चक्रधर समारोह 2025: छत्तीसगढ़ की सुप्रसिद्ध लोक गायिका छाया चंद्राकर ने अपनी प्रस्तुति से छत्तीसगढ़ की लोक परम्परा और संस्कृति को किया जीवंत

छत्तीसगढ़ी लोकगीतों की रंगारंग प्रस्तुति से झूमे दर्शक, तालियों की गडग़ड़ाहट से गूंजा कार्यक्रम स्थल
12 वर्षीय कथक नृत्यांगना इशिता कश्यप ने दी मनमोहक प्रस्तुति
बिलासपुर की बेटी काजल कौशिक ने कथक की भाव-भंगिमाओं और लयकारी से समारोह में बांधा समा
सचिन कुम्हरे की कथक प्रस्तुति ने महाराजा चक्रधर सिंह को किया समर्पित किया
तबले की थाप पर झूम उठा रायगढ़, सुप्रसिद्ध तबला वादक दीपक दास महंत ने बिखेरा अद्भुत संगीतमय जादू
गोवा के उस्ताद छोटे रहमत खान ने सितार की मधुर लहरियों से श्रोताओं को किया मंत्रमुग्ध
भारतनाट्यम की अद्भुत छटा बिखेरकर चेन्नई कलाक्षेत्र फाउंडेशन ने बांधा समां
सुर, ताल, छंद और घुंघरू के सातवें दिन स्थानीय लोक कलाकारों की शानदार प्रस्तुति ने समारोह की गरिमा में चार चांद लगाए
रायगढ़, सुर-ताल, छंद और घुंघरू के 40 बरस के अवसर पर स्थानीय रामलीला मैदान में आयोजित अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त चक्रधर समारोह 2025 का सातवां दिन कला, संस्कृति और संगीत के रंगों से सराबोर रहा। मंच पर जहां छत्तीसगढ़ी लोक संगीत की गूंज ने वातावरण को जीवंत किया, वहीं शास्त्रीय नृत्य और वादन की लयकारी ने श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। कार्यक्रम की मुख्य आकर्षण रही छत्तीसगढ़ की सुप्रसिद्ध लोकगायिका श्रीमती छाया चंद्राकर ने अपनी मधुर आवाज और लोकगीतों की प्रस्तुति से पूरे पंडाल को संगीतमय कर दिया। उनके गीतों में छत्तीसगढ़ी संस्कृति की झलक ने दर्शकों के मन को गहराई तक छू लिया।
गोवा से उस्ताद छोटे रहमत खान ने सितार वादन में ऐसी स्वर लहरियां बिखेरीं, जिसने उपस्थित हर श्रोता को मंत्रमुग्ध कर दिया। उनकी उंगलियों की थिरकन से निकले सुरों ने वातावरण को और भी सुरमयी बना दिया। इसी क्रम में शास्त्रीय नृत्य विधाओं ने भी अपनी छटा बिखेरी। कोरबा की इशिता कश्यप, बिलासपुर की कुमारी काजल कौशिक और कबीरधाम के सचिन कुम्हरे ने कथक में अद्भुत प्रस्तुति दी। रायगढ़ के दीपक दास महंत ने तबला वादन से श्रोताओं को झूमने पर मजबूर किया, वहीं चेन्नई की कला क्षेत्र फाउंडेशन की टीम ने भरतनाट्यम की मनमोहक प्रस्तुति से कार्यक्रम को नई ऊंचाई प्रदान की। परंपरा और आधुनिकता के इस अद्भुत संगम ने चक्रधर समारोह के सातवें दिन को अविस्मरणीय बना दिया।
राज्यसभा सांसद देवेंद्र प्रताप सिंह ने महाराजा चक्रधर सिंह के चित्र पर पुष्प अर्पित कर एवं दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम का विधिवत शुभारंभ किया। इस अवसर पर उन्होंने प्रतिभागी कलाकारों को शाल, श्रीफल और प्रशस्ति पत्र प्रदान कर सम्मानित किया तथा उनके उज्ज्वल भविष्य की कामना की।
