे हुए हैं। इस 76 साल की उम्र में डोमार सिंह ने नाचा गम्मत को न सिर्फ जिया है, बल्कि अपने स्कूल से लेकर दिल्ली के मंच पर मंचन किया है। ओपी चौधरी ने कहा प्रदेशवासी तीन तीन पद्मश्री पुरुकार से नवाजे गए प्रदेश की लोक कला संस्कृति का यह सम्मान पूरे प्रदेश वासियों के लिए गौरव पूर्ण उपलब्धि है