रायगढ़: झारा शिल्प विकास के लिए बना वर्क शेड बदहाल

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रायगढ़। झारा शिल्प जिसे बेलमेटल कलाकृति या ढोकरा शिल्प भी कहा जाता है को देखकर सहज ही अंदाजा होता है कि यह एक समृद्ध और वैभवशाली कला है जो दुनिया में अपना परचम लहरा रही है। झारा शिल्प का इतिहास खँगालने पर पता चलता है कि इसके सूत्र भारत की महान हड़प्पा सभ्यता से जुड़ते हैं। इसकी बनावट और रूपाकार भारत की प्राचीन रूप कलाओं की तरह विविधतापूर्ण और जीवन से भरी हुई है।

इस कला से जुड़े अनेक ख्यातिनाम कलाकार हैं। रायगढ़ जिले का एकताल गाँव ऐसे कलाकारों का ही गाँव है। एकताल में दर्जन भर राष्ट्रीय और राज्य पुरस्कार से सम्मानित कलाकार रहते हैं। पैंतीस ऐसे कलाकार भी हैं जिन्हें राज्य स्तरीय पुरस्कार मिल चुके हैं।











यहीं पर रहनेवाले गोविन्द राम झारा झारा शिल्प के शिल्पगुरु माने जाते हैं। झारा शिल्पकला को देश-विदेश में ख्याति और सम्मान दिलाने में इनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है। वे एकताल ग्राम के शिल्प को विश्व स्तर पर ले जाने वाले पुरोधा कलाकार हैं। शिल्पगुरु गोविंदराम झारा के परिवार में ही तीन लोगों को राष्ट्रीय सम्मान और तीन लोगों को राज्य स्तरीय सम्मान प्रदान किया गया है। एकताल निवासी शंकर लाल झारा को धातु की असाधारण कुर्सियाँ बनाने में महारथ हासिल है।

गाँव की पहली महिला हैं जिन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। बुधियारिन झारा आठ राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता हैं। इन्हें ‘चंद्री माता का रथ’ बनाने पर उन्हें हस्त शिल्प विकास बोर्ड द्वारा यह पुरस्कार मिला था। अपनी कला का प्रदर्शन इन्होने सूरजकुंड, शिमला, बंगलोर के अलावा और भी कई जगहों पर आयोजित क्राफ्ट मेलों में किया है। चाई बाई और पदमा झारा को राज्य सम्मान से नवाजा गया है।

लेकिन इतनी बड़ी विरासत के इन प्रतिनिधियों का वास्तविक जीवन अभाव और गरीबी की दुखभरी कहानी बनकर रह गया है। गोविंद राम झारा के पास जो घर है वह अत्यंत दयनीय स्थिति में हैं। जिन कलाकारों ने इसके सिस्टम को समझ लिया है, वे लगातार आगे बढ़ रहे हैं और सिस्टम से बाहर रहने वाले शिल्पी अभाव और बदहाली का जीवन जी रहे हैं।

इतनी समृद्ध कला के प्रति सरकार अथवा हस्त शिल्प विकास बोर्ड का क्या रवैया है यह भी सवालों के घेरे में है। जिन कलाकारों की मेहनत और ज्ञान के उत्पादों को दुनिया के अनेक बड़े शहरों में प्रदर्शित और विक्रय किया जाता है वास्तव में उनके सामने आज रोटी के लाले हैं। दवाएं खरीदने तक के लिए पैसे नहीं हैं। उनको मिले मेडल और सम्मान मानो उनकी गरीबी पर उनका मुंह चिढ़ा रहे हैं।















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