सांस्कृतिक कार्यक्रम के साथ ही समारोह मंच पर साहित्य जगत का भी अद्भुत संगम देखने को मिला। राज्यसभा सांसद सिंह ने इस अवसर पर शिक्षिका एवं कवयित्री लिशा पटेल द्वारा रचित ‘दिव्य धरोहर’ पुस्तक का विमोचन किया। यह पुस्तक हिंदी एवं छत्तीसगढ़ी भाषा में छंदबद्ध और छंदमुक्त कविताओं, गीत, गजल, मुक्तक, नवगीत, लेख, आलेख, बाल कविताओं और कहानियों का संकलन है। बता दे कि पटेल साहित्य, शिक्षा और समाज सेवा के क्षेत्र में विशेष अभिरुचि रखती हैं। उनकी रचनाओं को गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड से सम्मानित किया जा चुका है। 50 से अधिक पुस्तकों और अनेक राष्ट्रीय पत्रिकाओं में उनकी रचनाएं प्रकाशित भी हो चुकी है। शिक्षा क्षेत्र में उनके उत्कृष्ट योगदान को उत्कृष्ट शिक्षक सम्मान से भी नवाजा जा चुका है।
12 वर्षीय कथक नृत्यांगना इशिता कश्यप ने दी मनमोहक प्रस्तुति
चक्रधर समारोह के मंच पर कोरबा की मात्र 12 वर्षीय कथक नृत्यांगना ईशिता कश्यप ने अपनी सधी हुई प्रस्तुति से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। पं.मोरध्वज वैष्णव से प्रशिक्षण प्राप्त कर रही ईशिता ने 4 वर्ष की आयु से नृत्य साधना शुरू की और कम उम्र में ही राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपनी पहचान बना ली है। समारोह में उन्होंने शिव वंदना एवं रायगढ़ घराने के बोलों पर आधारित विशेष बंदिश तराना और 150 चक्कर की अद्भुत प्रस्तुति दी। दर्शकों ने तालियों की गडग़ड़ाहट से उनका उत्साहवर्धन किया।
ईशिता कश्यप को अब तक प्रणवम् प्रतिभा सम्मान (2022), कला संस्कृति सम्मान (2023), स्वरिता प्राइड स्टार अवार्ड (2025), राष्ट्रीय विभुति सम्मान (2025) और इंडिया स्टार पैशन अवार्ड (2025) से नवाजा जा चुका है। हाल ही में वे संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार की प्रतिभावान बच्चों के लिए आयोजित राष्ट्रीय स्कॉलरशिप 2024 की जूनियर वर्ग कथक नृत्य के लिए चयनित हुई हैं। ईशिता ने पुणे, आगरा, कोलकाता, जयपुर सहित देशभर के मंचों पर अपनी कला का जादू बिखेरा है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उन्होंने दुबई और मलेशिया में भी कथक की प्रस्तुति दी है। अब तक वे लगभग 40 राष्ट्रीय मंचों पर अपनी नृत्य प्रतिभा दिखा चुकी हैं।















बिलासपुर की बेटी काजल कौशिक ने कथक की भाव-भंगिमाओं और लयकारी से बांधा समा
बिलासपुर की सुप्रसिद्ध कथक नृत्यांगना काजल कौशिक ने काली स्तुति, ठाठ, परण और तोड़ा, ठुमरी इत्यादि में अपनी अद्वितीय प्रस्तुति से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। उनकी भावपूर्ण अभिव्यक्ति, तीव्र लयकारी और कथक की विविध गतियों ने सभागार में उपस्थित श्रोताओं को आत्मविभोर कर दिया। भरतनाट्यम और ओडि़शी जैसी शास्त्रीय विधाओं की रंगत के बीच कथक की परंपरा ने मंच पर विशेष आकर्षण पैदा किया।
काजल कौशिक ने आठ वर्ष की आयु से नृत्य साधना आरंभ की और इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय, खैरागढ़ से कथक में स्नातक एवं स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त की है। वे कथक के प्रख्यात आचार्यों डॉ. जितेन्द्र गड़पायले और डॉ. नीता गहरवार की शिष्या हैं। प्रस्तुति के दौरान मंच पर संगत देने वाले कलाकारों ने भी संध्या को अविस्मरणीय बना दिया। तबला पर राम भावसार व ऋषभ साहू, सारंगी पर सफीक हुसैन, पखावज पर देव लाल देवांगन, गायन में ऋषभ भट्ट और सितार पर यामिनी शैलेन्द्र देवांगन ने काजल की नृत्य प्रस्तुति में स्वर और लय का अनुपम संगम रचा।
सचिन कुम्हरे की कथक प्रस्तुति महाराज चक्रधर सिंह को समर्पित
दूरदर्शन केंद्र रायपुर से जुड़े ग्रेडेड आर्टिस्ट तथा युवा कथक कलाकार कवर्धा के सचिन कुम्हरे ने आज की संपूर्ण प्रस्तुति संगीत सम्राट महाराज चक्रधर सिंह जी को समर्पित की। समारोह के मंच से किया गया यह भावपूर्ण अर्पण दर्शकों के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र रहा। उन्होंने अपनी प्रस्तुति का शुभारंभ शिव वंदना कैलाश महीधर से किया, जो राग जोग में है। इसके पश्चात ताल त्रिताल में ठाठ एवं महाराज चक्रधर सिंह जी द्वारा रचित बंदिशों-उपोपद्घात, चौपल्ली, गजविलास, रस पंचानन जोड़ापरण की प्रस्तुति दी। अंत में अष्ट नायिकाओं पर आधारित ठुमरी की मनमोहक प्रस्तुति ने दर्शकों का मन मोह लिया।
सचिन कुम्हरे ने अपनी नृत्य की प्रारंभिक शिक्षा शारदा संगीत महाविद्यालय, कवर्धा से प्राप्त की। आगे की उच्च शिक्षा उन्होंने इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय, खैरागढ़ से ली। उन्हें गुरु श्रीमती दीपा सांगरी, डॉ. गुंजन तिवारी, प्रो. नीता गहेरवाल एवं प्रो. शिवाली सिंह बैस जैसे आचार्यों का मार्गदर्शन प्राप्त हुआ है। वर्तमान में वे रायगढ़ घराने की बारीकियों का अध्ययन गुरु डॉ. भगवान दास माणिक से कर रहे हैं। उन्होंने अब तक कई प्रतिष्ठित राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर सफल प्रस्तुतियाँ दी हैं। दूरदर्शन केंद्र रायपुर से उन्हें बी-ग्रेड कलाकार का दर्जा प्राप्त है। इसके अतिरिक्त उन्होंने कई कार्यशालाओं एवं संगोष्ठियों में कथक नृत्य पर प्रस्तुतियाँ दी हैं। डॉ. सुमिता दत्ता राय (दिल्ली) द्वारा लिखित पुस्तक अ कलेक्शन ऑ$फ इंक्रेडिबल पर्सनालिटी में उनकी नृत्य यात्रा को संकलित कर लायंस पब्लिकेशन द्वारा प्रकाशित किया गया है।
सुप्रसिद्ध तबला वादक दीपक दास महंत ने बिखेरा अद्भुत संगीतमय जादू
रायगढ़ के युवा और सुप्रसिद्ध तबला वादक दीपक दास महंत ने अपनी शानदार प्रस्तुति से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। उन्होंने तबले की मधुर थाप और लयकारी के साथ विभिन्न उपज पेशकार, कायदा, रेला, टुकड़ा और गत को ऐसी निपुणता से प्रस्तुत किया कि पूरा समारोह स्थल तालियों की गडग़ड़ाहट से गूंज उठा। श्रोताओं ने बार-बार उत्साह से अपनी प्रसन्नता व्यक्त की।
गौरतलब है कि दीपक दास महंत ने तबला वादन की प्रारंभिक शिक्षा अपने पिता श्री अधीन दास महंत से प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने बजरंग चौहान, उग्रसेन पटेल और प्रीतम सिंह ठाकुर से गहन प्रशिक्षण लिया। वर्तमान में वे अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त तबला वादक पं. मुकुंद नारायण भाले के मार्गदर्शन में साधना कर रहे हैं। दीपक दास महंत अपनी प्रतिभा से पहले ही कई मंचों पर पहचान बना चुके हैं। उन्होंने राष्ट्रीय युवा महोत्सव, इंदौर में प्रथम स्थान, राज्य ओपन युवा महोत्सव, बैकुंठपुर में प्रथम स्थान और आकाशवाणी संगीत प्रतियोगिता में द्वितीय स्थान प्राप्त कर छत्तीसगढ़ का मान बढ़ाया है। कलाप्रेमियों ने उनकी प्रस्तुति को न केवल संगीत साधना का अद्भुत उदाहरण बताया, बल्कि उन्हें छत्तीसगढ़ की युवा प्रतिभाओं की नई पहचान और भावी पीढ़ी के लिए प्रेरणा स्रोत भी करार दिया।
भारतनाट्यम की अद्भुत छटा बिखेरकर चेन्नई कलाक्षेत्र फाउंडेशन ने बांधा समां
चेन्नई की प्रतिष्ठित कलाक्षेत्र फाउंडेशन ने अपनी मोहक प्रस्तुतियों से श्रोताओं का दिल जीत लिया। कलाकारों ने कार्यक्रम की शुरुआत एकताल आलारिप्पु से की। इसके बाद तिल्लाना, भगवान शिव को समर्पित वेल्लियंबलम, कंचदलायताशी, वीडेमीथिल और नमस्कारम जैसी पारंपरिक विधाओं की प्रस्तुति दी, जिसने दर्शकों को भारतीय शास्त्रीय नृत्य की गहराई और भव्यता से रूबरू कराया।
प्रस्तुतकर्ताओं में के.एम.जयकृष्णन, रूपेश पी.पी., कुमारी अनघा बाबू, कुमारी मानसी के. भटकांडे, कुमारी गोपिका वसंत, कुमारी कृष्णा के.एम. और कुमारी ए. शिवगंगा शामिल रहे। उनकी भाव-भंगिमाओं, ताल-लय की सुंदर संगति और सधी हुई मंचीय प्रस्तुति ने सभागार में उपस्थित सभी दर्शकों को भावविभोर कर दिया।
कलाक्षेत्र फाउंडेशन के कलाकारों ने भरतनाट्यम की परंपरा और भावाभिव्यक्ति का ऐसा संगम प्रस्तुत किया, जिसने चक्रधर समारोह की गरिमा को और भी ऊँचाई प्रदान की। कला क्षेत्र फाउंडेशन चेन्नई की स्थापना देश की विख्यात नृत्यांगना रुक्मिणी देवी अरुंडेल ने भारत की शास्त्रीय कलाओं को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से की थी। भरतनाट्यम तमिलनाडु दक्षिण भारत का एक प्राचीन शास्त्रीय नृत्य है, जिसकी जड़ें मंदिरों में हैं और यह हिंदू धर्म की आध्यात्मिक विचारों और धार्मिक कहानियों को व्यक्त करता है। यह शब्द भाव (अभिव्यक्ति), राग (संगीत), ताल (लय) और नाट्यम (नृत्य) से बना है। भरतनाट्यम में हाथों के हाव-भाव (मुद्रा), चेहरे के भाव (नवरस) और पैर की तालबद्ध चाल का उपयोग कहानी कहने और भावनाओं को व्यक्त करने के लिए किया जाता है।
छोटे रहमत खान ने सितार की मधुर लहरियों से श्रोताओं को किया मंत्रमुग्ध
तालेगांव गोवा से आए विख्यात सितार वादक उस्ताद छोटे रहमत खान की अनूठी प्रस्तुति का साक्षी बनने का अवसर मिला। उन्होंने सितार की मधुर और लयबद्ध लहरियों से ऐसा अद्भुत वातावरण निर्मित किया कि पूरा पंडाल सुरों और रागों के सागर में डूब गया। उस्ताद छोटे रहमत खान ने कार्यक्रम में पारंपरिक रागों के साथ-साथ अपनी विशिष्ट शैली के प्रयोग से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया।
ताल और लय के उतार-चढ़ाव पर आधारित उनकी प्रस्तुति ने दर्शकों को भारतीय शास्त्रीय संगीत की गहराइयों से रूबरू कराया। बता दे कि उस्ताद छोटे रहमत खान प्रतिष्ठित धारवाड़ सितार घराने के संगीतकारों की छठी पीढ़ी से संबंधित है। संगीत साधना की परंपरा उन्हें अपने परिवार से विरासत में मिली है। बचपन से ही सितार साधना में रत रहमत खान ने अपने पिता और गुरु से संगीत की शिक्षा ग्रहण की। आगे चलकर उन्होंने देश-विदेश के अनेक प्रतिष्ठित मंचों पर अपनी कला का परचम लहराया है। उन्होंने 30 वर्षों तक कला अकादमी गोवा में निदेशक के रूप में कार्य किया। रायगढ़ के श्रोताओं ने प्रस्तुति का आनंद लेते हुए तालियों की गडग़ड़ाहट से उस्ताद छोटे रहमत खान का स्वागत किया।
छाया चंद्राकर के लोकगायन का छाया जादू, लोक कलाकारों के पारंपरिक वेशभूषा में दिखी छत्तीसगढ़ के सांस्कृतिक विरासत की झलक
छत्तीसगढ़ की वरिष्ठ लोकगायिका छाया चंद्राकर ने अपनी प्रस्तुति से लोकसंगीत का ऐसा सुरमयी वातावरण रचा कि दर्शक झूम उठे। उनकी सुरीली आवाज़ और मधुर लोकधुनों ने एक ओर श्रोताओं को लोक परंपरा की गहराइयों में उतारा, वहीं दूसरी ओर नई पीढ़ी को हमारी लोकधरोहर से परिचित करवाया।
छाया चन्द्राकर और उनकी टीम लोक छाया ने अपनी शानदार प्रस्तुति से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। कार्यक्रम की शुरुआत इन्होंने भगवान गणेश वंदना से की। इसके बाद छत्तीसगढ़ महतारी को समर्पित गीत जय हो छत्तीसगढ़ महतारी तोर पांव… प्रस्तुत किया, जिस पर दर्शकों ने तालियों की गडग़ड़ाहट से उनका अभिवादन किया। लोकपरंपराओं की झलक पेश करते हुए हरेली, भोजली, गौरी-गौरा, राउत नाचा, डंडा नृत्य, सुआ नृत्य, देवार गीत, पंथी गीत, छेरछेरा और जंवारा विसर्जन जैसी प्रस्तुतियों ने वातावरण को छत्तीसगढ़ के समृद्ध संस्कृति की खुशबू से महकाया। अंत में उन्होंने छत्तीसगढ़ के लोकप्रिय गीत कर्मा और छत्तीसगढ़ी गीतों की प्रस्तुति देकर कार्यक्रम को नई ऊंचाई दी।
गौरतलब है कि छाया चंद्राकर ने अब तक 50 से अधिक फिल्मों और 3000 से ज्यादा गीतों में अपनी स्वर साधना का जादू बिखेरा है। लगभग 4100 मंचीय प्रस्तुतियों के जरिए उन्होंने न सिर्फ छत्तीसगढ़ बल्कि देश-विदेश तक अपनी अमिट पहचान बनाई है। उनकी दीर्घ कला साधना के सम्मानस्वरूप उन्हें लता मंगेशकर स्वर कोकिला सम्मान, सामाजिक समरसता सम्मान, अहिल्या बाई होलकर स्मृति सम्मान, दाऊ महासिंह चंद्राकर सम्मान, भक्त माता कर्मा सम्मान, मिनीमाता नारी शक्ति सम्मान, छत्तीसगढ़ कला रत्न सम्मान, भारत गौरव सम्मान, छत्तीसगढ़ गौरव सम्मान सहित अनेक पुरस्कारों से अलंकृत किया गया है।